Shahdol Rajma Cultivation: मध्य प्रदेश का शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है. यहां पर ज्यादातर खरीफ सीजन में प्रमुख तौर से धान की खेती की जाती है. जबकि रवि सीजन में गेहूं की खेती की जाती है. इसके अलावा भी कई अलग-अलग फसलें लगाई जाती हैं, लेकिन अब रवि सीजन में राजमा की खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है. अगर ये प्रयोग भी सफल रहा तो आने वाले समय में रवि सीजन में किसानों को एक नई फसल लगाने का ऑप्शन मिल सकता है, जो उन्हें लखपति भी बना सकता है, क्योंकि ये काफी डिमांडिंग फसल है.
राजमा का सफल प्रयोग
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेन्द्र सिंह बताते हैं कि "राजमा की फसल शहडोल जिले के लिए एक नया प्रयोग है. यहां इसका बहुत ज्यादा प्रचलन नहीं है, यह मुख्य रूप से ठंड की फसल है और रवि सीजन में अक्टूबर-नवंबर में इसकी बुवाई होती है. शहडोल जिले में पिछले साल हमने एक्सपेरिमेंट के तौर पर अपने फार्म में ही खुद ही ट्रायल के तौर पर उसे लगाया था. जिसके बड़े अच्छे रिजल्ट मिले थे. जिसके बाद इस साल कुछ किसानों के यहां भी अभी लगवाया गया है. यह फसल बहुत अच्छी है. इसके भी बहुत उत्साह जनक रिजल्ट मिले हैं, अभी यह फ्लोवेरिंग स्टेज में है. उम्मीद है कि किसानों को राजमा के फसल के तौर पर एक नया ऑप्शन मिल सकता है."
कहां होती है सबसे ज्यादा खेती ?
कृषि वैज्ञानिक डॉ मृगेंद्र सिंह बताते हैं कि "राजमा मूलत: दक्षिण अमेरिका की फसल है. इसको कई नाम से जाना जाता है, फ्रेंच बीन, कॉमन बीन अपने यहां राजमा, किडनी बीन और कई नामों से बुलाया जाता है. यह मुख्य रूप से दलहनी फसल है. इसको दो तरह से प्रयोग कर सकते हैं, एक तो वेजिटेबल दूसरा दालों के रूप में भी इसका उपयोग किया जाता है. प्रमुख तौर पर इसका सबसे अधिक उत्पादन कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश में भी भी कुछ जगहों पर होता है. हालांकि अभी शहडोल जिले के लिए ये एकदम नई फसल है."
कब करें खेती, किस तरह की मिट्टी सही
कृषि वैज्ञानिक डॉ मृगेंद्र सिंह बताते हैं की "मुख्य रूप से रवि सीजन की ये फसल है. अक्टूबर-नवंबर में इसकी बुवाई होती है, जिस तरह से सब्जियों की खेती के लिए वेल ड्रेण्ड सॉइल की जरूरत होती है. ठीक उसी तरह की मिट्टी की जरूरत राजमा के फसल के लिए भी होती है. साढ़े पांच से साढ़े छः पीएच वाली जमीन पर इसकी अच्छी खासी खेती की जा सकती है. जिसमें जल भराव न हो, इसके अलावा इसे 15 से 21 डिग्री तक ठंड चाहिए, जो ठंड के सीजन में हमारे क्षेत्र में ऐसा मौसम रहता है. जो इसके लिए बहुत बढ़िया है. कुल मिलाकर शहडोल की जलवायु यहां का तापमान बहुत अच्छा है, जो राजमा की खेती के लिए अच्छे परिणाम दे रहा है.
कमाल की फसल है राजमा
मुख्य रूप से यह एक दलहनी फसल भी है. इसकी न्यूट्रिशस वैल्यू भी बहुत ज्यादा है. कुछ मायने में यह मेडिसिनल उपयोग के लिए भी उपयोग किया जाता है. ये किडनी में स्टोन का बनना भी रोकता है. इसके लिए भी काफी फायदेमंद है. खास तौर से इसकी खेती पहाड़ों की तराई में पहाड़ी एरिया में ज्यादा की जाती है. इसके लिए हल्की दोमट मिट्टी बहुत अच्छी मानी जाती है.
कितनी पैदावार ?
पैदावार की बात करें तो राजमा की खेती अगर अच्छे से होती है, तो यह अच्छी पैदावार भी देती है. कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि एक एकड़ में करीब पांच से 10 क्विंटल तक इसकी उपज हो सकती है. इस हिसाब से किसानों के लिए यह बहुत ही अच्छा ऑप्शन है. अगर शहडोल में पूरी तरह से राजमा की खेती सफल रहती है.
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अब राजमा बनाएगा लखपति
देखा जाए तो शहडोल संभाग आदिवासी बहुल संभाग है. यहां पर पहले से ही मोटा अनाज कोदो, कुटकी की खेती तो प्रमुखता से की जाती है. धान, गेहूं की खेती के अलावा और भी कई अन्य फसलें भी लगाई जाती हैं, लेकिन अगर राजमा का ये प्रयोग और ज्यादा सफल रहता है, तो क्षेत्र के किसानों को रवि सीजन में अच्छी फसल मिल जाएगी. जिसकी खेती वो कर सकते हैं, क्योंकि ये मुनाफा देने वाली फसल है. इसमें उत्पादन भी अच्छा होता है. साथ ही इसकी डिमांड भी बहुत है. सामान्य तौर पर देखें तो रिटेल मार्केट में 150 रुपए प्रति किलो से ऊपर ही राजमा बिकता है. ऐसे में किसान इसकी खेती करता है ये फसल लखपति भी बना सकती है.