जयपुर. आग की खबर के साथ ही सायरन बजाती हुई लाल गाड़ी और खाकी वर्दी के साथ उस आग से निपटते फायर फाइटर हमें देखने को मिलते हैं. ये फायर फाइटर सिर्फ आग बुझाने का नहीं, बल्कि अपनी जान दांव पर लगाकर लोगों की जान बचाने, रेस्क्यू ऑपरेशन करने, पुलिस की मदद करने, आपदा प्रबंधन और जानवरों तक की जान बचाने का जोखिम उठाते हैं. यही वजह है कि जांबाजों का जब जिक्र होता है तो ये फायरफाइटर प्रथम पंक्ति में नजर आते हैं. हालांकि आग और आपदा से लड़कर जीतने वाले राजस्थान के फायरफाइटर्स आज फायर एक्ट और अलग निदेशालय नहीं होने की वजह से खुद के सर्विस रूल्स की चुनौतियों से जूझते हैं.
जांबाज किसे कहते हैं इसका उदाहरण है जयपुर के फायरफाइटर, जो अपनी जान को हथेली पर रखकर दूसरों की जान बचाने के लिए आग के समुद्र में भी कूद पड़ते हैं. इन फायरफाइटर के सामने कई चुनौतियां होती है. ये लोगों की तो जान बचाते ही हैं, जानवरों की जान बचाने के लिए भी अपनी जान की परवाह किए बिना आग में कूद पड़ते हैं.
रिस्क और चुनौतियों वाला काम : इसे लेकर चीफ फायर ऑफिसर देवेंद्र मीणा बताते हैं कि फायर फाइटिंग का काम दूसरे कामों से अलग है. यह रिस्की और मेहनत का काम है. फायरफाइटर के सामने जो भी टास्क आते हैं, वो अचानक आते हैं. एक फायरफाइटर के लिए ड्यूटी आवर्स मायने नहीं रखते और सामने कितनी भी बड़ी चुनौती हो उससे डटकर मुकाबला करना होता है. यह एक टीम वर्क है और सबको मिलकर एक-दूसरे की मदद के साथ काम करते हुए चुनौती पर पार पाना होता है. उन्होंने बताया कि आग बुझाने के अलावा भी फायरफाइटर आपातकालीन सेवा, रोड एक्सीडेंट, बिल्डिंग कॉलेप्स, सीवर रेस्क्यू, स्नेक रेस्क्यू, आपदा प्रबंधन के काम भी करते हैं. कोरोना काल में इन्ही ने शहर को सेनीटाइज करने का जिम्मा भी संभाला.
लॉकडाउन में भी थी बड़ी जिम्मेदारी : सीनियर फायरमैन सुभाष ने बताया कि जहां भी कोरोना पॉजिटिव मरीज पाया जाता था, वहां फायर फाइटिंग टीम सैनिटाइज करने पहुंचती थी. पेशेंट को अस्पताल में ले जाने का काम भी किया गया. अस्पतालों से मृतक को एम्बुलेंस से श्मशान तक ले जाया जाता था. उन्हें भी सेनीटाइज करने का काम फायरफाइटर ने ही किया. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन का समय था, लेकिन इमरजेंसी सर्विस के नाते उनकी ड्यूटी बदस्तूर जारी थी. इस काम में रिस्क था, डर भी था लेकिन कभी पीछे नहीं हटे.
कैसे तीन फायरमैन ने महिला को बचाया : वहीं फायरफाइटर मूलचंद ने बताया कि हाल ही में छोटी चौपड़ पर एक घर में दूसरी मंजिल पर आग लग गई थी और उस घर में कुछ महिलाएं फंसी हुई थी. उनमें से एक महिला का ऑपरेशन हो चुका था, जिसे आग से सुरक्षित बाहर निकालकर लाना एक बड़ी चुनौती था. उस महिला को लैडर लगाकर तीन फायरमैन ने मिलकर रेस्क्यू किया. यह रिस्की भी था और लगभग हर आग रिस्की होती है. क्योंकि वहां धुआं होता है, घुटन होती है, सांस लेने में तकलीफ होती है, आग की लपटे होती हैं, जिसमें हीट भी होती है, ऐसे में जान दांव पर होती है.
इंसान ही नहीं, जानवरों को भी बचाते हैं : वहीं फायरमैन गणेश ने बताया कि 15 वर्ष की ड्यूटी के दौरान सैकड़ों लोगों और जानवरों को बचाया है. हर तरह की आपदा से जूझते हुए उस पर पार पाई है. उन्होंने 2013 में रामगंज क्षेत्र में हुई आग की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि वहां पटाखे की फैक्ट्री में आग लग गई थी. वहां इंसानों के साथ-साथ कुछ जानवर भी थे. तब दोनों को जीव मानते हुए बचाने का काम किया. जितनी खुशी जान बचने वालों को नहीं हुई होगी, इससे कहीं ज्यादा खुशी उन फायरफाइटर को थी जिन्होंने अपनी जान की फिक्र किए बिना उन लोगों और जानवरों को बचाया था. यह गर्व की बात है कि वो आज फायर ब्रिगेड में सर्विस कर रहे हैं.
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महिलाएं भी पीछे नहीं : वहीं महिला फायरमैन अनीता ने बताया कि बतौर महिला उन्हें घर को तो संभालना होता ही है लेकिन उनकी ड्यूटी आपातकालीन सर्विस है, जिसे तत्परता के साथ करना ही सबसे बड़ी ड्यूटी है. लोगों को महिलाओं के लिए टीचर या डॉक्टर जैसी जॉब सुरक्षित लगती है. लेकिन उन्हें जुनून था और वो अपने परिवार के लिए फायरमैन की जॉब को चुनने में भी पीछे नहीं हटी.
राजस्थान में अब भी फायर एक्ट लागू नहीं : आखिर में सीएफओ देवेंद्र मीणा ने बताया कि आज भले ही फायरफाइटर अपनी जान को जोखिम में डालकर दूसरों की जान बचाता है, लेकिन आज सबसे ज्यादा जरूरी है कि इन फायरफाइटर की सुध लेते हुए सरकार जल्द से जल्द फायर एक्ट लागू करें. राजस्थान ही एक ऐसा स्टेट है जहां फायर एक्ट लागू नहीं है, और ना ही कोई अलग निदेशालय है. जबकि गुजरात, दिल्ली, हरियाणा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में फायर एक्ट बना हुआ है. वो चाहते हैं कि फायर एक्ट बने ताकि फायरफाइटर के लिए नियम बने, वर्दी के नियम बने, कार्मिकों के समय पर प्रमोशन हो और पूरी तरह इसी फायर चैनल के लोग इसमें काम करें, और समय-समय पर रिफ्रेशर ट्रेनिंग होती रहे.