लखीमपुर खीरी : उत्तर प्रदेश के दुधवा टाइगर रिजर्व में अब तक बाड़े में संरक्षित हो रहे गैंडे पुरखों की जमीन पर आजाद होकर घूमेंगे. करीब 100 साल पहले यह गैंड़ों की जगह थी, फिर धीरे-धीरे ये खत्म हो गए थे. 40 साल पहले 1984 में इन्हें फिर से यहां बसाया गया. अब जबकि इनका परिवार बढ़ चला है तो एक निश्चित दायरा इनके रहने के लिए कम पड़ने लगा है. इसलिए अब इनको बाड़े से बाहर खुले जंगल में छोड़ने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. गुरुवार को रघू नाम के बलशाली मेल को डब्लूडब्लूएफ और दुधवा पार्क प्रशासन की टीम ने फेंसिंग एरिया से खुले जंगल में छोड़ दिया. टाइगर रिजर्व के एक्स हैंडल से एक वीडियो भी शेयर किया गया, जिसमें लिखा- 'इतिहास बन गया'. वहीं डब्लूएब्ल्यूएफ ने भी एक्स पर इस ऐतिहासिक इवेंट को साझा किया है.
दुधवा टाइगर रिजर्व की टीम ने बुधवार से ही गैंडों को खुले जंगल में छोड़े जाने की तैयारी शुरू कर दी थी. इसकी पूरी तैयारी कर ली गई थी. बेहोशी की दवा, ट्रेंकुलाइजिंग गन से लेकर ट्रांसपोर्ट टीम और अलग-अलग जिम्मेदारी को संभाल रहे कॉउन्टरपार्ट्स को लगाया गया था. दुधवा के फील्ड डायरेक्टर ललित वर्मा ने बताया कि रघू नाम के गैंडे को सलूकापुर गैंडा पुनर्वास केंद्र से लाकर रेडियो कालर लगाया गया. फिर मेडिकल टीम की जांच के बाद ट्रांसपोर्ट टीम ने गैंडे को पिंजरे में कैद कर उस जगह पहुंचाया, जहां से उसे छोड़ा जाना था. इस पूरी प्रक्रिया में कुछ मुश्किलें आईं पर टीमें लगी हुई थीं. सबने अपनी अपनी जिम्मेदारी पूरी की. पहली खेप में चार गैंडों को बाड़े के बाहर छोड़ा जाएगा. यह काम इसी महीने पूरा करना है. प्रयोग सफल रहा तो संख्या बढ़ाई जाएगी.
History has been made:
— Dudhwa Tiger Reserve (@DudhwaTR) November 28, 2024
The first of the free-ranged rhinos at the Dudhwa Tiger Reserve. #UnicornReturns@PMOIndia @moefcc @ntca_india @UpforestUp @kaziranga_ @ifs_lalit @raju2179 @CMOfficeUP @WWFINDIA @i3masterminds pic.twitter.com/qEScZ3T5yd
सरकार ने दी है परमिशन: दुधवा के डायरेक्टर ललित वर्मा बताते हैं कि अभी चार गैंडों को बाहर छोड़े जाने की परमिशन भारत और उत्तर प्रदेश की सरकार ने दी है. अगर प्रयोग सफल रहा तो गैंडों की संख्या बढ़ाई जाएगी. दुधवा टाइगर रिजर्व में इन दिनों देश के बड़े गैंडा एक्सपर्ट आए हुए हैं. भारत सरकार गैंडों को अब फेन्स से बाहर खुले में छोड़ना चाहती है. तराई की धरती पर गैंडों की आबादी अब बढ़ चुकी है. फेज वन गैंडा पुनर्वास केंद्र में गैंडों की तादात करीब 48 हो गई. सोनारीपुर रेंज में गैंडों का कुनबा है.

गैंडों को बाहर छोड़ने के लिए काजीरंगा से आए एक्सपर्ट: गैंडों को खुले में छोड़ने के लिए असम के काजीरंगा नेशनल पार्क से एक्सपर्ट्स को बुलाया गया है. गैंडों को बेहोश कर कालर आईडी लगाई जाएगी. दुधवा के एफडी ललित वर्मा बताते हैं, गैंडों को छोड़ने की तीन दिनों की एक जटिल प्रक्रिया है. पहले बेहोश किए जाएंगे. फिर रेडियो कॉलर लगेंगे. इसके बाद ट्रांस पोर्टिंग की व्यवस्था कर बाहर छोड़े जाएंगे.

पिछले 40 सालों में 50 होने को है संख्या, कम पड़ रही जगह: दुधवा में गैंडों की तादात अब फेंसिंग एरिया में ज्यादा होने लगी थी. इससे कई बार आपसी भिड़ंत की घटनाएं होने लगी थीं. दुधवा पार्क में मिली सुरक्षा और यहां की आबोहवा में गैंडों की तादात पिछले करीब 40 सालों में 50 तक पहुंचने को है. दुधवा के फील्ड डायरेक्टर कहते हैं, खुले में गैंडों को छोड़ना अभी एक प्रयोग है. हम देखेंगे कि गैंडे कैसे बिहेव करते हैं और अपना सर्वाइवल कैसे करते हैं. तराई की यह जमीन कभी गैंडों की थी.
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11 गैंडों को किया गया है चिन्हित: बाड़े के बाहर गैंडों को खुले में छोड़े जाने के पहले दुधवा पार्क प्रशासन ने सलूकापुर रेंज में पुनर्वास केंद्र फेज वन में 11 गैंडों को चिन्हित किया है. इसमें से चार गैंडों को बाहर छोड़ा जाएगा. एक्सपटर्स की टीमें हाथियों से गैंडों को बेहोश कर काबू करेंगे. फिर मेडिकल टीमें और एक्सपर्ट्स गैंडों का मेडिकल परीक्षण कर कॉलर लगा उन्हें बाहर छोड़ेंगे. इस कड़ी में पहले मेल गैंडे को छोड़ा गया है.
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1984 में नेपाल और असम से लाए गए थे गैंडे: 1984 में गैंडों को तराई की धरती पर बसाने के लिए दुधवा टाइगर रिजर्व का चयन वाइल्डलाइफ के एक्सपर्ट्स ने किया था. यहां गैंडों के भोजन के लिए घास के मैदान और बड़े-बड़े ताल तलैया, वेटलैंड्स मौजूद हैं. जो गैंडों के पालन-पोषण के लिए अच्छी अनुकूल जगह मानी जाती है. इसलिए दुधवा टाइगर रिजर्व के सलूकापुर में गैंडा पुनर्वास योजना 1984 में शुरू की गई थी. इसमें असम से पांच गैंडों को लाया गया था, लेकिन शुरुआत में कुछ गैंडों की मौत हो गई थी. इसके बाद फिर नेपाल से लाकर गैंडों को बसाया गया. दुधवा में अब गैंडों की तादाद 50 के करीब हो चुकी है. दुधवा टाइगर रिजर्व में गैंडा पुनर्वास फेज 2 भी लॉन्च किया जा चुका है. वह भी सफलतापूर्वक चल रहा है, जो बेलरायां रेंज में भादी ताल में शुरू किया गया था.
पार्क में अभी 48 गैंडे : दुधवा में गैंडों का कुनबा फूलफूल रहा है. फिलहाल यहां 48 गैंडे हैं. करीब 40 साल पहले गैंडों के परिवार को पुरखों की धरती पर 100 साल बाद बसाया गया था. यहां कभी गैंडों की काफी तादात थी, लेकिन ये विलुप्त हो गए. इसके बाद फिर से इनकी धरती पर इन्हें बसाया गया. अब इनकी संख्या बढ़ रही है.
25 साल रहा यहां बांके का राज : करीब 25 साल तक यहां बांके नाम के गैंडे का राज रहा. बांके के जिंदा रहने तक किसी दूसरे गैंडे ने अपना राज कायम करने की हिमाकत नहीं की. अब बांके की मौत हो चुकी है. अब बांके की सत्ता पर रघु, विजय' और पवन नाम के युवा गैंडों में दबदबा बनाए रखने को लेकर द्वंद चल रहा है. गैंडों का सरदार बनने के लिए तीनों आमने-सामने हैं. जोश और ताकत से भरे इन तीनों गैंडों में आए दिन भिड़ंत हो जाती है.