शहडोल। जिले में प्रमुख रूप से रबी और खरीफ ये दो सीजन होते हैं जब खेती की जाती है. खरीफ सीजन में जहां जिले में धान की खेती प्रमुखता के साथ की जाती है तो रवि सीजन में गेहूं की फसल लगाई जाती है. लेकिन इन दो सीजन के बाद ज्यादातर किसान अपने खेतों को खाली छोड़ देते हैं भले ही उनके पास सिंचाई के साधन हों, लेकिन वो अप्रैल के महीने में किसी भी तरह की खेती करने से बचते हैं. ऐसे में कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर बी के प्रजापति सलाह देते हैं कि अगर किसानों के पास थोड़ी भी सिंचाई का साधन है तो खेतों को खाली न छोड़ें बल्कि उनका उपयोग करें और अगर इन खाली खेतों पर वो इन दलहनी फसलों की खेती करते हैं तो अच्छी खासी आय भी कमा सकते हैं.
ये दलहनी फसल बना सकते हैं लखपति
कृषि वैज्ञानिक डॉ. बीके प्रजापति कहते हैं कि ''इन दिनों शहडोल जिले में रवि सीजन की फसल लगभग आखिरी चरण में चल रही है. गेहूं की फसल भी अप्रैल के लास्ट लास्ट में पूरी तरह से कट जाएगी खत्म हो जाएगी. ऐसे में अब खेत खाली हो जाएंगे और किसान मूंग और उड़द जैसी दलहनी फसलें हैं जिनकी खेती कर सकते हैं. जिनमें कम पानी की भी जरूरत होती है, ज्यादा देखरेख की भी जरूरत नहीं होती है, और ये कम दिनों की फसल भी होती हैं. दलहन की बात करें तो दाल की कीमत किस तरह से आसमान छू रही है, यह किसी से अछूता नहीं है. चाहे फिर मूंग, उड़द, अरहर दाल की बात करें तो दाम लगातार बढ़ रहे हैं. ऐसे में किसान ऐसे खाली समय में दाल की खेती करते हैं तो अच्छा उत्पादन भी हासिल कर सकते हैं. इससे दाल के दाम भी किसानों को मिलेंगे.''
मूंग-उड़द की ये किस्म है शानदार
कृषि वैज्ञानिक डॉ. बी के प्रजापति कहते हैं कि अप्रैल से जून के पहले हफ्ते तक मूंग और उड़द की खेती किसानों के लिए बेहतर हो सकती है. किसान इन महीनों में दलहन की फसल की खेती कर सकते हैं. जैसे मूंग और उड़द उनके लिए एक मुख्य फसल हो सकती है. मूंग उड़द की फसल 60 से 70 दिन की होती है. मूंग की फसल की किस्म की बात करें तो जो हमारे जिले में प्रचलित हैं उसमें विराट की किस्म 60 दिन में पककर तैयार हो जाती है. ये काफी कम अवधि की किस्म है. इसके अलावा 65 से 70 दिनों की एम एच 481 किस्म है, ये भी बेहतर मूंग के बीज की किस्म है. वहीं उड़द में इंदिरा प्रथम उड़द फायदेमंद बीज है. मूंग-उड़द जैसे फसलों का अगर हम सही तरीके से चयन करते हैं तो लगभग 60 से 70 दिनों में आपकी फसल पककर तैयार हो जाएगी.
ऐसे करें गर्मी में मूंग-उड़द की खेती
कृषि वैज्ञानिक डॉ बीके प्रजापति कहते हैं कि ''मूंग और उड़द की खेती के लिए सबसे पहले किसान अपने खेत की अच्छी तरह से जुताई करवा लें, जुताई करवाने के बाद कुछ किसान पलावा देकर भी बुवाई करते हैं, तो उसके लिए खेत का पलावा कर लें. फिर सीड ड्रिल से खेतों की बुवाई कर लें, क्योंकि बीज जब सीड ड्रिल से खेतों पर जाते हैं तो एक निश्चित दूरी पर बीज रहते हैं और अच्छा उत्पादन देते हैं. अगर किसान सीड ड्रिल से खेती करते हैं तो आपको 8 किलो बीज प्रति एकड़ सीड ड्रिल से बुवाई करने के लिए लगेगा.''
बीज को उपचारित जरूर करें
खेतों में बीज के बुवाई से पहले किसान इस बात का ध्यान जरूर रखें कि बीजों को उपचारित जरूर कर लें. आजकल कई ऐसी जैविक दवाइयां आती हैं जो बीज को उपचारित करती हैं जिससे कई रोगों से आप पहले से ही अपने फसल को सुरक्षित कर लेते हैं. कई रासायनिक दवाइयां भी आती हैं. बुवाई से पहले उकठा जैसी बीमारियों से रस चूसक कीटों से नियंत्रण के लिए बीज को उपचारित कर लें. अगर जैविक खेती करने वाले किसान हैं तो ट्राइकोडर्मा की 3 से 5 ग्राम मात्रा प्रति केजी के हिसाब से लेकर के बीज को उपचारित करने के लिए उपयोग में लाएं. इसके अलावा राइजोबियम या सीडोमोनास जो है, इनका भी आप बीजों को उपचार में उपयोग कर सकते हैं.
इसके अलावा रासायनिक दवाओं के भी कई सारे ऑप्शन हैं जिनसे आप अपने बीजों को उपचारित कर सकते हैं. रासायनिक दवाओं में जैसे करबेंडा जिम, मैनकोजेब जैसे दवाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं. तीन ग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से लेकर बीज को उपचारित करके किसान अपने खेतों की बुवाई करते हैं तो उकठा जैसी बीमारियों से निश्चित रूप से बच जाएंगे. कई खेतों में रस चूसक कीट या दीमक जैसी समस्या भी है, वहां क्लोरो पायरी फॉस नामक दवा होती है उसकी 2 ग्राम मात्रा पानी में घोल करके बीज में छिड़काव करके उपचारित करके अगर बुवाई करते हैं, तो इससे भी रोकथाम प्राप्त कर सकते हैं.
मृदा की जांच जरूर करें
अगर हम सीड ड्रिल से बुवाई करते हैं तो हमें 20-50-30 के हिसाब से नाइट्रोजन-फास्फोरस- पोटाश प्रति ढाई एकड़ के पीछे इस्तेमाल करना होता है. परंतु किसान इस बात का ध्यान जरूर करें कि मृदा की जांच जरूर करवा लें. मृदा जांच के बाद जो सॉइल हेल्थ कार्ड मिला हुआ है, उसी के आधार पर खेतों पर पोषक तत्व डालने चाहिए.
इतने दिन तक कर सकते हैं बुवाई
कृषि वैज्ञानिक डॉ बीके प्रजापति कहते हैं कि ''जिन किस्म को हमने बताया है, मूंग और उड़द की ये 60 से 70 दिन के ही फसल की किस्में हैं, अगर इन किस्मों को हम मार्च के आखिर में या अप्रैल के पहले सप्ताह तक बुवाई कर देते हैं तो 10 जून से पहले हमारी फसल कट जाएगी. कुछ नहीं तो प्रति ढाई एकड़ में अगर अच्छी खेती करते हैं तो 18 से 20 क्विंटल तक प्रति हेक्टेयर मूंग और उड़द की फसल को प्राप्त कर सकते हैं.''
भूमि की उपजाऊ क्षमता भी बढ़ेगी
दलहनी फसल होने के साथ-साथ भूमि का उपजाऊ पन भी बढ़ेगा, इसके जो डंठल मिलेंगे तो बरसात में अगर उन्हें खेतों में मिलवा देते हैं तो हरी खाद के रूप में भी ये काम करेगा. हमारे भूमि का उपजाऊ पन बढ़ाएगा, इसके साथ हमारे कृषक आमदनी भी ज्यादा से ज्यादा प्राप्त कर सकते हैं.
कितने पानी की जरूरत
इन फसलों के लिए पानी की बात करें तो मुख्य रूप से दलहनी फसलों में 300 से 400 एमएम पानी की आवश्यकता होती है. परंतु पानी की आवश्यकता इस बात पर निर्भर करती है, कि हमारी मिट्टी किस तरह की है. अगर हल्की मिट्टी है, रेतीली मिट्टी है, तो आपको हफ्ते 10 दिन के अंतराल में पानी डालना होगा. गर्मी के दिनों में शहडोल जिले की जो हल्की मिट्टी है, वहां आपको एक हफ्ते के अंतराल में पानी डालना पड़ेगा. यहां जो काली मिट्टी वाला क्षेत्र है, यहां आपको 10 दिनों के अंतराल में या दो हफ्ते के अंतराल में आपको पानी लगाना पड़ेगा. जिन किसानों के पास स्प्रिंकलर इरिगेशन है, वो स्प्रिंकलर से पानी डालें, जिससे जल की 50% तक बचत होती है.