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रोजे की नुमाइश से बचें, अल्लाह को पसंद है छिपी हुई इबादत: मौलाना अहमदली खान

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Mar 19, 2024, 4:10 PM IST

Maulana Gave Message To Muslims. मुस्लिम समाज के लोगों में रमजान को लेकर खासा उत्साह दिख रहा है. नियम के अनुसार रमजान में रोजा रखा जाता है. इसके लिए खास और कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है. रमजान में नेकी के काम और अल्लाह की इबादत का खास महत्व है.

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Ramzan Ul Mubarak

पलामू: रमजान उल मुबारक के महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रखने के साथ अल्लाह की इबादत में अकीदत के साथ जुटे हैं. रोजेदार विभिन्न मस्जिदों में बड़े ही अकीदत और मोहब्बत के साथ विशेष तरावीह की नामज में शामिल हो रहे हैं. रमजान के मौके पर इलाके की मस्जिदों में रोजेदार नमाजियों की भीड़ नमाज पढ़ने के लिए उमड़ रही है.

सदका ए फित्र अदा करना सभी मुसलमानों के लिए जरूरीः मौलाना

भाई बिगहा बड़ी मस्जिद के पेश इमाम मौलाना अहमद अली खान रजवी ने ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत में कहा कि सदका ए फित्र अदा करना सभी मुसलमान भाई-बहन के लिए जरूरी है. उन्होंने कहा कि सामान्य लोग 2.45 किलो गेहूं की कीमत लगभग 65 रुपए प्रति व्यक्ति अदा करेंगे, लेकिन जिन्हें अल्लाह पाक ने नवाजा है वह 490 ग्राम जव, 490 ग्राम खजूर या 490 ग्राम किशमिश की कीमत अदा करेंगे तो बेहतर होगा. इससे गरीबों मिस्किनों की जरूरतें काफी हल हो जाती हैं.

रोजे की नुमाइश से बचें

मौलाना अहमद अली खान रजवी ने कहा कि अल्लाह छिपी हुई इबादत ज्यादा पसंद करता है. इसलिए रोजे की नुमाइश से बचना चाहिए. मौलाना अहमद अली खान रजवी ने कहा कि रोजेदारों को चाहिए कि रोजे के दौरान जिस्म का हर अंग गुनाह और बुरी हरकत से बचा कर रखें. महज भूखा-प्यासा रहना रोजा की सूरत है, न कि हकीकत. पैगम्बरे इस्लाम ने फरमाया है कि कुछ रोजेदार ऐसे होते हैं जिन्हें भूख-प्यास के सिवा कुछ हासिल नहीं होता. इस्लाम जिस रोजा की हिदायत देता है वह यह है कि हम ऐसे अमल करें जिससे अल्लाह और उसके रसूल राजी हो जाएं. रोजेदार खुद को ऐसे ढाल लें जैसे एक आशिक अपने महबूब को खुश करने के लिए भूखा, प्यासा दुनिया की लज्जतों से बेगाना बना हुआ है. मौलाना ने कहा कि रोजा एक अजीमुश्शान इबादत है, जिसका सभी एहतराम करें.

जकात अदा करना सभी मुसलमानों का फर्ज

उन्होंने कहा कि उन सभी लोगों को अपने माल का जकात अदा करना फर्ज है, जो इसके दायरे में आते हैं. उन्होंने कहा कि जकात अदा नहीं करने या उसमें थोड़ा सा भी कम अदा करने का हुक्म नहीं है. उन्होंने कहा कि जिन लोगों पर जकात फर्ज है उन्हें अपने माल व दौलत, सोना-चांदी, रुपए पर 2.5 प्रतिशत जकात निकलना फर्ज है. उन्होंने कहा कि यह अल्लाह का कानून है. इसकी खिलाफवर्जी की बड़ी सजा है. उन्होंने कहा कि सभी दिन अपने आसपास के लोगों की हालत जानना और जरूरत पर उन्हें मदद करने का हुक्म है, लेकिन रमजान उल मुबारक के मौके पर अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों और मिसकिनों की मदद करने से उसका सबब 70 गुणा बढ़ जाता है.

ठहर-ठहर कर कुरान पढ़ें और उसे समझें

उन्होंने आम मुसलमानों को ठहर-ठहर कर कुरान पाक रोज पढ़ने और उसे समझने की बात कही. उन्होंने कहा कि इस तरह कुरान शरीफ को पढ़ने का सबब तो मिलेगा ही, लोग गलत कामों से बच भी जाएंगे. क्योंकि बहुत सारे गैर जरूरी चीजें लोग जानकारी के अभाव में करते हैं. जिसका वह अजाब बटोर लेते हैं. बचने के लिए इस्लाम और कुरआन को समझना जरूरी है.

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भाई बिगहा बड़ी मस्जिद के पेश इमाम मौलाना अहमद अली खान रजवी ने ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत में कहा कि सदका ए फित्र अदा करना सभी मुसलमान भाई-बहन के लिए जरूरी है. उन्होंने कहा कि सामान्य लोग 2.45 किलो गेहूं की कीमत लगभग 65 रुपए प्रति व्यक्ति अदा करेंगे, लेकिन जिन्हें अल्लाह पाक ने नवाजा है वह 490 ग्राम जव, 490 ग्राम खजूर या 490 ग्राम किशमिश की कीमत अदा करेंगे तो बेहतर होगा. इससे गरीबों मिस्किनों की जरूरतें काफी हल हो जाती हैं.

रोजे की नुमाइश से बचें

मौलाना अहमद अली खान रजवी ने कहा कि अल्लाह छिपी हुई इबादत ज्यादा पसंद करता है. इसलिए रोजे की नुमाइश से बचना चाहिए. मौलाना अहमद अली खान रजवी ने कहा कि रोजेदारों को चाहिए कि रोजे के दौरान जिस्म का हर अंग गुनाह और बुरी हरकत से बचा कर रखें. महज भूखा-प्यासा रहना रोजा की सूरत है, न कि हकीकत. पैगम्बरे इस्लाम ने फरमाया है कि कुछ रोजेदार ऐसे होते हैं जिन्हें भूख-प्यास के सिवा कुछ हासिल नहीं होता. इस्लाम जिस रोजा की हिदायत देता है वह यह है कि हम ऐसे अमल करें जिससे अल्लाह और उसके रसूल राजी हो जाएं. रोजेदार खुद को ऐसे ढाल लें जैसे एक आशिक अपने महबूब को खुश करने के लिए भूखा, प्यासा दुनिया की लज्जतों से बेगाना बना हुआ है. मौलाना ने कहा कि रोजा एक अजीमुश्शान इबादत है, जिसका सभी एहतराम करें.

जकात अदा करना सभी मुसलमानों का फर्ज

उन्होंने कहा कि उन सभी लोगों को अपने माल का जकात अदा करना फर्ज है, जो इसके दायरे में आते हैं. उन्होंने कहा कि जकात अदा नहीं करने या उसमें थोड़ा सा भी कम अदा करने का हुक्म नहीं है. उन्होंने कहा कि जिन लोगों पर जकात फर्ज है उन्हें अपने माल व दौलत, सोना-चांदी, रुपए पर 2.5 प्रतिशत जकात निकलना फर्ज है. उन्होंने कहा कि यह अल्लाह का कानून है. इसकी खिलाफवर्जी की बड़ी सजा है. उन्होंने कहा कि सभी दिन अपने आसपास के लोगों की हालत जानना और जरूरत पर उन्हें मदद करने का हुक्म है, लेकिन रमजान उल मुबारक के मौके पर अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों और मिसकिनों की मदद करने से उसका सबब 70 गुणा बढ़ जाता है.

ठहर-ठहर कर कुरान पढ़ें और उसे समझें

उन्होंने आम मुसलमानों को ठहर-ठहर कर कुरान पाक रोज पढ़ने और उसे समझने की बात कही. उन्होंने कहा कि इस तरह कुरान शरीफ को पढ़ने का सबब तो मिलेगा ही, लोग गलत कामों से बच भी जाएंगे. क्योंकि बहुत सारे गैर जरूरी चीजें लोग जानकारी के अभाव में करते हैं. जिसका वह अजाब बटोर लेते हैं. बचने के लिए इस्लाम और कुरआन को समझना जरूरी है.

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