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हजारीबाग में स्क्रैप व्यवसायियों का नया हथकंडा, बच्चों को बनाया हथियार, ईटीवी भारत का बड़ा खुलासा - scrap dealers in Hazaribag

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jul 28, 2024, 2:21 PM IST

Updated : Jul 28, 2024, 2:43 PM IST

Children collect scrap in Hazaribag. हजारीबाग की सड़कों पर इन दिनों छोटे-छोटे बच्चों को कबाड़ चुनते हुए सभी ने देखा होगा. लेकिन इसके पीछे का खेल क्या है आप नहीं जानते होंगे. ईटीवी भारत इसके पीछे खेल का पर्दा आज उठाने जा रहा है. देखिए पूरी रिपोर्ट

scrap dealers in Hazaribag using children in their business
डिजाइन इमेज (ईटीवी भारत)

हजारीबागः जिले के शहरी इलाकों में इन दिनों कबाड़ चुनते नौनिहालों को देखा जा सकता है. ककहरा सीखने की उम्र में ये कबाड़ चुनने का काम कर रहे हैं. इसके पीछे एक बहुत बड़ा रैकेट काम कर रहा है. स्क्रैप के व्यापारी स्कूल के बच्चों को ठेला गाड़ी मुहैया करा कर कबाड़ चुनवाने का काम करा रहे हैं. इसके एवज में उन्हें महज 70 से 80 रुपया दिया जा रहा है.

हजारीबाग में स्क्रैप जमा करते हैं बच्चे (ईटीवी भारत)

इन दिनों हजारीबाग के विभिन्न क्षेत्र में छोटे-छोटे बच्चों को कबाड़ चुनते हुए देखा जा सकता है. जो घर मोहल्ले के अलावा दुकान के आसपास भी ठेला गाड़ी में रद्दी उठाते हुए नजर आते हैं. खासकर के प्लास्टिक और शीशे की बोतल ये चुनते हैं. एक ठेला गाड़ी में तीन बच्चे रहते हैं. हजारीबाग में सैकड़ों की संख्या में ऐसे ठेला गाड़ी देखे जा रहे हैं. कहा जाए तो 500 से अधिक बच्चे कूड़ा उठाते हुए शहर में दिख जाएंगे.

इसके पीछे एक बहुत बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है, जो बच्चों को ठेला गाड़ी उपलब्ध कराता है. दिनभर बच्चे स्कूल जाने के बजाय ठेला गाड़ी से कबाड़ चुनते हैं और शाम के 6 बजे जो उन्हें ठेला गाड़ी उपलब्ध कराए हैं उन्हें वापस कर देते हैं. दिनभर काम करने पर उन्हें 60 से ₹70 दिया जाता है. वह कबाड़ लगभग 15 सो रुपए का होता है. जब तक ठेला गाड़ी पूरी तरह से भर नहीं जाए बच्चों को काम करने के लिए कहा जाता है. कबाड़ चुनने वाले बच्चों ने खुद इसकी सच्चाई बताई है.

स्क्रैप का बिजनेस करोड़ों का होता है. हजारीबाग में लगभग 7 से 8 बड़े स्क्रैप के बड़े व्यवसाई हैं. मंडई, खीरगांव, चिश्तिया मोहल्ला, इचाक, नगवां में इनका व्यापार देखा जा सकता है. सभी स्क्रैप के व्यवसायियों के सामने ठेला गाड़ी जरूर दिख जाएगा. पहले ये व्यस्क लोगों को ठेला गाड़ी उपलब्ध कराते थे. अब इनका काम करने का तरीका बदल गया है और यह छोटे-छोटे बच्चों को लालच देकर काम करवा रहे हैं. हजारीबाग के एक स्थानीय ऑटो चालक भी बताते हैं कि हजारीबाग का शायद ही ऐसा कोई मोहल्ला हो जहां यह देखने को नहीं मिले.

शिक्षा का अधिकार कानून वर्ष 2009 से लागू है. कानून का विधिवत रूप से अनुपालन न होने के कारण क्षेत्र में छह से 14 वर्ष तक के बच्चे स्कूल जाने की जगह सुबह से कबाड़ को एकत्र कर कबाड़ की दुकानों पर पहुंचाकर पैसा कमाने के लिए निकल पड़ते हैं. पैसा कमाने पर बच्चे नशा भी करते देखे जा सकते हैं. जब इस बाबत बाल कल्याण पदाधिकारी से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि आपके जरिए जानकारी मिली है अब इस पर संज्ञान लिया जाएगा.

जब इस बारे में जिला श्रम अधीक्षक को जानकारी दी गई तो वह भी चौंक गए, कि किस तरह से हजारीबाग में एक बड़ा नेटवर्क कम कर रहा है. उन्होंने भी कहा कि इस बाबत जानकारी नहीं मिली थी लेकिन अब जानकारी मिली है तो कार्रवाई भी की जाएगी.

महज 8 साल की उम्र में बच्चे कूड़ा उठाते हुए तो सड़क किनारे जरूर दिख जा रहे हैं. शायद ही किसी ने इसके पीछे की सच्चाई जानने की कोशिश की हो. जब ईटीवी भारत ने उन बच्चों से बात की तो चौंकाने वाली तथ्य भी सामने आए हैं. जरूरत है समाज को जागरूक होने की और प्रशासन को गंभीरता दिखाने की. ताकि नेटवर्क को तोड़ा जा सके.

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हजारीबागः जिले के शहरी इलाकों में इन दिनों कबाड़ चुनते नौनिहालों को देखा जा सकता है. ककहरा सीखने की उम्र में ये कबाड़ चुनने का काम कर रहे हैं. इसके पीछे एक बहुत बड़ा रैकेट काम कर रहा है. स्क्रैप के व्यापारी स्कूल के बच्चों को ठेला गाड़ी मुहैया करा कर कबाड़ चुनवाने का काम करा रहे हैं. इसके एवज में उन्हें महज 70 से 80 रुपया दिया जा रहा है.

हजारीबाग में स्क्रैप जमा करते हैं बच्चे (ईटीवी भारत)

इन दिनों हजारीबाग के विभिन्न क्षेत्र में छोटे-छोटे बच्चों को कबाड़ चुनते हुए देखा जा सकता है. जो घर मोहल्ले के अलावा दुकान के आसपास भी ठेला गाड़ी में रद्दी उठाते हुए नजर आते हैं. खासकर के प्लास्टिक और शीशे की बोतल ये चुनते हैं. एक ठेला गाड़ी में तीन बच्चे रहते हैं. हजारीबाग में सैकड़ों की संख्या में ऐसे ठेला गाड़ी देखे जा रहे हैं. कहा जाए तो 500 से अधिक बच्चे कूड़ा उठाते हुए शहर में दिख जाएंगे.

इसके पीछे एक बहुत बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है, जो बच्चों को ठेला गाड़ी उपलब्ध कराता है. दिनभर बच्चे स्कूल जाने के बजाय ठेला गाड़ी से कबाड़ चुनते हैं और शाम के 6 बजे जो उन्हें ठेला गाड़ी उपलब्ध कराए हैं उन्हें वापस कर देते हैं. दिनभर काम करने पर उन्हें 60 से ₹70 दिया जाता है. वह कबाड़ लगभग 15 सो रुपए का होता है. जब तक ठेला गाड़ी पूरी तरह से भर नहीं जाए बच्चों को काम करने के लिए कहा जाता है. कबाड़ चुनने वाले बच्चों ने खुद इसकी सच्चाई बताई है.

स्क्रैप का बिजनेस करोड़ों का होता है. हजारीबाग में लगभग 7 से 8 बड़े स्क्रैप के बड़े व्यवसाई हैं. मंडई, खीरगांव, चिश्तिया मोहल्ला, इचाक, नगवां में इनका व्यापार देखा जा सकता है. सभी स्क्रैप के व्यवसायियों के सामने ठेला गाड़ी जरूर दिख जाएगा. पहले ये व्यस्क लोगों को ठेला गाड़ी उपलब्ध कराते थे. अब इनका काम करने का तरीका बदल गया है और यह छोटे-छोटे बच्चों को लालच देकर काम करवा रहे हैं. हजारीबाग के एक स्थानीय ऑटो चालक भी बताते हैं कि हजारीबाग का शायद ही ऐसा कोई मोहल्ला हो जहां यह देखने को नहीं मिले.

शिक्षा का अधिकार कानून वर्ष 2009 से लागू है. कानून का विधिवत रूप से अनुपालन न होने के कारण क्षेत्र में छह से 14 वर्ष तक के बच्चे स्कूल जाने की जगह सुबह से कबाड़ को एकत्र कर कबाड़ की दुकानों पर पहुंचाकर पैसा कमाने के लिए निकल पड़ते हैं. पैसा कमाने पर बच्चे नशा भी करते देखे जा सकते हैं. जब इस बाबत बाल कल्याण पदाधिकारी से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि आपके जरिए जानकारी मिली है अब इस पर संज्ञान लिया जाएगा.

जब इस बारे में जिला श्रम अधीक्षक को जानकारी दी गई तो वह भी चौंक गए, कि किस तरह से हजारीबाग में एक बड़ा नेटवर्क कम कर रहा है. उन्होंने भी कहा कि इस बाबत जानकारी नहीं मिली थी लेकिन अब जानकारी मिली है तो कार्रवाई भी की जाएगी.

महज 8 साल की उम्र में बच्चे कूड़ा उठाते हुए तो सड़क किनारे जरूर दिख जा रहे हैं. शायद ही किसी ने इसके पीछे की सच्चाई जानने की कोशिश की हो. जब ईटीवी भारत ने उन बच्चों से बात की तो चौंकाने वाली तथ्य भी सामने आए हैं. जरूरत है समाज को जागरूक होने की और प्रशासन को गंभीरता दिखाने की. ताकि नेटवर्क को तोड़ा जा सके.

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Last Updated : Jul 28, 2024, 2:43 PM IST
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