सागर: किसान रबी की फसल की तैयारी में जुट गए हैं. रबी की प्रमुख फसलों में गेहूं, चना, मसूर और अलसी है. मध्य प्रदेश में किसान गेहूं और चना की बुवाई ज्यादा करते हैं. वैसे तो यहां का शरबती गेहूं देश और दुनिया भर में मशहूर है, लेकिन इन दिनों गेहूं की एक ऐसी किस्म की चर्चा चल रही है. जिसके बारे में कहा जाता है कि यह किस्म हड़प्पा संस्कृति से जुड़ी हुई है. हड़प्पा काल में किसान गेहूं की सोना मोती किस्म की खेती करते थे. इस गेहूं की खासियत है कि किसानों को मालामाल कर देती है. खाने वालों को सेहत की तरफ से खुशहाल कर देती है. खासकर डायबिटीज और शुगर के मरीजों के लिए इसे काफी बेहतर माना जाता है, क्योंकि इसमें जीरो % शुगर होती है.
हड़प्पा संस्कृति से क्या है कनेक्शन
जानकारों की माने तो हड़प्पा काल में रहने वाले लोग खेती किसानी में पारंगत थे. हड़प्पा काल में चावल, गेहूं, मसूर, मटर और कपास की खेती की जाती थी. गेहूं की सोना मोती किस्म के लिए हड़प्पा काल की किस्म कहा जाता है. फिलहाल इसे हरियाणा के कुरुक्षेत्र इलाके में तैयार किया गया है. जानकारों का कहना है कि हरियाणा में हड़प्पा संस्कृति काफी समृद्ध और प्रगतिशील थी. प्रगतिशील युवा किसान आकाश चौरसिया बताते हैं कि 'गेहूं की ये किस्म विशेष रूप से भारतीय नस्ल की है. इसका इतिहास हड़प्पा संस्कृति से जुड़ा हुआ है. ये भारत की वो मूल प्रजाति है, जो कहीं ना कहीं रोग व्याधियों को दूर करने के लिए ये अहम भूमिका निभाती है. किसानों के लिए ये बहुत अच्छी प्रजाति है, क्योंकि दूसरी किस्म के अलावा इस किस्म के गेहूं की अच्छी कीमत मिलती है. हम कई सालों से इस पर काम कर रहे हैं.'
सोना-मोती किस्म का गेहूं
किसान आकाश चौरसिया बताते हैं कि सोना मोती किस्म के गेहूं का दाना अलग तरह का होता है. इसका दाना गेहूं की दूसरी किस्मों के मुकाबले गोल होता है. एक एकड़ में 25 किलो बीज की मात्रा लगती है और पौधे की ऊंचाई भी कम होती है. इसकी ऊंचाई जमीन से करीब दो फीट होती है. ऊंचाई कम होने के कारण आंधी, तूफान और बारिश में भी इसकी बालियां टूटकर जमीन पर नहीं गिरती है.
सोना मोती की बुवाई
सोना-मोती किस्म के गेहूं की बुवाई का सही समय 20 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक होता है. बुवाई के पहले खेत की तैयारी के लिए किसान खेत को ट्रीट करें. इसके लिए 100 किलो चूने का पावडर और 50 किलो नीम का पावडर डालकर करीब 10 दिन तक खेत को खाली छोडें. खेत में नाइट्रोजन और बाकी तत्वों की पूर्ति के लिए दो टन प्रति एकड़ के हिसाब से फास्फो कंपोज और 5 ट्राली प्रति एकड़ गोबर की खाद डालने के बाद बीजोपचार कर किसान सोना मोती किस्म की बुवाई करें.
बीजोपचार के लिए 2 लीटर गौ मूत्र, ढाई सौ ग्राम धनिया और 250 ग्राम मिर्च का पावडर पेस्ट बनाएं और बीज के ऊपर उसका लेप करें, ताकि बीज का 100 प्रतिशत जर्मिनेशन गुणवत्तापूर्ण हो. इसकी वजह से पौधे का विकास अच्छी तरह से होता है. किसानों की आय का अच्छा स्त्रोत है और उपज भी काफी अच्छी है. करीब 18 से 22 क्विंटल तक इसकी उपज होती है. इसको चार बार पानी की जरूरत होती है. ये 140 दिनों की फसल होती है.
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शुगर फ्री होने के कारण मिलता है अच्छा दाम
जानकार बताते है कि डायबिटीज के मरीजों के लिए अच्छा होने के कारण इसकी कीमत दूसरी किस्मों से काफी अच्छी है. करीब 4 हजार से लेकर 8 हजार क्विंटल इसकी कीमत होती है. किसानों को धनवान बनाने के अलावा ये सेहत के लिहाज से काफी अच्छी उपज मानी जाती है. गुणवत्ता के तौर पर देखें तो इसमें फाॅलिक एसिड, जिब्रेलिक अमीनोएसिड होता है. साथ ही फाइबर की मात्रा बहुत अधिक होती है. इसमें शुगर काफी कम होती है. एक तरह से नगण्य या शून्य होती है. इसलिए सोना मोती किस्म को शुगर फ्री गेंहू भी बोलते हैं. डायबिटीज और शुगर के पेंशेट के लिए ये औषधि का काम करती है.