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झांसा देकर बिहार से लाए गए 93 बच्चों का दर्द, कहा- हमें मदरसे में नहीं पढ़ना, जानवरों की तरह रखते हैं - Government Children Home Lucknow

अयोध्या से बरामद 93 बच्चों की दर्दभरी कहानी सामने आई है. बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डाॅ. सुचिता चतुर्वेदी से बच्चों ने रो रो आपबीती बताई तो अधिकारियों का दिल भी भर आया. इन बच्चों को मौलवी बिहार से देवबंद ले जा रहे थे. सभी बच्चे बिहार के अररिया के रहने वाले हैं. Government Children Home Lucknow

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 29, 2024, 7:46 AM IST

लखनऊ : राजधानी के राजकीय बालगृह में जब बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य सुचिता चतुर्वेदी पहुंचीं तो उनके सामने 6 से 14 वर्ष आयु के बच्चे फफक-फफक कर रो पड़े. किसी ने कहा कि मुझे मदरसे में नहीं पढ़ना, मुझे डॉक्टर बनना है. मदरसे से कोई भी डॉक्टर नहीं बन सकता है. ये बच्चे बिहार के अररिया और पूर्णिया के रहने वाले हैं. बीते शुक्रवार को इन्हें मौलवी डबल डेकर बस से सहारनपुर के देवबंद ले जा रहे थे. इस दौरान मानव तस्करी की आशंका पर पुलिस ने बच्चों को बस से उतरवा कर बालगृह भिजवा दिया था. इस समय 93 बच्चे यहां रह रहे हैं.

बच्चों को अनाथ बता ले रहे थे फंड : राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. शुचिता चतुर्वेदी ने बताया कि बच्चों को जिन दो मदरसे देवबंद के मदारूल उलूम रफीकिया और दारे अरकम में ले जाया जा रहा था, वो दोनो रजिस्टर्ड नहीं हैं. इन मदरसों के संचालक बच्चों को अनाथ बताकर फंडिंग लेते थे. ये अधिकांश बिहार के बच्चों को उनके घरवालों से तालीम देने के नाम पर लाते थे और फिर उन्हें छोटे से मदरसे में जानवरों की तरह रखते थे.

पेपर में लिखवाया-मौत होने पर मौलवी की जिम्मेदारी नहीं : डॉ. शुचिता चतुर्वेदी ने बताया कि अयोध्या से बरामद बच्चों ने रो-रो कर दर्द बयां किया. बच्चों का कहना है कि उनके माता-पिता से तालीम दिलाने के नाम पर लाया गया था. घरवालों से मौलवियों ने लिखवाया कि बच्चों को मौत होने पर उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी. इसके अलावा बीमार होने पर दवा तब ही कराई जाती थी, जब घरवाले पैसे भेजते थे.

डॉ. शुचिता ने बताया कि इन बच्चों में कई भाई बहन हैं और वे सभी सरकारी स्कूलों में पढ़ाई करते थे. इस बीच मदारूल उलूम रफीकिया और दारे अरकम मरदसों के मौलवी उनके गांव पहुंचे और घरवालों को झांसे में लेकर साथ ले आए.

यह भी पढ़ें : State Children Home : वेंटिलेटर पर मून, एक और बच्ची का प्रयागराज से हुआ रेस्क्यू

यह भी पढ़ें : लखनऊ: राजकीय बाल गृह से किशोरी गायब, तलाश में जुटी पुलिस

लखनऊ : राजधानी के राजकीय बालगृह में जब बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य सुचिता चतुर्वेदी पहुंचीं तो उनके सामने 6 से 14 वर्ष आयु के बच्चे फफक-फफक कर रो पड़े. किसी ने कहा कि मुझे मदरसे में नहीं पढ़ना, मुझे डॉक्टर बनना है. मदरसे से कोई भी डॉक्टर नहीं बन सकता है. ये बच्चे बिहार के अररिया और पूर्णिया के रहने वाले हैं. बीते शुक्रवार को इन्हें मौलवी डबल डेकर बस से सहारनपुर के देवबंद ले जा रहे थे. इस दौरान मानव तस्करी की आशंका पर पुलिस ने बच्चों को बस से उतरवा कर बालगृह भिजवा दिया था. इस समय 93 बच्चे यहां रह रहे हैं.

बच्चों को अनाथ बता ले रहे थे फंड : राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. शुचिता चतुर्वेदी ने बताया कि बच्चों को जिन दो मदरसे देवबंद के मदारूल उलूम रफीकिया और दारे अरकम में ले जाया जा रहा था, वो दोनो रजिस्टर्ड नहीं हैं. इन मदरसों के संचालक बच्चों को अनाथ बताकर फंडिंग लेते थे. ये अधिकांश बिहार के बच्चों को उनके घरवालों से तालीम देने के नाम पर लाते थे और फिर उन्हें छोटे से मदरसे में जानवरों की तरह रखते थे.

पेपर में लिखवाया-मौत होने पर मौलवी की जिम्मेदारी नहीं : डॉ. शुचिता चतुर्वेदी ने बताया कि अयोध्या से बरामद बच्चों ने रो-रो कर दर्द बयां किया. बच्चों का कहना है कि उनके माता-पिता से तालीम दिलाने के नाम पर लाया गया था. घरवालों से मौलवियों ने लिखवाया कि बच्चों को मौत होने पर उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी. इसके अलावा बीमार होने पर दवा तब ही कराई जाती थी, जब घरवाले पैसे भेजते थे.

डॉ. शुचिता ने बताया कि इन बच्चों में कई भाई बहन हैं और वे सभी सरकारी स्कूलों में पढ़ाई करते थे. इस बीच मदारूल उलूम रफीकिया और दारे अरकम मरदसों के मौलवी उनके गांव पहुंचे और घरवालों को झांसे में लेकर साथ ले आए.

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