ETV Bharat / state

देश में बच्चों की बढ़ी हाइट? भारत, अमेरिका और यूरोप का रिसर्च, पोषण बढ़ा, लेकिन नया चैलेंज - INDIAN CHILD DEVELOPMENT RESEARCH

भारत अमेरिका और यूरोप के पोषण को लेकर शोध किया. इस शोध में सागर डॉ हरि सिंह गौर का मानव विज्ञान विभाग भी शामिल था.

INDIAN CHILD DEVELOPMENT RESEARCH
देश में बच्चों के पोषण और वृद्धि में सुधार, (ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Feb 5, 2025, 8:02 PM IST

Updated : Feb 5, 2025, 9:29 PM IST

सागर (कपिल तिवारी): दुनिया में सबसे बड़ी आबादी के साथ चल रहे भारत देश में बच्चों में कुपोषण की समस्या बड़ी है. हालांकि सरकारों ने पिछले कुछ दशकों में समस्या से निपटने के कई प्रयास किए. जिसके बेहतर परिणाम अब नजर आने लगे हैं. दरअसल, सागर यूनिवर्सिटी के मानव विज्ञान विभाग, भारतीय सांख्यिकी संस्थान, यूरोप और अमेरिका के वैज्ञानिकों द्वारा किए शोध में ये बात सामने आयी है. इन वैज्ञानिकों ने पिछले तीन दशकों के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण का अध्ययन किया.

जिसमें पाया गया कि अब भारत के बच्चों में पोषण और वृद्धि में सुधार हो रहा है. फिलहाल ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि WHO के मानक स्तर से अभी भी कम है. अध्ययन में ये भी सामने आया कि 1990 के दशक में सरकार ने बच्चों में कुपोषण की स्थिति देखते हुए आंगनबाड़ी, मिड डे मील और 2000 के दशक में मनरेगा, 2010 के दशक में स्वच्छता अभियान जैसी योजनाओं के कारण सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार के कारण ये सुखद परिणाम सामने आए हैं.

3 दशक में 5 लाख से अधिक शिशुओं पर अध्ययन

दरअसल "भारत में प्रारंभिक बाल्यावस्था की संवृद्धि और पोषण स्थिति- 1992 से 2021 तक पांच राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षणों में प्रवृत्तियां "विषय पर डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर, भारतीय सांख्यिकी संस्थान कोलकाता, पश्चिम बंगाल स्टेट यूनिवर्सिटी कोलकाता, एडम मिकिविज़ विश्वविद्यालय पोलैंड, यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास ऑस्टिन, अमेरिका, यूनिवर्सिटी ऑफ लुइसविले अमेरिका के मानव विज्ञानियों और विषय विशेषज्ञों ने ये अध्ययन किया है. जिसे प्रतिष्ठित यूरोपियन जर्नल यूरोपियन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन ने प्रकाशित किया है.

क्या कहना है सागर मानव विज्ञान के प्रोफेसर का (ETV Bharat)

अध्ययन का नेतृत्व सागर यूनिवर्सिटी के मानव विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजेश के. गौतम और भारतीय सांख्यिकी संस्थान के डॉ. प्रेमानंद भारती ने किया है. अध्ययन में 5 लाख 5 हजार 26 बच्चों के शरीर संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण किया गया, जो 1992 से 2021 तक पांच राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षणों (NFHS) से संकलित किए गए थे.

5 लाख से ज्यादा बच्चों के अध्ययन के निष्कर्ष

यह अध्ययन शरीर के भार, लंबाई (ऊंचाई) और पोषण स्थिति में बदलाव के विस्तृत विश्लेषण के आधार पर किया गया है. जिसमें भारत में हुए आर्थिक और सामाजिक बदलाव का बच्चों के स्वास्थ्य पर असर को दर्शाया गया है.

भार में वृद्धि

पांच NFHS सर्वेक्षणों के दौरान सभी आयु समूह के शिशुओं में औसत शरीर भार में लगातार बढ़ोत्तरी देखी गयी. 18-23 माह के बच्चों में सबसे अधिक औसत भार वृद्धि (0.9 किलोग्राम) दर्ज की गयी. वहीं सबसे अधिक भार वृद्धि 18-35 माह के लड़कों में 0.9 किलोग्राम और 36-47 माह की लड़कियों में 1.0 किलोग्राम देखी गयी. 6 माह तक शिशुओं में अधिकतम भार वृद्धि दर्ज की गई है. जहां NFHS-5 में लड़कों ने 1.9 किलोग्राम और लड़कियों ने 1.7 किलोग्राम वजन बढ़ाया. लड़कों का औसत भार हर आयु वर्ग में लड़कियों की तुलना में अधिक पाया गया, जिसमें अधिकतम अंतर 6-8 माह की उम्र में (0.8 किलोग्राम) था.

SAGAR ANTHROPOLOGICAL RESEARCH
सागर यूनिवर्सिटी का मानव विज्ञान विभाग (ETV Bharat)

लंबाई (ऊंचाई) में परिवर्तन

NFHS के पांचों सर्वेक्षणों में औसत लंबाई में लगातार वृद्धि देखी गयी. 18-23 माह की उम्र में सबसे अधिक (3 सेमी) की लंबाई वृद्धि दर्ज की गई. 36-47 माह के लड़कों (5.2 सेमी) और लड़कियों (5.5 सेमी) में सर्वाधिक औसत लंबाई वृद्धि पायी गयी. शरीर भार की तरह हर आयु वर्ग में लड़कों की औसत लंबाई लड़कियों से अधिक रही. 5 महीने तक के शिशुओं में अधिकतम लंबाई वृद्धि देखी गयी. जहां NFHS-5 में लड़कों ने 8.0 सेमी और लड़कियों ने 7.8 सेमी लंबाई बढ़ाई.

ऊंचाई, भार और बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) के Z-स्कोर

दरअसल, बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) के Z-स्कोर का इस्तेमाल शिशुओं के मोटापे का आकलन करने किया जाता है. बीएमआई की गणना किसी व्यक्ति की ऊंचाई और वजन के आधार पर की जाती है. इस अध्ययन में WHO के मानकों के आधार पर भारतीय बच्चों के Z-स्कोर का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया.
ऊंचाई-आयु (HAZ), भार-आयु (WAZ), भार-ऊंचाई (WHZ) और BMI-आयु (BAZ) के Z-स्कोर में समय के साथ सुधार देखा गया, लेकिन ये सुधार WHZ और BAZ स्कोर में अपेक्षाकृत धीमी वृद्धि दर्ज की गयी. जो खाद्य असुरक्षा और मातृ कुपोषण से जुड़े मुद्दों को दर्शाती है.

Indian Child Development Research
बच्चों के पोषण में सुधार (ETV Bharat)

क्या कहते हैं अध्ययन के परिणाम

परिणाम बताते हैं कि भारत में बच्चों की पोषण स्थिति में सुधार हो रहा है, लेकिन कुछ चुनौतियां अब भी बनी हुई है. इस अध्ययन में बच्चों के शारीरिक विकास में सुधार और भारत की आर्थिक प्रगति के बीच संबंध स्थापित करके भी विश्लेषण किया गया. 1991 में तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार के आर्थिक सुधारों के बाद गरीबी दर में कमी आई और जीवन स्तर में सुधार हुआ. 2005 से 2010 के बीच भारत की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर 2005 से 2010 के बीच 1.8% से बढ़कर 2.7% पहुंच गई.

सागर के वैज्ञानिकों की खोज से थम जाएगी उम्र, बेशकीमती चाय और क्रीम से रहेंगे जवान

1990-91 में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय 6 हजार 126 रुपए थी, जो 2020-21 में बढ़कर 1 लाख 26 हजार 855 रुपए हो गयी. 2010 से लेकर 2012 के बीच लगभग 85 मिलियन लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठे. 2015-2016 में देश की 21 फीसदी आबादी पोषण आहार से वंचित थी, अब ये घटकर 11.8% रह गई. स्वच्छता और आवास सुविधाओं में भी सुधार की दृष्टि से 2015-16 में वंचित आबादी 21.1% और 23.5% थी, जो 2019-21 में घटकर 11.3% और 13.6% रह गई.

नीतिगत सिफारिशें और भविष्य की रणनीतियां

अध्ययन से निष्कर्ष निकाला गया कि भारत में बाल कुपोषण खत्म करने के लिए लगातार प्रयास जरूरी है. अध्ययन कर्ताओं ने कुछ सुझाव भी दिए हैं. जिनमें मातृ एवं शिशु पोषण कार्यक्रमों को मजबूत बनाना, ताकि जन्म के समय कम भार और कुपोषण की समस्या को रोका जा सके. खाद्य सुरक्षा और पोषण आहार की व्यवस्था सुनिश्चित करना, ताकि बच्चों और गर्भवती महिलाओं को उचित पोषण मिले.

एमपी की इस सेंट्रल यूनिवर्सिटी से सीखें दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली चौथी भाषा

एमपी में 5 लाख 41 हजार बच्चे कुपोषित, 34 हजार आंगनबाड़ियों के पास नहीं है भवन

सामाजिक-आर्थिक विकास नीतियों को मजबूत करना, ताकि स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और स्वच्छ पानी तक पहुंच बढ़ाई जा सके. पर्यावरण के लिहाज से अनुकूल खेती को बढ़ावा देना, ताकि कृषि उत्पादन और खाद्य उपलब्धता को बढ़ाया जा सके. सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के जरिए से पोषण के लिए पूरक आहार प्रदान करना. सतत खाद्य सुरक्षा और पौष्टिक आहार के लिए जागरूकता बढ़ाना.

सागर (कपिल तिवारी): दुनिया में सबसे बड़ी आबादी के साथ चल रहे भारत देश में बच्चों में कुपोषण की समस्या बड़ी है. हालांकि सरकारों ने पिछले कुछ दशकों में समस्या से निपटने के कई प्रयास किए. जिसके बेहतर परिणाम अब नजर आने लगे हैं. दरअसल, सागर यूनिवर्सिटी के मानव विज्ञान विभाग, भारतीय सांख्यिकी संस्थान, यूरोप और अमेरिका के वैज्ञानिकों द्वारा किए शोध में ये बात सामने आयी है. इन वैज्ञानिकों ने पिछले तीन दशकों के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण का अध्ययन किया.

जिसमें पाया गया कि अब भारत के बच्चों में पोषण और वृद्धि में सुधार हो रहा है. फिलहाल ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि WHO के मानक स्तर से अभी भी कम है. अध्ययन में ये भी सामने आया कि 1990 के दशक में सरकार ने बच्चों में कुपोषण की स्थिति देखते हुए आंगनबाड़ी, मिड डे मील और 2000 के दशक में मनरेगा, 2010 के दशक में स्वच्छता अभियान जैसी योजनाओं के कारण सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार के कारण ये सुखद परिणाम सामने आए हैं.

3 दशक में 5 लाख से अधिक शिशुओं पर अध्ययन

दरअसल "भारत में प्रारंभिक बाल्यावस्था की संवृद्धि और पोषण स्थिति- 1992 से 2021 तक पांच राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षणों में प्रवृत्तियां "विषय पर डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर, भारतीय सांख्यिकी संस्थान कोलकाता, पश्चिम बंगाल स्टेट यूनिवर्सिटी कोलकाता, एडम मिकिविज़ विश्वविद्यालय पोलैंड, यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास ऑस्टिन, अमेरिका, यूनिवर्सिटी ऑफ लुइसविले अमेरिका के मानव विज्ञानियों और विषय विशेषज्ञों ने ये अध्ययन किया है. जिसे प्रतिष्ठित यूरोपियन जर्नल यूरोपियन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन ने प्रकाशित किया है.

क्या कहना है सागर मानव विज्ञान के प्रोफेसर का (ETV Bharat)

अध्ययन का नेतृत्व सागर यूनिवर्सिटी के मानव विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजेश के. गौतम और भारतीय सांख्यिकी संस्थान के डॉ. प्रेमानंद भारती ने किया है. अध्ययन में 5 लाख 5 हजार 26 बच्चों के शरीर संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण किया गया, जो 1992 से 2021 तक पांच राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षणों (NFHS) से संकलित किए गए थे.

5 लाख से ज्यादा बच्चों के अध्ययन के निष्कर्ष

यह अध्ययन शरीर के भार, लंबाई (ऊंचाई) और पोषण स्थिति में बदलाव के विस्तृत विश्लेषण के आधार पर किया गया है. जिसमें भारत में हुए आर्थिक और सामाजिक बदलाव का बच्चों के स्वास्थ्य पर असर को दर्शाया गया है.

भार में वृद्धि

पांच NFHS सर्वेक्षणों के दौरान सभी आयु समूह के शिशुओं में औसत शरीर भार में लगातार बढ़ोत्तरी देखी गयी. 18-23 माह के बच्चों में सबसे अधिक औसत भार वृद्धि (0.9 किलोग्राम) दर्ज की गयी. वहीं सबसे अधिक भार वृद्धि 18-35 माह के लड़कों में 0.9 किलोग्राम और 36-47 माह की लड़कियों में 1.0 किलोग्राम देखी गयी. 6 माह तक शिशुओं में अधिकतम भार वृद्धि दर्ज की गई है. जहां NFHS-5 में लड़कों ने 1.9 किलोग्राम और लड़कियों ने 1.7 किलोग्राम वजन बढ़ाया. लड़कों का औसत भार हर आयु वर्ग में लड़कियों की तुलना में अधिक पाया गया, जिसमें अधिकतम अंतर 6-8 माह की उम्र में (0.8 किलोग्राम) था.

SAGAR ANTHROPOLOGICAL RESEARCH
सागर यूनिवर्सिटी का मानव विज्ञान विभाग (ETV Bharat)

लंबाई (ऊंचाई) में परिवर्तन

NFHS के पांचों सर्वेक्षणों में औसत लंबाई में लगातार वृद्धि देखी गयी. 18-23 माह की उम्र में सबसे अधिक (3 सेमी) की लंबाई वृद्धि दर्ज की गई. 36-47 माह के लड़कों (5.2 सेमी) और लड़कियों (5.5 सेमी) में सर्वाधिक औसत लंबाई वृद्धि पायी गयी. शरीर भार की तरह हर आयु वर्ग में लड़कों की औसत लंबाई लड़कियों से अधिक रही. 5 महीने तक के शिशुओं में अधिकतम लंबाई वृद्धि देखी गयी. जहां NFHS-5 में लड़कों ने 8.0 सेमी और लड़कियों ने 7.8 सेमी लंबाई बढ़ाई.

ऊंचाई, भार और बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) के Z-स्कोर

दरअसल, बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) के Z-स्कोर का इस्तेमाल शिशुओं के मोटापे का आकलन करने किया जाता है. बीएमआई की गणना किसी व्यक्ति की ऊंचाई और वजन के आधार पर की जाती है. इस अध्ययन में WHO के मानकों के आधार पर भारतीय बच्चों के Z-स्कोर का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया.
ऊंचाई-आयु (HAZ), भार-आयु (WAZ), भार-ऊंचाई (WHZ) और BMI-आयु (BAZ) के Z-स्कोर में समय के साथ सुधार देखा गया, लेकिन ये सुधार WHZ और BAZ स्कोर में अपेक्षाकृत धीमी वृद्धि दर्ज की गयी. जो खाद्य असुरक्षा और मातृ कुपोषण से जुड़े मुद्दों को दर्शाती है.

Indian Child Development Research
बच्चों के पोषण में सुधार (ETV Bharat)

क्या कहते हैं अध्ययन के परिणाम

परिणाम बताते हैं कि भारत में बच्चों की पोषण स्थिति में सुधार हो रहा है, लेकिन कुछ चुनौतियां अब भी बनी हुई है. इस अध्ययन में बच्चों के शारीरिक विकास में सुधार और भारत की आर्थिक प्रगति के बीच संबंध स्थापित करके भी विश्लेषण किया गया. 1991 में तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार के आर्थिक सुधारों के बाद गरीबी दर में कमी आई और जीवन स्तर में सुधार हुआ. 2005 से 2010 के बीच भारत की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर 2005 से 2010 के बीच 1.8% से बढ़कर 2.7% पहुंच गई.

सागर के वैज्ञानिकों की खोज से थम जाएगी उम्र, बेशकीमती चाय और क्रीम से रहेंगे जवान

1990-91 में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय 6 हजार 126 रुपए थी, जो 2020-21 में बढ़कर 1 लाख 26 हजार 855 रुपए हो गयी. 2010 से लेकर 2012 के बीच लगभग 85 मिलियन लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठे. 2015-2016 में देश की 21 फीसदी आबादी पोषण आहार से वंचित थी, अब ये घटकर 11.8% रह गई. स्वच्छता और आवास सुविधाओं में भी सुधार की दृष्टि से 2015-16 में वंचित आबादी 21.1% और 23.5% थी, जो 2019-21 में घटकर 11.3% और 13.6% रह गई.

नीतिगत सिफारिशें और भविष्य की रणनीतियां

अध्ययन से निष्कर्ष निकाला गया कि भारत में बाल कुपोषण खत्म करने के लिए लगातार प्रयास जरूरी है. अध्ययन कर्ताओं ने कुछ सुझाव भी दिए हैं. जिनमें मातृ एवं शिशु पोषण कार्यक्रमों को मजबूत बनाना, ताकि जन्म के समय कम भार और कुपोषण की समस्या को रोका जा सके. खाद्य सुरक्षा और पोषण आहार की व्यवस्था सुनिश्चित करना, ताकि बच्चों और गर्भवती महिलाओं को उचित पोषण मिले.

एमपी की इस सेंट्रल यूनिवर्सिटी से सीखें दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली चौथी भाषा

एमपी में 5 लाख 41 हजार बच्चे कुपोषित, 34 हजार आंगनबाड़ियों के पास नहीं है भवन

सामाजिक-आर्थिक विकास नीतियों को मजबूत करना, ताकि स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और स्वच्छ पानी तक पहुंच बढ़ाई जा सके. पर्यावरण के लिहाज से अनुकूल खेती को बढ़ावा देना, ताकि कृषि उत्पादन और खाद्य उपलब्धता को बढ़ाया जा सके. सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के जरिए से पोषण के लिए पूरक आहार प्रदान करना. सतत खाद्य सुरक्षा और पौष्टिक आहार के लिए जागरूकता बढ़ाना.

Last Updated : Feb 5, 2025, 9:29 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.