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पटना हाईकोर्ट में निबंधित फार्मासिस्ट की कमी को लेकर सुनवाई टली, सरकार को जवाब देने के लिए मिली मोहलत - Pharmacist Case Patna High Court

Patna High Court: बिहार में निबंधित फार्मासिस्ट की जगह नर्स, एएनएम और क्लर्क से दवा देने को लेकर पटना हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई शुक्रवार को टल गई. कोर्ट ने राज्य सरकार को जवाब देने के लिए मोहलत दिया है. वहीं, इस मामले पर अगली सुनवाई 23 फरवरी को की जाएगी.

Patna High Court Etv Bharat
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jan 20, 2024, 3:11 PM IST

पटना: बिहार में दस हजार अस्पताल हैं. जबकि निबंधित फरमासिस्टों की संख्या 600 से कुछ अधिक है. ऐसे में दवाई दुकानों में निबंधित फरमासिस्टों की जगह नर्स, एएनएम, क्लर्क ही फार्मासिस्ट का कार्य करते है. जो कि कानून का उल्लंघन है. इसी बात को लेकर पटना हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई टल गई.

फार्मासिस्ट की संख्या में कमी: मिली जानकारी के अनुसार, पटना हाईकोर्ट ने राज्य में निबंधित फार्मासिस्ट की पर्याप्त संख्या नहीं होने के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ने के मामले में होने वाली सुनवाई आगे बढ़ा दी है. चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को जवाब देने के लिए मोहलत दी है.

मुकेश कुमार ने दायर की याचिका: बताया जा रहा कि ये जनहित याचिका मुकेश कुमार ने दायर की है. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता प्रशान्त सिन्हा ने कोर्ट को बताया है कि राज्य में लगभग दस हजार अस्पताल है, जबकि निबंधित फरमासिस्टों की संख्या 6 सौ से कुछ अधिक है.

फार्मासिस्टों द्वारा दवा नहीं दी जाती : उन्होंने कोर्ट को बताया कि डॉक्टरों द्वारा लिखें गए पर्ची पर निबंधित फार्मासिस्टों द्वारा दवा नहीं दी जाती है. कई सारे सरकारी अस्पतालों में अनिबंधित नर्स, एएनएम, क्लर्क ही फार्मासिस्ट का कार्य करते है. बिना जानकारी और योग्यता के ही ये लोग मरीजों को दवा देते है. जबकि ये फार्मासिस्टों द्वारा किया जाना है.

यह कानून का उल्लंघन : उन्होंने कहा कि इस तरह से अधिकारियों द्वारा अनिबंधित नर्स, एएनएम, क्लर्क से काम लेना न केवल सम्बंधित कानून का उल्लंघन है, बल्कि आम आदमी के स्वास्थ्य के साथ खिलबाड़ है.

"फार्मेसी एक्ट, 1948 के तहत फार्मेसी से सम्बंधित विभिन्न प्रकार के कार्यों के अलग-अलग पदों का सृजन किया जाना चाहिए. लेकिन बिहार सरकार ने इस सम्बन्ध में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है. जिसको लेकर पटना हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही है."- मुकेश कुमार, याचिकाकर्ता

स्वास्थ्य और जीवन पर खतरा : उन्होंने कोर्ट के समक्ष दलीलें रखते हुए कहा था इससे आम लोगों का स्वास्थ्य और जीवन पर खतरा उत्पन्न हो रहा है. कोर्ट से अनुरोध है कि फार्मेसी एक्ट, 1948 के अंतर्गत बिहार राज्य फार्मेसी कॉउन्सिल के क्रियाकलापों और भूमिका की जांच के लिए एक कमिटी गठित की जाए.

क्रियाकलापों की जांच हो : उन्होंने कहा कि ये कमिटी कॉउन्सिल की क्रियाकलापों की जांच करें, क्योंकि ये गलत तरीके से जाली डिग्री देती है. बिहार राज्य फार्मेसी कॉउन्सिल द्वारा बड़े पैमाने पर फर्जी पंजीकरण किया गया है. राज्य में बड़ी संख्या मे फर्जी फार्मासिस्ट कार्य कर रहे हैं.

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पटना: बिहार में दस हजार अस्पताल हैं. जबकि निबंधित फरमासिस्टों की संख्या 600 से कुछ अधिक है. ऐसे में दवाई दुकानों में निबंधित फरमासिस्टों की जगह नर्स, एएनएम, क्लर्क ही फार्मासिस्ट का कार्य करते है. जो कि कानून का उल्लंघन है. इसी बात को लेकर पटना हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई टल गई.

फार्मासिस्ट की संख्या में कमी: मिली जानकारी के अनुसार, पटना हाईकोर्ट ने राज्य में निबंधित फार्मासिस्ट की पर्याप्त संख्या नहीं होने के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ने के मामले में होने वाली सुनवाई आगे बढ़ा दी है. चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को जवाब देने के लिए मोहलत दी है.

मुकेश कुमार ने दायर की याचिका: बताया जा रहा कि ये जनहित याचिका मुकेश कुमार ने दायर की है. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता प्रशान्त सिन्हा ने कोर्ट को बताया है कि राज्य में लगभग दस हजार अस्पताल है, जबकि निबंधित फरमासिस्टों की संख्या 6 सौ से कुछ अधिक है.

फार्मासिस्टों द्वारा दवा नहीं दी जाती : उन्होंने कोर्ट को बताया कि डॉक्टरों द्वारा लिखें गए पर्ची पर निबंधित फार्मासिस्टों द्वारा दवा नहीं दी जाती है. कई सारे सरकारी अस्पतालों में अनिबंधित नर्स, एएनएम, क्लर्क ही फार्मासिस्ट का कार्य करते है. बिना जानकारी और योग्यता के ही ये लोग मरीजों को दवा देते है. जबकि ये फार्मासिस्टों द्वारा किया जाना है.

यह कानून का उल्लंघन : उन्होंने कहा कि इस तरह से अधिकारियों द्वारा अनिबंधित नर्स, एएनएम, क्लर्क से काम लेना न केवल सम्बंधित कानून का उल्लंघन है, बल्कि आम आदमी के स्वास्थ्य के साथ खिलबाड़ है.

"फार्मेसी एक्ट, 1948 के तहत फार्मेसी से सम्बंधित विभिन्न प्रकार के कार्यों के अलग-अलग पदों का सृजन किया जाना चाहिए. लेकिन बिहार सरकार ने इस सम्बन्ध में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है. जिसको लेकर पटना हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही है."- मुकेश कुमार, याचिकाकर्ता

स्वास्थ्य और जीवन पर खतरा : उन्होंने कोर्ट के समक्ष दलीलें रखते हुए कहा था इससे आम लोगों का स्वास्थ्य और जीवन पर खतरा उत्पन्न हो रहा है. कोर्ट से अनुरोध है कि फार्मेसी एक्ट, 1948 के अंतर्गत बिहार राज्य फार्मेसी कॉउन्सिल के क्रियाकलापों और भूमिका की जांच के लिए एक कमिटी गठित की जाए.

क्रियाकलापों की जांच हो : उन्होंने कहा कि ये कमिटी कॉउन्सिल की क्रियाकलापों की जांच करें, क्योंकि ये गलत तरीके से जाली डिग्री देती है. बिहार राज्य फार्मेसी कॉउन्सिल द्वारा बड़े पैमाने पर फर्जी पंजीकरण किया गया है. राज्य में बड़ी संख्या मे फर्जी फार्मासिस्ट कार्य कर रहे हैं.

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