जोधपुर: अपने ही आश्रम की बालिका के साथ यौन शोषण के आरोप में जोधपुर जेल में सजा काट रहे आसाराम को मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिल गई. यह पहला मौका है जब आसाराम को जमानत मिली है. जमानत उसके स्वास्थ्य को देखते हुए दी गई है.
हालांकि, इससे पहले आसाराम को यौन शोषण के इस मामले में 1 सितंबर को 2013 को गिरफ्तार होने के बाद से 25 अप्रैल 2018 तक सजा सुनाए जाने तक और उसके बाद कई बार याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में लगीं, जिनकी पैरवी देश के जाने-माने वकीलों ने की, लेकिन कोर्ट ने आसाराम को राहत नहीं दी थी. 86 वर्षीय आसाराम को 31 मार्च तक अंतरिम जमानत मिली है, जिसके लिए उसे 12 साल का लंबा सफर तय करना पड़ा. पुलिस ने मामला दर्ज कर 77 दिन बाद ही 1021 पन्नों की चार्जशीट पेश की थी.
15 अगस्त 2013 को यौन शोषण का आरोप : आसाराम का जोधपुर के मथानिया क्षेत्र के मणाई गांव में बहुत बड़ा आश्रम है. 15 अगस्त 2013 की रात को अपने ही आश्रम के एक साधक की नाबालिग पुत्री के साथ यौन शोषण का आसाराम पर आरोप लगा, जिसका मामला दिल्ली के एक थाने में 21 अगस्त 2013 को दर्ज हुआ और वहां से केस जोधपुर ट्रांसफर हुआ था. जोधपुर पुलिस ने इस मामले की पड़ताल करते हुए 1 सितंबर को आसाराम को इंदौर आश्रम से गिरफ्तार कर जोधपुर लेकर आई थी. इसके बाद आसाराम जेल से कोर्ट सुनवाई के लिए और उपचार के लिए ही बाहर निकला था. जमानत पर वह पहली बार बाहर आएगा.
77 दिन में पेश की चार्जशीट : जोधपुर पुलिस ने आसाराम के खिलाफ अपनी जांच का दायरा बढाया और उसके कई आश्रमों पर जाकर सबूत जुटाए. पीड़िता के बयान लिए गए. उसके आधार पर साक्ष्य जुटाते हुए आसाराम के खिलाफ 1021 पन्नों की चार्जशीट 5 नवंबर 2013 को कोर्ट में पेश की थी, जिसमें कई खुलासे हुए थे. किस तरह से नाबालिग पीड़िता को मणाई आश्रम की कुटिया में अंधेरे में लाया गया था, जहां उसे समर्पित होने को कहा गया था. पीड़िता को आसराम तक पहुंचाने में सहयोगी शरद, शिल्पी, शिवा व प्रकाश भी आरोपी थे. हालांकि, उनको जमानत मिल गई. प्रकाश जमानत मिलने के बावजूद भी जेल में ही रहा. चार्जशीट में 58 गवाह व 121 दस्तावेजों को शामिल किया गया था.
लगातार हुई सुनवाई के लिए जेल से बाहर आता-जाता रहा : इस मामले में कोर्ट में जब सुनवाई शुरू हुई तो वह लगातार चली. आसाराम एक सप्ताह में दो से तीन बार इसके लिए कोर्ट आता था. वह जब भी कोर्ट आता तो हर बार कोई न कोई बयान देता था. उसके भक्त पूरे कोर्ट परिसर में जमा रहते थे, जिनको नियंत्रित करने में पुलिस को बहुत परेशानी होती थी. इतना ही नहीं, आसाराम को जिस पुलिस की वैन में लाया जाता था, तब उसके भक्त वैन के टायर के निशान पर अपना सिर नवाते थे. गुरु पूर्णिमा पर जेल के बाहर दीपक जलाकर पूजा करने का सिलसिला आज भी जारी है.
उपचार के लिए आयुर्वेद का सहारा : आसाराम अपने उपचार के लिए शुरू से ही आयुर्वेद को मानता रहा है. सुनवाई के दौरान जब भी वह बीमार होता तो उसे एमडीएम अस्पताल लाया जाता था, जहां पर एक बार उसकी एमआरआई करने की सलाह दी गई तो उसने बहुत आनाकानी की थी. एम्स में भी उपचार के लिए इंकार करता रहा. कई बार करवड़ स्थित आयुर्वेद विश्वविद्यालय में भर्ती रहा था. उसे पहली बार 13 अगस्त 2024 को जोधपुर हाईकोर्ट ने उपचार के लिए 7 दिन की पैरोल दी थी, जिसके चलते वह उपचार के लिए बाहर गया था. उसके बाद तीसरी बार हाल ही में पुणे से आने के बाद उसे 15 दिन की पैरोल मिली, जिसके तहत वह अभी जोधपुर के आरोग्य सेंटर पर उपचारधीन है.
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सजा सुनाने के लिए जेल में लगी थी अदालत : आसाराम को सजा सुनाने के लिए 25 अप्रैल 2018 को जोधपुर केंद्रीय कारागृह में विशेष अदालत लगाई गई, जिसमें पीड़िता के वकील प्रमोद कुमार वर्मा व पीसी सोलंकी ने अपनी बहस पूरी करते हुए असाराम को फांसी देने की मांग की थी. न्यायाधीश मधुसूदन शर्मा ने असाराम के कृत्य को गंभीर बताते हुए प्राकृतिक जीवन तक आसाराम को आजीवन कारवास की सजा सुनाई थी. इसके बाद लंबे समय तक आसाराम जेल से बाहर नहीं आया. सजा के बाद पहली बार बीमार हुआ तो उसे महात्मा गांधी अस्पताल लाया गया था. कोरोना में भी उसे उपचार के लिए लाया गया था.