शिमला: देशभर में आज सोमवार को भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का त्योहार रक्षाबंधन मनाया जा रहा है. रक्षाबंधन सिर्फ बहन द्वारा भाई की कलाई पर राखी बांधने मात्र का त्योहार नहीं है, बल्कि रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है. आज बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांध कर अपने भाई की लंबी और स्वस्थ उम्र की कामना करती है. वहीं, भाई भी अपनी बहन को उपहार देते हुए उसकी रक्षा करने का वचन देते हैं.
रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त
आचार्य आशीष कुमार ने बताया कि 19 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन चंद्रमा मकर राशि में होने के कारण भद्रा का निवास पाताल में रहेगा. जिससे पृथ्वी लोक पर भद्रा का कोई प्रभाव नहीं रहेगा, मगर धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक भद्रा की उपस्थिति में भाई की कलाई पर राखी बांधना शुभ नहीं होता है. इसलिए 19 अगस्त को दोपहर 1:29 के बाद भद्रा समाप्त होने के बाद ही बहनें अपने भाइयों के कलाई में रक्षा सूत्र बांध पाएंगी. इसलिए रक्षाबंधन पर दोपहर 1:30 बजे से लेकर शाम 9:00 बजे के बीच राखी बांधने का शुभ मुहूर्त बन रहा है.
क्यों बांधी जाती है शुभ मुहूर्त पर राखी?
वहीं, रक्षाबंधन पर सही समय और सही मुहूर्त पर राखी बांधने का भी विशेष महत्व है. अगर बहनें शुभ मुहूर्त पर भाई को राखी बांधती हैं तो इससे उनके भाइयों को लंबी उम्र के साथ सुख-समृद्धि भी प्राप्त होती है. वहीं, रक्षाबंधन पर भद्रा काल भी है और इसमें कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है, अगर इस समय पर कोई बहन अपने भाई को राखी बांधती है तो इसे भाई के लिए अशुभ माना जाता है. ऐसे में भद्रा काल के समाप्त होते ही बहनें रक्षाबंधन का त्योहार मना सकती हैं.
रक्षाबंधन से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं
आचार्य दीप कुमार शर्मा ने बताया कि राखी बांधने को लेकर कई मान्यता पुराणों में लिखी गई हैं. कथा के अनुसार जब एक बार भगवान विष्णु ने वामन अवतार का रूप लिया तो उन्होंने राक्षस राजा बलि से तीन पग में उनका सार राज्य मांग लिया था. भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक में निवास करने को कहा था. तब राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपने मेहमान के रूप में पाताल लोक चलने को कहा था. जिसे भगवान विष्णु मना नहीं कर पाए, लेकिन जब लंबे समय से विष्णु भगवान अपने धाम नहीं आए तो माता लक्ष्मी को चिंता होने लगी. तब नारद मुनी ने माता लक्ष्मी को राजा बलि को अपना भाई बनाने की सलाह दी और उनसे उपहार में विष्णु जी को मांगने को कहा. मां लक्ष्मी ने ऐसा ही किया और इस संबंध को अपनाते हुए उन्होंने राजा बलि के हाथ पर राखी यानी रक्षा सूत्र बांधा और तभी से राखी की शुरुआत हुई.
महाभारत काल से रक्षाबंधन का नाता
हालांकि इसके अलावा भी कई और कथाएं हैं. जिसके तहत महाभारत काल के समय एक बार भगवान कृष्ण की उंगली में चोट लग गई थी और उसमें से खून बहने लगा था. ये देखकर द्रौपदी जो कृष्ण जी की सखी भी थी, उन्होंने अपने आंचल का पल्लू फाड़कर उनकी कटी अंगुली में बांध दिया था. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन से भी रक्षा सूत्र या राखी बांधने की परंपरा शुरू हुई.
देवराज इंद्र से जुड़ी त्योहार की मान्यता
इसके अलावा कहा जाता है कि एक बार दैत्य वृत्रासुर ने देवराज इंद्र का सिंहासन हासिल करने के लिए स्वर्ग पर हमला कर दिया था. राक्षस वृत्रासुर बहुत ताकतवर था और उसे हराना आसान नहीं था. ऐसे में इस युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए उनकी बहन इंद्राणी ने अपने तपोबल से एक रक्षा सूत्र तैयार किया और देवराज इंद्र की कलाई पर बांध दिया. इस रक्षा सूत्र ने देवराज इंद्र की रक्षा की और वो युद्ध में विजयी हुए. तभी से बहनें अपने भाइयों की रक्षा के लिए उनकी कलाई पर राखी बांधने लगीं.