रतलाम। जिले में तत्कालीन कलेक्टर द्वारा 1956-57 के रिकॉर्ड के अनुसार शासकीय जमीनों के नामांतरण नहीं किए जाने के आदेश के चलते लंबे समय से करीब ढाई हजार सर्वे नंबरों का नामांतरण नहीं हो पा रहा है, लेकिन जिले के राजस्व अधिकारियों ने कुछ चुनिंदा लोगों के नामांतरण कर दिए हैं. जिसे लेकर अब जिला पंचायत सदस्य व किसान नेता डीपी धाकड़ ने मोर्चा खोल दिया है.
जिला कलेक्टर से की गई शिकायत
डीपी धाकड़ का आरोप है कि जिले के करीब ढाई हजार किसान नामांतरण के लिए पिछले दो-तीन सालों से परेशान हो रहे हैं. यह वह किसान हैं जिनके सर्वे नंबर 1956-57 के रिकॉर्ड में शासकीय दर्ज हैं, लेकिन अब कुछ राजस्व अधिकारी नियम को तोड़ मरोड़कर रसूखदारों की जमीनों के नामांतरण कर खुलेआम भ्रष्टाचार कर रहे हैं. यह शिकायत जिला पंचायत कृषि समिति के अध्यक्ष डीपी धाकड़ ने दस्तावेज के साथ कलेक्टर से की है. किसान नेता डीपी धाकड़ का कहना है कि ''सन 1956-57 के रिकार्ड में जो भूमि शासकीय थी, उसे शासकीय ही घोषित किया जाना चाहिए या फिर किसी कारण से परिवर्तित की गई है तो उसका रिकॉर्ड नामांतरण में उल्लेखित किया जाना चाहिए. वर्तमान में जो अवधि निश्चित की गई है, उसके रिकॉर्ड ही भू-अभिलेख के पास उपलब्ध नहीं है. इस समस्या से रतलाम के सभी जमीन विक्रेता परेशान हैं और शासन को स्टाम्प ड्यूटी भर कर भी ठगा महसूस कर रहे हैं.''
मृत व्यक्ति का कर दिया गया नामांतरण
धाकड़ ने बताया कि हजारों लोगों के नामांतरण निरस्त किए जा रहे हैं. वहीं, ऐसे नामांतरण आसानी से हो रहे हैं जिनमें तकनीकी दिक्कतें हैं. इससे राजस्व अधिकारियों की सांठगांठ साफ पता चल रही है. किसान नेता ने दस्तावेज प्रस्तुत कर बताया कि मृत व्यक्ति का भी नामांतरण राजस्व विभाग ने कर दिया है, जबकि हजारों जीवित नामांतरण के लिए परेशान हो रहे हैं. ग्राम बंजली के सर्वे नंबर 221/3 में बताया कि ''तहसील न्यायालय ने तीन बार इसे खारिज कर दिया. इसके बाद चौथी बार में नामांतरण हुआ और विक्रेता की मौत हो गई. लेकिन न्यायालय में मृत हो चुके विक्रेता को तामीली होना बताया गया. रुपए लेकर इन राजस्व अधिकारियों ने बिजली की रफ्तार से तारीख पेशी लगाकर नामांतरण कर दिए, जबकि अन्य मामलों में ऐसा नहीं है.''