पटनाः भारतीय इतिहास के पन्ने बलिदानियों और वीर सेनानियों की गौरव-गाथाओं से भरे पड़े हैं, जो आज भी हमारे दिल में देश के लिए मर मिटने का हौसला भरती हैं. हालांकि कई ऐसे गुमनाम नायक भी रहे जिनकी चर्चा ऐतिहासिक दस्तावेजों में कम ही मिलती है. यूपी में जन्मे और बिहार को अपनी कर्मभूमि बनानेवाले पीर अली खान ने 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे.
पीर अली के नाम से कांपते थे अंग्रेजः 1857 के विद्रोह में बिहार के भी सेनानियों ने अंग्रेजी सत्ता को कड़ी चुनौती दी. तब पटना में विद्रोह की कमान संभाली थी जांबाज पीर अली खान ने. उन्होंने आजादी की इस पहली लड़ाई के दौरान पटना में क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया. कहा जाता है कि अंग्रेज पीर अली के नाम से इस कदर खौफ खाते थे कि उन्हें अंग्रेज अधिकारी की हत्या के आरोप में बिना मुकदमे के ही फांसी पर चढ़ा दिया था.
यूपी में जन्म, बिहार रही कर्मभूमिः 1812 में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के मोहम्मदपुर गांव में जन्मे पीर अली खान ने सिर्फ 7 साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया था और भागकर पटना चले आए थे . पटना के एक जमींदार ने उन्हें आश्रय दिया और अपने संतान की तरह पढ़ाया- लिखाया. बाद में पीर अली ने पटना में पुस्तक की एक दुकान खोली जो क्रांतिकारियों के लिए मिलने-जुलने का अड्डा हुआ करती थी.
अंग्रेज अधिकारी लॉयल को उतारा था मौत के घाटः पीर अली ने 3 जुलाई 1857 को पटना में हुए एक विद्रोह का सफल नेतृत्व किया था. उन्होंने शहर के बीचों-बीच रह रहे पादरी के घर पर धावा बोल दिया था लेकिन पादरी बचकर भाग निकला. बाद में आंदोलनकारियों ने अफीम के एक एजेंट के मुख्य सहायक डॉक्टर लायल को घेर लिया और उसकी हत्या कर दी गई.
दो दिनों बाद ही गिरफ्तार कर लिए गये पीर अलीः इस बड़ी घटना के बाद अंग्रेज पुलिस हाथ धोकर पीर अली के पीछे पड़ गयी. जगह-जगह तलाशी अभियान चलाया गया. आखिरकार 2 दिनों बाद 5 जुलाई को पुलिस ने पीर अली को कई दूसरे क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया.
बिना मुकदमे के ही दी गयी फांसीः अंग्रेजी सरकार ने पीर अली के सामने क्रांति से जुड़ी जानकारियों के बदले क्षमादान का प्रस्ताव रखा लेकिन निडर पीर अली ने उसे एक पल में ठुकरा दिया. तब पीर अली ने कहा था- ''आप मुझे या मुझ जैसों को हर रोज फांसी पर लटका सकते हैं, लेकिन मेरी जगह पर हजारों खड़े होंगे और आपका मकसद कभी कामयाब नहीं होगा''. जिसके बाद बिना मुकदमा चलाए ही पीर अली खान को 7 जुलाई 1857 को सरेआम फांसी पर लटका दिया गया.
'क्रांतिकारियों को किया एकजुट':शहीद पीर अली पर सेमिनार का आयोजन कर चुके प्रोफेसर विद्यार्थी विकास का कहना है कि पीर अली ने 1857 के आंदोलन के दौरान अदम्य साहस का परिचय दिया. पीर अली ने पटना को कर्मभूमि बनाया और अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए.
"अंग्रेज उनके भय से खौफ खाते थे. 1857 के आंदोलन के दौरान उन्होंने क्रांतिकारियों को एकजुट करने का काम किया था और उनकी किताब की दुकान क्रांतिकारियों के लिए मिलने की जगह हुआ करती थी."- प्रोफेसर विद्यार्थी विकास
"पीर अली की किताब की दुकान पटना सिटी में हुआ करती थी और वहीं क्रांतिकारी मिलते-जुलते थे. 1857 आंदोलन के दौरान पीर अली ने सक्रिय भूमिका निभाई थी और अंग्रेज इतने भयभीत थे कि उन्हें बिना मुकदमे के फांसी चढ़ा दी गई. फांसी की सजा माफी के प्रस्ताव को भी पीर अली ने ठुकरा दिया और क्रांतिकारियों के समक्ष एक मिसाल पेश की."-श्रीकांत, वरिष्ठ पत्रकार
पटना में नहीं है शहीद पीर अली की प्रतिमा: अंग्रेजी सत्ता को कड़ी चुनौती देनेवाले शहीद पीर अली इतिहास के पन्नों में गुम तो हो ही गये, आजादी के बाद उनका योगदान सरकारी उपेक्षा का भी शिकार रहा. तभी तो पटना में उनकी एक प्रतिमा तक नहीं है. हां, गांधी मैदान के पास उनके नाम पर एक पार्क जरूर बना हुआ है. इसके अलावा एयरपोर्ट के पास एकल रोड भी पीर अली के नाम से जाना जाता है.
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