टोंक : जिले में औसत से ज्यादा बरसात के साथ ही निवाई उपखण्ड में इस मानसून सत्र में हुई अब तक बरसात के बाद क्षेत्र के सभी नदी नाले उफान पर हैं. जिले में जलसंसाधन विभाग के 30 में से 9 बांधों पर चादर चल रही है. वहीं, जोधपुरिया धाम के पास मासी नदी पर मासी बांध के बनने के बाद 64 साल बाद यह नजारा देखने को मिल रहा है, जब बांध के एक साथ 5 गेट खोलने के बाद भी बांध पर 5 फीट पानी की चादर चल रही है. इससे किसानों में खुशी देखने को मिल रही है. 64 सालों बाद मासी नदी रविवार को तेज वेग से बहती नजर आई.
बांध में पानी की आवक लगातार जारी : जल संसाधन विभाग के अधिशाषी अभियंता अशोक जैन ने बताया कि 1960 में इस बांध के बनने के बाद पहली बार इस वर्ष 5 गेट खोलने पड़े हैं. साथ ही बांध पर करीब 10 इंच की चादर भी चल रही है. 1981 में बांध की अच्छी चादर चली थी, लेकिन गेट नहीं खुले थे. ऐसे में ठीक 64 साल बाद वर्ष 2024 में मासी बांध की 10 फीट भराव क्षमता पूर्ण होने पर रविवार तक मासी नदी उफान पर आ गई. बांध में पानी की आवक लगातार जारी है.
इसे भी पढ़ें :टोंक के माशी-चांदसेन सहित 9 बांध छलके, आज भी भारी बारिश की चेतावनी, बीसलपुर में नहीं आई 'एक बूंद'
पहली बार अपने वास्तवित स्वरूप में मासी नदी : सहायक अभियंता कानाराम गुर्जर ने बताया कि बांध के सभी गेट धीरे दो-दो फीट तक खोलकर ओवरफ्लो पानी की निकासी करनी पड़ रही है. मासी बांध पीपलू उपखंड क्षेत्र की समृद्धि, खुशहाली का प्रतीक है, जो डेढ़ दशक में केवल 6 बार ही लबालब हुआ है. वहीं, तीन बार चादर चली है. इसका मुख्य कारण जलभराव करने वाली नदियों के रास्ते में रोककर बनाए हुए दर्जनों एनिकट हैं. बांध भरने के बाद छोड़े गए पानी से मासी नदी पहली बार अपने वास्तवित स्वरूप में नजर आई. बांध में मासी नदी के अलावा सहायक नदी बांडी, खेराखशी से इस बार अच्छी पानी की आवक हुई है.
किसानों में खुशी की लहर : किसानों में मासी बांध के लबालब होने के साथ ही खुशी की लहर है. पीपलू में किसानों ने आपस में मिठाई बांटकर खुशी का इजहार किया. देवजी मंदिर में कई किसानों ने ढ़ोक लगाकर प्रसाद चढ़ाया. सिंचाई विभाग के सहायक अभियंता कानाराम गुर्जर ने बताया कि मासी बांध के भरने से पीपलू उपखंड क्षेत्र के 29 गांवों के करीब 30 हजार से अधिक लोगों को फायदा मिलता है. बांध के भरने पर किसानों को रबी की फसल में सिंचाई के लिए नहर से पानी मिलता है. मासी बांध से पीपलू क्षेत्र में गहलोद तक 40 किलोमीटर लम्बी मुख्य नहर व दर्जनों वितरिकाएं बनी हुई हैं, जिससे क्षेत्र में 6985 हेक्टेयर जमीन पर रबी की फसल में सिंचाई की जाती है, जिससे क्षेत्र का किसान समृद्ध व खुशहाल होता है.
इसे भी पढ़ें :रेत के धोरों के बीच प्रसिद्ध गड़ीसर सरोवर का छलका सौंदर्य, चली पानी की चादर - Gadisar Lake
डैम का निर्माण : डैम का निर्माण 1960 में हुआ था. मासी, बांडी, खेराखशी नदियों का पानी रोककर 1960 में पीपलू क्षेत्र के 29 गांवों की 28 हजार एकड़ भूमि को नहरों के जरिए सिंचित करने, निवाई की पेयजल समस्या को हल करने सहित जलीय जीवों का पालन करने को लेकर किया गया था. बांध पर 725 फीट लम्बी चादर बनी होने सहित 16 गुणा 8 फीट के पांच गेट लगे हुए हैं, जो बांध 1971 में अधिक पानी की आवक होने पर टूट गया था. इसके बाद फिर से बांध की मरम्मत की गई. बांध की मजबूती के बाद 1981 में बांध पर 11 फीट ऊंचाई की चादर चली थी.
सिंचाई विभाग के सहायक अभियंता कानाराम गुर्जर ने बताया कि दस फीट भराव क्षमता वाला मासी बांध 1991 से लेकर 1999 तक लगातार फुल भरता रहा है. इसके बाद बांध में पानी की आवक को ग्रहण लग गई हो. वर्ष 2001 से 2003 बांध में प्रतिवर्ष करीब ढ़ाई फीट पानी की आवक हुई. वर्ष 2004 में बांध में 9 फीट पानी की आवक हुई. इसके बाद 2005 से 2009 तक फिर बांध में करीब 2.95 फीट पानी की आवक हुई है. वर्ष 2010 में बांध लबालब हुआ. 2011 में भी बांध भराव क्षमता के मुताबिक पूरा भर गया. 2012 से लेकर 2018 तक बांध पूरी तरह से नहीं भर पाया. मानसून की बेरूखी से वर्ष 2015, 2017, 2018 में बांध पूरी तरह से खाली रहा. वर्ष 2019 में मानसूम के झूम कर आने से पूर्ण भराव क्षमता 10 फीट तक भरने के बाद कई दिनों तक हल्की चादर चली थी. वहीं, 2020 में फिर से बांध खाली रह गया और 2021 में 7 फीट ही पानी आ पाया था. वर्ष 2022 में बांध की चादर चली तथा 2023 में साढ़े 7 फीट पानी की आवक हुई थी.