कुल्लू: जिला के बंजार उपमंडल की सैंज घाटी में जुलाई 2023 में पिन पार्वती नदी में आई प्रलयकारी बाढ़ में बहा नुनुर बहली पुल 16 महीने से पुनर्निर्माण का इंतजार कर रहा था. स्थानीय ग्रामीण प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधियों तक पुल के निर्माण की मांग करते रहे, लेकिन किसी ने भी पुल निर्माण में दिलचस्पी नहीं दिखाई. सैंज तहसील की देहुरीधार पंचायत के दरमेडा, जयालू, रोपा, नुनुर बहली और सतेश के ग्रामीण प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से एक अदद पुल की फरियाद करते थक चुके थे.
पुल बहने से इन गांवों के करीब 40 परिवारों को नदी पार करने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था. गांव के आसपास के रोपा, करटाह और सतेश पुल भी बाढ़ निगल चुकी है. ग्रामीण जान जोखिम में डालकर एक झूला पुल से आवाजाही करने को मजबूर थे. इन दिनों गांव में एक बेटी की शादी थी, लेकिन गांव के बाहर बना पुल टूटा हुआ था. आखिर में ग्रामीणों ने जुआरी प्रथा (श्रमदान) के तहत पुल के तीन पिलर तैयार किए और उसपर लकड़ी के तख्ते बिछाकर पुल आवाजाही के लिए बहाल कर दिया. ये पूरा काम गांव के लोगों ने बिना किसी सरकारी अनुदान के किया. इस पुल को बनाने के लिए गांव के 15 लोगों को 10 दिन का समय लगा.
ग्रामीण दुर्गा दास, चमन लाल, कमल सिंह, मोती राम, दिनेश कुमार, वीर सिंह, ज्ञान चंद, फता राम, गंगा राम और ओम दत ने बताया कि, 'पुल की मांग को लेकर वे जनप्रतिनिधियों से लगातार गुहार लगाते रहें, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी. लोकसभा चुनाव के वक्त भी राजनीतिक दलों के प्रत्याशी, कार्यकर्ता उनके पास पहुंचे थे. कई मिन्नतों के बाद उन्हें चुनाव के बाद प्राथमिकता के आधार पर पुल का निर्माण करवाने का ही आश्वासन मिला, लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद उन्हें कुछ हाथ नहीं लगा.'
बिटिया की बारात के लिए बनाया पुल
दरअसल, बीते सप्ताह नुनुर बहली गांव में चमन लाल की पुत्री भावना की बारात बंजार के बंदल गांव से आनी थी. एक तार पर बने झूले से पूरी बारात का आना असंभव था. ग्रामीणों ने एकजुटता दिखा कर नदी पर पुल बनाने की ठानी. 10 दिन तक 15 लोगों ने पुल बनाकर तैयार कर दिया. बड़ी ही धूमधाम से बारात इस पुल से होकर आई और बिटिया की विदाई भी इसी पुल से हुई.
नदी पार करना है मजबूरी
पिन पार्वती नदी के दाएं तरफ बसे इन गांव में स्कूल, अस्पताल, सड़क जैसी कोई भी मुलभूत सुविधा नही है. इसके लिए ग्रामीणों को नदी पार कर बाएं किनारे पर बनी सड़क तक आना पड़ता है. पांच किमी की दूरी तक कोई भी पुल न होने से लोग भारी परेशानी झेल रहे हैं. नदी को पार करना लोगों की मजबूरी है.
लकड़ी का पुल के सहारे गुजर रही है जिंदगी
सैंज घाटी में 2023 की बाढ़ में 9 पुल बह गए थे. इनमें से मात्र दो जगह पर ही तीन पुल बन पाए हैं. करटाह, दरमेढा, सपांगनी, तरेहडा, डेंगा, नडाहरा, मरौड आदि गांव में लोगों ने बिना सरकारी अनुदान के ही अपने दम पर लकड़ी के पुल बनाकर आवाजाही के साधन तैयार किए हैं. चिंता का विषय यह है कि ये लकड़ी के पुल सुरक्षा के लिहाज से बिल्कुल सुरक्षित नहीं हैं. हर बरसात में यह बह जाती हैं, जिससे ग्रामीणों को फिर असुविधाओं का सामना करना पड़ता है.
कोरे अश्वासन ही मिले
देहुरीधार पंचायत के प्रधान भगत राम आजाद ने बताया कि, 'पंचायत की ओर से पांच बार जिला प्रशासन को प्राक्कलन बनाकर भेजे जा चुके हैं. कई बार प्रतिनिधिमंडल डीसी से मिल चुका है, लेकिन पुलों के निर्माण के लिए मात्र कोरे आश्वासन ही मिले. जहां लोग अपने स्तर पर पुल लगा रहे हैं. वहां के लिए पंचायत 10 हजार का अनुदान देगी.' एडीएम कुल्लू अश्वनी कुमार ने बताया कि, 'जिला भर में दर्जनों पुल बाढ़ की भेंट चढे हैं. प्रशासन सिलसिलेवार इन पुलों का पुननिर्माण कर रहा है. पंचायतों की ओर से सैंज घाटी के पुलों के प्राकलन भी मिले हैं. जल्द उन्हें बनाने की योजना चल रही है.'