पटना: 2015 में जेडीयू-आरजेडी और कांग्रेस के महागठबंधन की जीत के लिए रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर का कहना है कि बिहार में भारतीय जनता पार्टी आज भी अपनी जमीन मजबूत नहीं कर पा रही है. उन्होंने कहा कि जिन नीतीश कुमार से गठबंधन नहीं करने का अमित शाह सार्वजनिक मंच से ऐलान कर चुके हैं, उन्हें फिर से उनके साथ जाना पड़ा है. इसके पीछे की वजह 2015 की वह हार है, जो आज भी भारतीय जनता पार्टी को डराती रहती है.
मोदी और शाह को हार का डर: जन सुराज पदयात्रा के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने बिहार के राजनीतिक परिदृश्य पर अपनी बात रखते हुए कहा कि जिस बीजेपी को आपलोग इतना ताकतवर समझते हैं या देश आज मान रहा है, चाहे वो नरेंद्र मोदी हो या अमित शाह उनको भी बड़ी हार डराती है. उन्होंने कहा कि भाजपा को अगर आप गहराई से देखना समझना जानना चाहेंगे तो आपको पता चलेगा कि जहां पर इनके खिलाफ लोग मजबूती से चुनाव लड़े और इनको हरा दिया, वहां पर इन भाजपा वालों को कभी हिम्मत नहीं हुई चुनाव लड़ने की.
'बिहार में बीजेपी को हार डराती है': प्रशांत किशोर ने आगे कहा कि बिहार वो भूमि है, जब 2015 में अमित शाह और नरेंद्र मोदी को सारे प्रयास के बावजूद सफलता नहीं मिली. वो जो डर है, इतना बड़ा डर है हारने. कहीं न कहीं भाजपा को लीडरशिप को डर है कि बिहार की राजनीतिक पृष्ठभूमि है, समाजवाद की जड़ें इतनी मजूबत और गहरी हैं कि इतना आसान नहीं है कि मोदी के एक स्लोगन से बिहार को जीत लिया जाए. इसलिए फिर से उनको ऐसा गठबंधन (नीतीश कुमार का साथ) करना पड़ा.
"बिहार वो भूमि है, जहां आपने देखा होगा 2015 में अमित शाह और मोदी जी ने पूरी ताकत लगा दी थी. इसके बावजूद चुनाव जीतने में उनको सफलता नहीं मिली थी. 2015 का जो डर है, वो इतना बड़ा डर है चुनाव हारने का कि वो उनसे निकल नहीं पाए हैं. राजनीतिक दलों को जब आसान जीत मिलती है और कहीं पर जब आप हार जाते हैं तो आप डरते बहुत ज्यादा हैं. भाजपा के लीडरशिप को आज भी डर है बिहार की राजनीतिक पृष्ठभूमि से यहां की सामाजिक तानाबाना से."- प्रशांत किशोर, संयोजक, जन सुराज
बिहार में गठबंधन बीजेपी की मजबूरी: प्रशांत किशोर ने कहा कि 400 सीट जीतने का दावा करने वाले अमित शाह को भी बिहार में नीतीश कुमार के पास आना पड़ा है, यह जानते हुए कि उनका (नीतीश) का जनाधार लगातार कम होता जा रहा है. इसके बावजूद वो एनडीए में आ रहे हैं तो उनको स्वीकारने में उनको कोई दिक्कत नहीं है. बिहार की राजनीतिक भूमि को भाजपा इतना आसान मानती नहीं है. बिहार में चाहे चिराग पासवान हो, उपेंद्र कुशवाहा हो या जीतनराम मांझी हो, इन्हें साथ इसलिए रखना चाहते हैं ताकि इनको 40 सीट जीतने में कोई खतरा न पैदा हो जाए.
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