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पाकिस्‍तान से आए 300 सिखों ने पटना में शुरू किया था रावण दहन, मात्र 300 रुपये से हुई थी शुरुआत

देश में नवरात्रि की धूम है. पटना के गांधी मैदान रावण दहन उत्सव खास होता है. 69 वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 11, 2024, 7:29 PM IST

पटना: बिहार के सबसे ग्रैंड रावण दहन का इतिहास की कहानी काफी रोचक है. पटना के गांधी मैदान में होने वाले रावण वध की परंपरा की शुरुआत बिहार के लोगों ने नहीं की है बल्कि इसकी शुरुआत हिंदू धर्म की रक्षा के लिए बने सिख पंथ के लोगों ने आजादी से पहले रावण दहन की परंपरा थी. उस वक्त 50 पैसे से लेकर 2 रु तक के सहयोग कुल 300 रु के चंदा इकट्ठा कर रावण दहन की शुरुआत की गई थी.

पटना में 1955 से हो रहा रावण दहन: सिख पंथ के ये लोग देश के बंटवारे का दंश झेलकर भारत के पाकिस्‍तान वाले हिस्‍से, लाहौर से भाग कर बिहार आए थे. विभाजन के बाद 300 लोग पंजाब से बिहार आए. जिन्‍होंने पटना के गांधी मैदान में रावण दहन की ठानी. इसकी नींव 1954 में रखी गई थी. पलायन के बाद बिहार आए बक्‍शी राम गांधी और उनके भाई मोहन लाल गांधी जो मूल रूप से लाहौर के थे. उन्‍होंने ही रावण दहन की शुरुआत की.

श्री दशहरा कमेटी ट्रस्ट पटना के चेयरमैन कमल नोपानी (ETV Bharat)

पटना के आर ब्लॉक चौराहा रावण दहन: 1954 में श्री दशहरा कमेटी ट्रस्ट का निर्माण किया और साल 1955 में रावण दहन किया. पलायन के वक्त दोनों भाईयों के साथ टीआर मेहता, राधाकृष्ण मल्होत्रा, ओपी कोचर, पीके कोचर, किशन लाल सचदेवा ने एक समिति बनाकर राजधानी पटना में रावण दहन के कार्यक्रम की शुरुआत की. 1955 में पहली बार पटना के आर ब्लॉक चौराहा के बगल में रावण दहन का कार्यक्रम की शुरुआत की गई. हांलाकि 69 साल के सफर में चार दफा रावण दहन नहीं हो पाया था.

300 रु से शुरू हुआ कार्यक्रम: पहली बार जब रावण दहन का कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई तो लोगों से सहयोग के रूप में 50 पैसे से लेकर 2 रु तक का सहयोग मिला. कुल मिलाकर 300 रु के आसपास चंदा इकट्ठा हुआ था. इसी चंदे की राशि से रावण दहन एवं रामलीला का आयोजन किया गया.

ETV Bharat GFX1
ETV Bharat GFX1 (ETV Bharat)

30 लाख का हुआ बजट: दशहरा कमेटी के चैयरमैन कमल नोपानी ने बताया कि रावण दहन एवं रामलीला का कार्यक्रम जब शुरू हुआ था तब 300 रु से इसकी शुरुआत हुई थी. 1980 ई तक चंदा दाताओं की संख्या 5 रु से 50 रु तक हुई. 1984 के बाद चंदा की राशि 100 रु तक पहुंची और चांदा के रूप में कुल 18 से 20 हजार तक इकट्ठा होने लगे. इसी से कार्यक्रम होने लगा धीरे-धीरे बढ़ाते बढ़ाते अब यह बजट 30 लाख रुपए हो गया है.

चार बार नहीं हो सका रावण वध का कार्यक्रम: श्री दशहरा कमेटी ट्रस्ट पटना के चैयरमैन कमल नोपानी दिन बताया कि 1955 से शुरू हुई यह परंपरा बीच में चार बार रोकना पड़ा था. पहली बार 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय इस आयोजन को रोका गया था. दूसरी बार 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के कारण तीसरी बार 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के कारण आयोजन नहीं हो सका था.

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ETV Bharat GFX2 (ETV Bharat)

1975 की बाढ़ ने रावण दहन में डाला था खलल: बता दें कि आखरी बार 1975 में पटना में भयावह बाढ़ के कारण रावणदहन एवं रामलीला कार्यक्रम का आयोजन नहीं हो सका. कोरोना काल में भी रावण दहन का कार्यक्रम स्थगित नहीं हुआ. 2021 में वृंदावन में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था जिसमें दशहरा कमेटी के 5 सदस्य वृंदावन जाकर रावण दहन का कार्यक्रम किया। 2022 में पटना के कालिदास रंगालय में छोटा पुतला बनाकर भी इस कार्यक्रम को किया.

1990 में लालू यादव हुए शामिल: बक्‍शी राम गांधी और मोहनलाल गांधी के द्वारा का शुरू किया गया रावण दहन कार्यक्रम आज वृहद रूप ले लिया है. गांधी मैदान में दशहरा का आयोजन की भव्यता 1990 के बाद आयी है. इसे ब्रांड बनाने में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद की अहम भूमिका रही है. लालू प्रसाद बिहार के पहले मुख्यमंत्री हैं जो गांधी मैदान में पाकिस्तान से आये समाज की ओर से आयोजित इस रावण दहन कार्यक्रम में शामिल हुए.

पटना में रावण दहन
पटना में रावण दहन (ETV Bharat)

किसानों के पैसे से होता था रावण लंका दहन: जब दशहरा कमेटी का निर्माण हुआ और पटना में रावण वध की शुरुआत हुई तब रावण वध का पैसा किसानों के चंदे से होता था. इस कार्यक्रम में अब बिहार के राज्यपाल मुख्यमंत्री समेत बड़े नेता भाग लेने आते हैं.

"1955 में 50 पैसे से लेकर 2 रु तक का चंदा मिला. उस वक्त करीब 300 रु के आसपास चंदा इकट्ठा हुआ था. इसी चंदे की राशि से रावण दहन एवं रामलीला का आयोजन किया गया. 1955 से शुरू हुई यह परंपरा बीच में चार बार रोकना पड़ा था." - कमल नोपानी, चेयरमैन, श्री दशहरा कमेटी ट्रस्ट, पटना

रामलीला कार्यक्रम का मंचन: 1984 में पटना के मिलर हाई स्कूल मैदान में रामलीला कार्यक्रम का आयोजन शुरू हुआ था. इसके बाद रामलीला का कार्यक्रम नागा बाबा अखाड़ा वृंदावन की मंडली आती है. उसी के द्वारा रामलीला कार्यक्रम का आयोजन होता है. रावण दहन कार्यक्रम के अगले दिन नागा बाबा अखाड़ा में भारत मिलाप का कार्यक्रम होता है जो बहुत ही अद्भुत कार्यक्रम होता है.

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पटना: बिहार के सबसे ग्रैंड रावण दहन का इतिहास की कहानी काफी रोचक है. पटना के गांधी मैदान में होने वाले रावण वध की परंपरा की शुरुआत बिहार के लोगों ने नहीं की है बल्कि इसकी शुरुआत हिंदू धर्म की रक्षा के लिए बने सिख पंथ के लोगों ने आजादी से पहले रावण दहन की परंपरा थी. उस वक्त 50 पैसे से लेकर 2 रु तक के सहयोग कुल 300 रु के चंदा इकट्ठा कर रावण दहन की शुरुआत की गई थी.

पटना में 1955 से हो रहा रावण दहन: सिख पंथ के ये लोग देश के बंटवारे का दंश झेलकर भारत के पाकिस्‍तान वाले हिस्‍से, लाहौर से भाग कर बिहार आए थे. विभाजन के बाद 300 लोग पंजाब से बिहार आए. जिन्‍होंने पटना के गांधी मैदान में रावण दहन की ठानी. इसकी नींव 1954 में रखी गई थी. पलायन के बाद बिहार आए बक्‍शी राम गांधी और उनके भाई मोहन लाल गांधी जो मूल रूप से लाहौर के थे. उन्‍होंने ही रावण दहन की शुरुआत की.

श्री दशहरा कमेटी ट्रस्ट पटना के चेयरमैन कमल नोपानी (ETV Bharat)

पटना के आर ब्लॉक चौराहा रावण दहन: 1954 में श्री दशहरा कमेटी ट्रस्ट का निर्माण किया और साल 1955 में रावण दहन किया. पलायन के वक्त दोनों भाईयों के साथ टीआर मेहता, राधाकृष्ण मल्होत्रा, ओपी कोचर, पीके कोचर, किशन लाल सचदेवा ने एक समिति बनाकर राजधानी पटना में रावण दहन के कार्यक्रम की शुरुआत की. 1955 में पहली बार पटना के आर ब्लॉक चौराहा के बगल में रावण दहन का कार्यक्रम की शुरुआत की गई. हांलाकि 69 साल के सफर में चार दफा रावण दहन नहीं हो पाया था.

300 रु से शुरू हुआ कार्यक्रम: पहली बार जब रावण दहन का कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई तो लोगों से सहयोग के रूप में 50 पैसे से लेकर 2 रु तक का सहयोग मिला. कुल मिलाकर 300 रु के आसपास चंदा इकट्ठा हुआ था. इसी चंदे की राशि से रावण दहन एवं रामलीला का आयोजन किया गया.

ETV Bharat GFX1
ETV Bharat GFX1 (ETV Bharat)

30 लाख का हुआ बजट: दशहरा कमेटी के चैयरमैन कमल नोपानी ने बताया कि रावण दहन एवं रामलीला का कार्यक्रम जब शुरू हुआ था तब 300 रु से इसकी शुरुआत हुई थी. 1980 ई तक चंदा दाताओं की संख्या 5 रु से 50 रु तक हुई. 1984 के बाद चंदा की राशि 100 रु तक पहुंची और चांदा के रूप में कुल 18 से 20 हजार तक इकट्ठा होने लगे. इसी से कार्यक्रम होने लगा धीरे-धीरे बढ़ाते बढ़ाते अब यह बजट 30 लाख रुपए हो गया है.

चार बार नहीं हो सका रावण वध का कार्यक्रम: श्री दशहरा कमेटी ट्रस्ट पटना के चैयरमैन कमल नोपानी दिन बताया कि 1955 से शुरू हुई यह परंपरा बीच में चार बार रोकना पड़ा था. पहली बार 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय इस आयोजन को रोका गया था. दूसरी बार 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के कारण तीसरी बार 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के कारण आयोजन नहीं हो सका था.

ETV Bharat GFX2
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1975 की बाढ़ ने रावण दहन में डाला था खलल: बता दें कि आखरी बार 1975 में पटना में भयावह बाढ़ के कारण रावणदहन एवं रामलीला कार्यक्रम का आयोजन नहीं हो सका. कोरोना काल में भी रावण दहन का कार्यक्रम स्थगित नहीं हुआ. 2021 में वृंदावन में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था जिसमें दशहरा कमेटी के 5 सदस्य वृंदावन जाकर रावण दहन का कार्यक्रम किया। 2022 में पटना के कालिदास रंगालय में छोटा पुतला बनाकर भी इस कार्यक्रम को किया.

1990 में लालू यादव हुए शामिल: बक्‍शी राम गांधी और मोहनलाल गांधी के द्वारा का शुरू किया गया रावण दहन कार्यक्रम आज वृहद रूप ले लिया है. गांधी मैदान में दशहरा का आयोजन की भव्यता 1990 के बाद आयी है. इसे ब्रांड बनाने में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद की अहम भूमिका रही है. लालू प्रसाद बिहार के पहले मुख्यमंत्री हैं जो गांधी मैदान में पाकिस्तान से आये समाज की ओर से आयोजित इस रावण दहन कार्यक्रम में शामिल हुए.

पटना में रावण दहन
पटना में रावण दहन (ETV Bharat)

किसानों के पैसे से होता था रावण लंका दहन: जब दशहरा कमेटी का निर्माण हुआ और पटना में रावण वध की शुरुआत हुई तब रावण वध का पैसा किसानों के चंदे से होता था. इस कार्यक्रम में अब बिहार के राज्यपाल मुख्यमंत्री समेत बड़े नेता भाग लेने आते हैं.

"1955 में 50 पैसे से लेकर 2 रु तक का चंदा मिला. उस वक्त करीब 300 रु के आसपास चंदा इकट्ठा हुआ था. इसी चंदे की राशि से रावण दहन एवं रामलीला का आयोजन किया गया. 1955 से शुरू हुई यह परंपरा बीच में चार बार रोकना पड़ा था." - कमल नोपानी, चेयरमैन, श्री दशहरा कमेटी ट्रस्ट, पटना

रामलीला कार्यक्रम का मंचन: 1984 में पटना के मिलर हाई स्कूल मैदान में रामलीला कार्यक्रम का आयोजन शुरू हुआ था. इसके बाद रामलीला का कार्यक्रम नागा बाबा अखाड़ा वृंदावन की मंडली आती है. उसी के द्वारा रामलीला कार्यक्रम का आयोजन होता है. रावण दहन कार्यक्रम के अगले दिन नागा बाबा अखाड़ा में भारत मिलाप का कार्यक्रम होता है जो बहुत ही अद्भुत कार्यक्रम होता है.

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