अजमेर. तीर्थ नगरी पुष्कर में सतयुग से नागों का स्थान है. द्वापर युग में पांडवों ने यहां महादेव और माता मंशा देवी की आराधना की थी. पांडवों के नाम से यहां पंचकुंड भी मौजूद है. द्वापर युग से ही यह पवित्र स्थान लोगों की आस्था का केंद्र रहा है. वहीं, श्रावण मास की नाग पंचमी पर यहां नागकुंड में पूजा-अर्चना करने वालों को काल सर्प दोष से मुक्ति मिलती है. ऐसे में गुरुवार को नाग पंचमी के मौके पर सुबह से ही यहां नागकुंड पर पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालुओं का ताता लगा रहा है.
तीर्थ नगरी पुष्कर जगतपिता ब्रह्मा की नगरी होने के साथ ही तपोभूमि भी है. बड़े-बड़े ऋषि मुनियों ने पुष्कर में रहकर तप किए हैं. ऐसे में पुष्कर के नाग पहाड़ पर ऋषियों की तपोस्थली आज भी मौजूद है. यही नाग पहाड़ी की तलहटी में स्थित पंचकुंड भी तपोस्थली है. यह स्थान नागों का है. जगतपिता ब्रह्मा ने इस स्थान को नागों को सौंपा था.
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नागों की आराध्य देवी मंशा देवी हैं, जो इस स्थान के समीप है. यहां कई ऋषियों ने तप किया है. इसके बाद द्वापर युग में भी अज्ञातवास के दौरान पांडव भी यहां आए थे. पांडवों ने यहां भगवान शिव और माता मनसा देवी की आराधना की थी. पांचों पांडवों ने यहां पंचकुंड बनाए थे, जो आज भी उनके नाम से जाने जाते हैं.
सबसे बड़ा कुंड नाग कुंड है, जिसे युधिष्ठिर कुंड भी कहा जाता है. कुंड के ऊपर और प्राचीन नाग मंदिर बना हुआ है. यह मान्यता है कि सुबह जल्दी कुंड में स्नान करके फल का भोग लगाने से निःसंतान स्त्री को संतान सुख की प्राप्ति होती है. नाग पंचमी के दिन इस स्थान का विशेष महत्व है.
काल सर्प दोष से मिलती है मुक्ति : पंडित दीपक कुमार जोशी ने बताया कि पंचकुड का पौराणिक धार्मिक महत्व है. इस पवित्र स्थान का उल्लेख धर्म शास्त्रों में भी मिलता है. उन्होंने बताया कि श्रावण मास की नाग पंचमी पर पंचकुंड में स्थित नाग कुंड में स्नान के बाद काल सर्प दोष की विधिवत पूजा-अर्चना यहां की जाती है. इसके बाद प्राचीन नाग मंदिर में पूजा होती है. वर्षों से यहां नाग पंचमी पर पूजा-अर्चना का दौर चलता आ रहा है. पंडित जोशी बताते हैं कि इस पवित्र स्थान पर पूजा-अर्चना करने से काल सर्प दोष से मुक्ति मिलती है.
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सतयुग से है इस पवित्र स्थान का नाता : महंत गंगा गिरि बताते हैं कि यह पवित्र स्थान सतयुग के समय से है. सतयुग में जगतपिता ब्रह्मा प्रधान थे. त्रेता में राम प्रधान थे. द्वापर में कृष्ण रहे. सतयुग से ही नागों का वास हर युग में रहा है. द्वापर युग में पांडवों के यहां आने से यह स्थान पंचकुंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ है. उन्होंने बताया कि यहां पांच पांडव उनकी मां कुंती और पत्नी द्रौपदी का मंदिर भी स्थित है.
साथ ही यहां नागेश्वर महादेव का भी प्राचीन मंदिर है. पांच पांडवों के नाम से पंच कुंड भी मौजूद है. उन्होंने बताया कि जिनकी जन्म कुंडली में काल सर्प दोष होता है, उसका निवारण यहां पूजा-अर्चना से होता है. वहीं, गुरुवार को नाग पंचमी पर सुबह से यहां श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहा. सुबह से ही यहां काल सर्प दोष से मुक्ति के लिए भारी तादाद में श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना करवाई.
पुष्कर आने वाले तीर्थ यात्री सरोवर में स्नान के बाद पूजा-अर्चना करते हैं और उसके बाद जगतपिता ब्रह्मा के दर्शन कर लौट जाते हैं. जबकि पुष्कर में कई ऐसे पवित्र स्थान हैं, जो सतयुग से यहां मौजूद हैं और पौराणिक महत्व के साथ धार्मिक महत्व भी रखते हैं. पंचकुंड भी इन पवित्र स्थान में से एक है.