देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून को स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल किया गया है. पिछले 5 साल से भी ज्यादा समय से स्मार्ट सिटी का कार्य चल रहा है. देहरादून स्मार्ट सिटी का कार्य अक्सर विवादों में रहा है. कामों में गंभीर अनियमितता के सवाल कोई और नहीं बल्कि सरकार के ही विधायक और मंत्री लगा चुके हैं. खुद शहरी विकास मंत्री कई बार स्मार्ट सिटी का काम कर रहे अधिकारियों पर बरसते हुए दिखाई दिए हैं. हैरानी की बात यह है कि देहरादून में सैकड़ों करोड़ों रुपए के बजट से आगे बढ़ रही ये योजना प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल है. इसके बावजूद इतने विवाद सिस्टम की लापरवाही को बयां करते दिखाई देते हैं.
देहरादून स्मार्ट सिटी योजना बनी मुसीबत: देहरादून शहर को स्मार्ट बनाने के लिए स्मार्ट सिटी योजना को बड़े जोर शोर से शुरू तो किया गया. लेकिन उतनी ही जल्दी यह योजना विवादों में भी आती दिखाई दी. कभी यह विवाद जनता के लिए मुसीबत बनते सड़कों के गहरे गड्ढे बने, तो कभी काम की गुणवत्ता पर उठे सवाल में इस पूरे प्रोजेक्ट पर ही पलीता लगा दिया. ना तो स्मार्ट सिटी का काम सरकार समय से पूरा करवा पाई और ना ही योजना को विवादों से बचाया जा सका. उल्टा जनता की सुविधाओं के लिए चलाई गई ये योजना जनता के लिए ही मुसीबत बन गई. मॉनसून सीजन में सड़कों पर योजना से जुड़े कामों के कारण बने गहरे गड्ढे लोगों को रास नहीं आए.
भारत सरकार के शहरी विकास विभाग ने भेजे जांच के दो रिमाइंडर: देहरादून की स्मार्ट सिटी स्कीम पर छाए विवादों के बादल उत्तराखंड से दिल्ली तक भी पहुंचे. काम में देरी और गुणवत्ता की कमी के साथ लापरवाही की शिकायतें भारत सरकार के शहरी विकास विभाग तक भी गई. भाजपा सरकार के ही भाजपा विधायक ने योजना के काम की पोल खोल दी. शिकायत भारत सरकार पहुंची तो उत्तराखंड सरकार को शिकायतों के आधार पर जांच करने के लिए पत्र भेजा गया. लेकिन चौंकाने वाली बात ही है कि इस पर कोई ठोस एक्शन नहीं हो पाया. मजबूरन भारत सरकार के शहरी विकास अनुभाग को दोबारा जांच के लिए पत्र भेजकर राज्य को याद दिलाई गई. एक के बाद एक जांच के पात्र भारत सरकार से आए तो उत्तराखंड शासन ने भी शहरी विकास विभाग के निदेशक को इन पत्रों की याद दिलाकर इनकी जांच के लिए कह दिया गया.
भाजपा विधायक ने ही उठाए सवाल: इस मामले में भाजपा सरकार के ही भाजपा विधायक खजान दास ने कहा कि पूर्व में उनके द्वारा स्मार्ट सिटी में हो रहे कामों को लेकर शिकायत की गई थी. हालांकि, इसके बाद स्मार्ट सिटी योजना के अंतर्गत उक्त कंपनी को बदलकर दूसरी कंपनी को टेंडर दिया गया. लेकिन उस समय जो शिकायत की गई थी, उसकी जांच नहीं करवाई गई. नतीजा यह हुआ कि भारत सरकार को इस मामले में बार-बार पत्र लिखने पड़े.
हालांकि, भाजपा विधायक का कहना है कि दूसरी कंपनी भी काम को गति नहीं दे पा रही है. उनके द्वारा इसकी भी जानकारी संबंधित अधिकारियों को दे दी गई है. लेकिन सवाल तो यह उठ रहा है कि जब पुरानी शिकायत पर ही शासन ने अब तक मामले में कोई जांच नहीं करवाई है तो अब नहीं शिकायत के लिए क्या उम्मीद की जा सकती है. यह सब तब हो रहा है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्मार्ट सिटी योजनाओं को लेकर सीधे तौर पर खुद रिपोर्ट लेते हैं और भारत सरकार का विभाग मामले में जांच के लिए बार-बार पत्र लिख रहा है. इस बार शासन ने भी निदेशक शहरी विकास को प्रकरण पर जांच के लिए कहते हुए भारत सरकार के इन पत्रों का भी जिक्र किया है.
कांग्रेस ने भी सरकार को घेरा: उधर जब भाजपा सरकार के भाजपा विधायक और पूर्व में सरकार के ही मंत्री स्मार्ट सिटी के काम को लेकर नाराज होते हुए दिखाई दिए हैं. ऐसे में इन हालातों को कांग्रेस भी भुनाती हुई नजर आ रही है. कांग्रेस के नेता स्मार्ट सिटी में बड़े भ्रष्टाचार होने के आरोप लगा रहे हैं और ऐसी स्थिति में सरकार द्वारा इसमें जांच न करवाने पर भी सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं.
पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल बिष्ट ने कहा कि आखिरकार राज्य सरकार स्मार्ट सिटी के कार्यों की जांच क्यों नहीं करवा रही है और कौन है जो संबंधित कंपनियों को जांच से बचाने की कोशिश कर रहा है. उन्होंने कहा कि यह आरोप भी कांग्रेस ने नहीं बल्कि भाजपा के ही विधायक लगा रहे हैं. इसके बावजूद स्मार्ट सिटी योजना में हुई गड़बड़ियों पर सरकार गंभीरता नहीं बरत रही है.
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