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पद्मश्री गायक कालूराम बामनिया की गजब कहानी, पत्नी को कमरे में बंद कर ताला लगाकर जाते थे भजन गाने - Padmashree Kaluram Bamnia in Indore

पद्मश्री से सम्मानित कालूराम बामनिया मंगलवार को इंदौर पहुंचे. यहां उन्होंने मीडिया से बात करते हुए अपने संघर्ष के बारे में बात बताया. साथ ही कबीर भजन गायकी को लेकर भी अनुभव साझा किए.

PADMASHREE KALURAM BAMNIA IN INDORE
पद्मश्री गायक कालूराम बामनिया की गजब कहानी, पत्नी को कमरे में बंद कर ताला लगाकर जाते थे भजन गाने
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 23, 2024, 8:19 PM IST

पत्नी को कमरे में बंद कर ताला लगाकर जाते थे भजन गाने

इंदौर। ख्यात कबीर गायक कालूराम बामनिया को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है, लेकिन उनकी गायकी का सफर कभी आसान नहीं रहा. इंदौर में चर्चा के दौरान कालूराम बामनिया ने बताया कि 'वह खेत पर पत्नी के साथ दिन में मजदूरी करते थे. रात में पत्नी को कमरे में बंद करके ताला लगाकर भजन गाने जाते थे. उन्होंने कबीर गायकी की अपनी परंपरा को नहीं छोड़ा. जिसके फलस्वरुप आज उन्हें पद्मश्री के रूप में कबीर भजन गायकी की पहचान मिली है.

पद्मश्री कालूराम बामनिया पहुंचे इंदौर

दरअसल, राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू द्वारा पद्मश्री से सम्मानित होने के बाद कालूराम बामनिया पहली बार इंदौर आए. इस अवसर पर प्रेस क्लब द्वारा उनका अभिनंदन भी किया गया. इस दौरान पद्मश्री कालूराम बामनिया ने अपनी कबीर गायकी की शुरुआती जानकारी देते हुए कबीर गायकी के भजन भी सुनाए. पद्मश्री मिलने पर कालूराम बामनिया ने बताया कि 'यह अवार्ड केवल मुझे नहीं मिला है, यह पूरे मालवा को मिला है और मेरी विरासत को मिला है. इस परंपरा को कायम रखने के लिए मुझे जवाबदारी मिली थी, वह मैंने पूरी कर दी.' इस काम करने के लिए मुझे कई तरह की मदद भी मिली थी. उन्होंने कहा कि कबीर गायकी के लिए मेरे जीवन में कितनी परेशानी उठाई है, यह मैं और मेरा परिवार जानता है, लेकिन बिना मेहनत के कोई चीज नहीं मिलती है.

दो भजन गाने करते थे कई किलोमीटर का सफर

कालूराम बामनिया ने कहा कि कर्म करो फल की इच्छा ना करो, यह आज साबित हुआ. देवास जिले के कन्हेरिया गांव में जन्मे और छोटे से कस्बे टोंक खुर्द के रहने वाले कबीर गायक कालूराम बामनिया ने यहां तक पहुंचने के लिए कई संघर्ष का सामना किया. उन्होंने कहा कि पूर्वजों द्वारा दी गई इस कला को में जन-जन तक पहुंचाना चाहता था. इसके लिए कई बार घर में पत्नी को बंद कमरे में ताला लगा कर चले जाता था. उन्होंने अपने बुरे दिनों को याद करते हुए कहा इंदौर जिले के शिप्रा के पास सुनवानी महाकाल नामक गांव में 2 तारीख को भजन गाने का कार्यक्रम होता था, लेकिन तब मैं एक खेत पर मजदूरी और चौकीदारी करता था.

यहां पढ़ें...

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पत्नी को कमरे में कर देते थे बंद

उन दिनों पत्नी खेत के पास बने कमरे में अकेली रहती थी, तो भजन गाने के लिए उसे कमरे में बंद करके ताला लगा कर जाना पड़ता था. उन्होंने बताया दो भजन गाने के लिए उन्हें 5:30 किलोमीटर पैदल चलकर कार्यक्रम में पहुंचना पड़ता था. कई किलोमीटर पैदल चलकर बाद में घर लौट पाते थे. इसके बाद वे दिन में मजदूरी करते थे और रात में खेत की चौकीदारी के साथ अपनी भजन गायकी की जिम्मेदारी भी निभाते थे. उन्होंने कबीर को लेकर ही भजन गाने के सवाल पर कहा कबीर दास व संतों ने लोगों को जगाने का काम किया है. उन्होंने कहा कि यहां तक पहुंचने में उनकी पत्नी का सहयोग रहा है. वही उन्होंने पद्मश्री मिलने के पहले और बाद में जीवन में कई बदलाव आया है. अब कई फोन बधाई के लिए आ रहे हैं. इस दौरान पद्मश्री कालूराम बामनिया ने कई कबीर भजन भी सुनाए.

पत्नी को कमरे में बंद कर ताला लगाकर जाते थे भजन गाने

इंदौर। ख्यात कबीर गायक कालूराम बामनिया को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है, लेकिन उनकी गायकी का सफर कभी आसान नहीं रहा. इंदौर में चर्चा के दौरान कालूराम बामनिया ने बताया कि 'वह खेत पर पत्नी के साथ दिन में मजदूरी करते थे. रात में पत्नी को कमरे में बंद करके ताला लगाकर भजन गाने जाते थे. उन्होंने कबीर गायकी की अपनी परंपरा को नहीं छोड़ा. जिसके फलस्वरुप आज उन्हें पद्मश्री के रूप में कबीर भजन गायकी की पहचान मिली है.

पद्मश्री कालूराम बामनिया पहुंचे इंदौर

दरअसल, राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू द्वारा पद्मश्री से सम्मानित होने के बाद कालूराम बामनिया पहली बार इंदौर आए. इस अवसर पर प्रेस क्लब द्वारा उनका अभिनंदन भी किया गया. इस दौरान पद्मश्री कालूराम बामनिया ने अपनी कबीर गायकी की शुरुआती जानकारी देते हुए कबीर गायकी के भजन भी सुनाए. पद्मश्री मिलने पर कालूराम बामनिया ने बताया कि 'यह अवार्ड केवल मुझे नहीं मिला है, यह पूरे मालवा को मिला है और मेरी विरासत को मिला है. इस परंपरा को कायम रखने के लिए मुझे जवाबदारी मिली थी, वह मैंने पूरी कर दी.' इस काम करने के लिए मुझे कई तरह की मदद भी मिली थी. उन्होंने कहा कि कबीर गायकी के लिए मेरे जीवन में कितनी परेशानी उठाई है, यह मैं और मेरा परिवार जानता है, लेकिन बिना मेहनत के कोई चीज नहीं मिलती है.

दो भजन गाने करते थे कई किलोमीटर का सफर

कालूराम बामनिया ने कहा कि कर्म करो फल की इच्छा ना करो, यह आज साबित हुआ. देवास जिले के कन्हेरिया गांव में जन्मे और छोटे से कस्बे टोंक खुर्द के रहने वाले कबीर गायक कालूराम बामनिया ने यहां तक पहुंचने के लिए कई संघर्ष का सामना किया. उन्होंने कहा कि पूर्वजों द्वारा दी गई इस कला को में जन-जन तक पहुंचाना चाहता था. इसके लिए कई बार घर में पत्नी को बंद कमरे में ताला लगा कर चले जाता था. उन्होंने अपने बुरे दिनों को याद करते हुए कहा इंदौर जिले के शिप्रा के पास सुनवानी महाकाल नामक गांव में 2 तारीख को भजन गाने का कार्यक्रम होता था, लेकिन तब मैं एक खेत पर मजदूरी और चौकीदारी करता था.

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पत्नी को कमरे में कर देते थे बंद

उन दिनों पत्नी खेत के पास बने कमरे में अकेली रहती थी, तो भजन गाने के लिए उसे कमरे में बंद करके ताला लगा कर जाना पड़ता था. उन्होंने बताया दो भजन गाने के लिए उन्हें 5:30 किलोमीटर पैदल चलकर कार्यक्रम में पहुंचना पड़ता था. कई किलोमीटर पैदल चलकर बाद में घर लौट पाते थे. इसके बाद वे दिन में मजदूरी करते थे और रात में खेत की चौकीदारी के साथ अपनी भजन गायकी की जिम्मेदारी भी निभाते थे. उन्होंने कबीर को लेकर ही भजन गाने के सवाल पर कहा कबीर दास व संतों ने लोगों को जगाने का काम किया है. उन्होंने कहा कि यहां तक पहुंचने में उनकी पत्नी का सहयोग रहा है. वही उन्होंने पद्मश्री मिलने के पहले और बाद में जीवन में कई बदलाव आया है. अब कई फोन बधाई के लिए आ रहे हैं. इस दौरान पद्मश्री कालूराम बामनिया ने कई कबीर भजन भी सुनाए.

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