हजारीबाग: जिला में स्थित चावल अनुसंधान केंद्र ने पूरे देश में अपनी अलग पहचान बनाई है. केंद्रीय वर्षाश्रित उपराऊं भूमि चावल अनुसंधान केंद्र ने 15 से अधिक धान की नई प्रजाति किसानों को उपलब्ध कराए हैं. इसका परिणाम यह मिला कि किसान कम पैसे और संसाधन में धान की अधिक से अधिक पैदावार कर पा रहे हैं.
इन दिनों धान की बंपर खेती के बारे में हर ओर चर्चा हो रही है. किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की है कि आखिर किसान धान की बंपर खेती कैसे कर पाते हैं. इसके पीछे कृषि वैज्ञानिकों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है. केंद्रीय उपराऊं भूमि वर्षाश्रित चावल अनुसंधान केंद्र डेमोटांड़, जो राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान कटक (ओडिशा) की ईकाई है, इसने देश को 15 से अधिक धान की नई प्रजाति दी है. जिसका उपयोग कर किसान बंपर खेती कर पाते हैं. यह अनुसंधान केंद्र किसानों के लिए मील का पत्थर साबित हो रहा है. नई प्रजाति के साथ-साथ धान में होने वाले बीमारी से बचाव के लिए भी इस संस्था काम करती है.
सबसे पहली प्रजाति वंदना थी जो 90 से 95 दिनों में ऊपज देती है. मध्यम भूमि के लिए यहां की विकसित प्रमुख प्रजाति में सहभागी धान और सूखा आधारित प्रजाति आईआर 64 सूखा प्रमुख है. पिछले दो सालों में CR320, CR804 नये प्रजाति का धान विकसित किया गया. जिसका उपज भी बेहतर हो रहा है. महिला किसान बताती हैं कि इस संस्था से जुड़कर बहुत फायदा हो रहा है. पहले से डेढ़ गुना से अधिक धान की खेती हो रही है. जिससे बेहतर मुनाफा भी हो है. महिला किसान कहती है कि चावल अनुसंधान केंद्र से लिया गया बीज से बेहतर उपज हुआ है.
इस केंद्र की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य उपराऊं भूमि में चावल की उत्पादकता बढ़ाना, स्थानीय प्रजाति को ऊपरी जमीन के लिए विकसित करना तथा धान आधारित फसल चक्र को बढ़ावा देना था. वर्तमान में उपराऊं भूमि चावल अनुसंधान केंद्र में सूखा रोधी किस्म के विकास पर विशेष बल दिया जा रहा है. जिला के मासीपीढ़ी में सन 1980 में केंद्रीय चावल अनुसंधान सेंटर की स्थापना की गई थी. 1983 में इसे सब स्टेशन और 1986 में अलग उपजाऊ भूमि चावल अनुसंधान केंद्र का दर्जा दे दिया गया.
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