भरतपुर. उस समय भारत में मुगलों का आतंक था. औरंगजेब के अत्याचार चरम पर थे. दिल्ली और आगरा मुगल साम्राज्य के दो पांव थे. इस दौर में दिल्ली और आगरा के मध्य ब्रज क्षेत्र में प्रथम जाट मुखिया वीर योद्धा गोकुला (गोकुल सिंह) ने क्रांति की मशाल जलाई. वीर गोकुल के शौर्य के आगे मुगल हाकीम और अफसर थर-थर कांपने लगे. आखिर में औरंगजेब को खुद गोकुला से युद्ध लड़ने के लिए विशाल सेना के साथ रणभूमि में उतरना पड़ा. यह पहला अवसर था जब औरंगजेब को एक साधारण से किसान योद्धा की वजह से युद्ध में भाग लेना पड़ा.
वीर योद्धा गोकुला ने अपने शौर्य और पराक्रम से ही नहीं, बल्कि सनातन धर्म की रक्षा में किए बलिदान से इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया. ऐसे वीर गोकुला के इतिहास से साक्षी कराने के लिए राजस्थान सरकार अब भरतपुर में वीर गोकुल का पैनोरमा तैयार कराएगी. आइए जानते हैं कौन थे वीर गोकुला और कैसे उन्होंने मुगल सल्तनत की नींव को हिला दिया था.
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ऐसे गोकुल बने गोकुला : इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने अपनी 'भरतपुर का इतिहास' एवं 'जाटों का गौरवशाली इतिहास' पुस्तकों में वीर गोकुला के शौर्य और पराक्रम को विस्तार से बताया है. इसके अनुसार वीर गोकुला का जन्म भरतपुर जिले के सिनसिनी गांव में हुआ था, जहां से वो महावन क्षेत्र के पनाह गांव में जाकर बस गए. उन्होंने अपने साहस और प्रभाव से दिल्ली के दक्षिण पूर्व में तिलपत की जमींदारी प्राप्त की. इसके बाद गोकुल सिंह, गोकुला कहलाने लगे.
शिवाजी के गुरु की प्रेरणा से क्रांति : इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि छत्रपति शिवाजी के गुरु साधु समर्थ गुरु रामदास महाराष्ट्र से चलकर ब्रज प्रदेश में आए. यहां उन्होंने एक विशाल सभा आयोजित की, जिसमें अधिकतम संख्या जाटों की थी. उन्होंने कहा कि मुगल साम्राज्य को तोड़ना जरूरी है और इसके लिए जाट का बेटा चाहिए. गुरु रामदास के आह्वान पर गोकुला अपने पंचायती योद्धाओं के साथ आगे आया और मुगल सल्तनत के खिलाफ क्रांति का ऐलान किया.
मुगलों में गोकुला का आतंक : वीर गोकुला ने किसानों से शाही कर (टैक्स) नहीं देने की घोषणा कर दी. दिल्ली और आगरा के मध्य क्षेत्र में मुगलों के कोश लूटना और छापामार युद्ध करना शुरू कर दिया. कई मुस्लिम हकीमों को मौत के घाट उतार दिया. मुगल हाकिम और अफसरों में वीर गोकुला का भय बैठ गया. गोकुला की वीरता और प्रभाव आगरा, मथुरा, सादाबाद, महावन परगनों तक जम गया.
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औरंगजेब से युद्ध : वीर गोकुला के पराक्रम से मुगलों का प्रभाव और आतंक कम होने लगा. औरंगजेब को अपनी सल्तनत हिलती हुई महसूस हुई. आखिर में 28 नवंबर 1669 के दिन मुगल बादशाह औरंगजेब विशाल सेना और तोपखाने के साथ वीर गोकुला से युद्ध करने के लिए तिलपत के मैदान में जा पहुंचा. दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ. हजारों सैनिक मारे गए और हजारों घायल हो गए. भारतीय इतिहास में औरंगजेब पहली बार एक साधारण किसान योद्धा की वजह से युद्ध के मैदान में आने को विवश हुआ. घमासान युद्ध के बीच घायल वीर गोकुला और उसके दादा सिंघा (उदय सिंह) को मुगल सैनिकों ने बंदी बना लिया और दोनों को आगरा ले गए.
धर्म की रक्षा के लिए प्राण न्योछावर : रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि औरंगजेब ने वीर गोकुला के आगे इस्लाम धर्म कबूल करने और छोड़ देने पर फिर कभी विद्रोह नहीं करने का प्रस्ताव रखा. देशभक्ति वीर गोकुला ने औरंगजेब को कड़े शब्दों में मुसलमान धर्म अपनाने से स्पष्ट मना कर दिया. इसके बाद वीर गोकुला और उसके दादा सिंघा को आगरा की कोतवाली के सामने एक ऊंचे चबूतरे पर बांधकर जल्लादों ने निर्दयता के साथ उनके सभी अंगों को एक-एक करके काट डाला. वीर गोकुला ने देशभक्ति और धर्म की रक्षा के लिए प्राण न्योछावर कर दिए.
भरतपुर में बनेगा पैनोरमा : प्रदेश के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने गुरुवार को प्रदेश की गौरवशाली ऐतिहासिक धरोहर एवं सांस्कृतिक विरासत को संरक्षण देने के उद्देश्य से 12 स्थानों पर पेनोरमा, स्मारक, संग्रहालय निर्माण एवं विकास कार्यों की घोषणा की है. इनमें भरतपुर में गोकुला जाट का पैनोरमा बनवाया जाना भी प्रस्तावित है. इससे वीर योद्धा गोकुला के व्यक्तित्व एवं जीवन से जुड़ी जानकारी जन-जन तक पहुंच सकेगी. साथ ही युवा पीढ़ी को वीर गोकुला के जीवन से रूबरू होने और उनके आदर्शों को आत्मसात करने का अवसर मिल सकेगा.