वाराणसी : काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पहली बार जेनेटिक और ज्योतिष विभाग मिलकर एक नया शोध करने जा रहे हैं. इस शोध के तहत महिलाओं में बांझपन की समस्या को दूर किया जाएगा. बाकायदा ग्रहण के चाल के जरिए महिलाओं के बांझपन के कारण का पता लगाया जाएगा. समस्या का समाधान किस तरह से किया जाए, इस पर ज्योतिष और जेनेटिक माध्यमों के जरिए शोध किया जाएगा. बड़ी बात यह है कि पहले फेज में 50 लोगों के सैंपल के संग इसकी शुरुआत की जाएगी. इन सैंपल का वैज्ञानिक तरीके से परीक्षण किया जाएगा. इसके साथ ही बांझपन से परेशान जोड़ों की ग्रह-दशा का भी अध्ययन किया जाएगा.
जल्द ही शोध शुरू करने का दावा : आज का समाज हर किसी बात का वैज्ञानिक प्रमाण भी मांगता है. हमारे ऋषियों ने जो बातें बहुत पहले बता दी थीं, आज उनके वैज्ञानिक प्रमाण भी मौजूद हैं. बांझपन का निदान ज्योतिष के माध्यम से भी संभव है. इसे वैज्ञानिक रूप से भी सिद्ध करने के लिए जेनेटिक और ज्योतिष दोनों मिलकर काम करेंगे. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विज्ञान विभाग के प्रोफेसर शत्रुध्न त्रिपाठी ने अपनी शोध को लेकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अपनी बात कही है. उन्होंने कहा कि जल्द ही हम इस शोध पर काम शुरू कर देंगे, जिससे कि समाज की एक बड़ी जनसंख्या को इससे लाभ मिल सके.
ज्योतिष शास्त्र में समाज का स्रर्वोत्तम ध्यान रखा गया : प्रोफेसर शत्रुध्न त्रिपाठी कहते हैं कि ज्योतिष शास्त्र में समाज का स्रर्वोत्तम ध्यान रखा गया है. इसलिए इसको एक समाज का विज्ञान भी कह सकते हैं, जो हमेशा मनुष्य के हर चीज को ध्यान में रखता है. इसमें हर पहलू की एक-एक दृष्टि से वैज्ञानिक व्याख्या की गई है. उसी का एक क्रम यह भी है. हमारे यहां जो विवाह का प्रयोजन है, वह संतान उत्पत्ति है. संतान के अभाव में स्त्रियों को हेय दृष्टि से देखा जाता है. जोड़े को भी गलत दृष्टि से देखा जाता है. इसलिए हमारे शास्त्रकारों और हमारे आचार्यों के चौथी शताब्दी से पहले पुराणों में भी इस तरह वचन लिखे गए हैं.
ज्योतिष शास्त्र में वर्णित है बांझपन का अध्ययन : प्रोफेसर ने बताया कि ज्योतिष शास्त्र में यह लिखा गया है कि कैसे ग्रह-योग होंगे तो संतान होगी और कैसे ग्रह-योग होंगे तो संतान नहीं होंगे. इसमें उपाय क्या कर सकते हैं, इसे भी बताया गया है. किस ग्रह से अभिषेक करेंगे, इसे भी बताया गया है. हम लोगों के यहां बहुत सारे प्रतिवचन है. ये जो बांझपन का अध्ययन है, यह विस्तृत रूप से हमारे यहां ज्योतिष शास्त्र में वर्णित है. अब हम लोग ये चाहते हैं कि आज जो समाज और परिवेश बदल रहा है, उस पर ध्यान दिया जाए. पहले संतान उत्पत्ति के लिए मनु ने 12 प्रकार के पुत्रों को भेद बताया. बीच में सिमटकर यह एक-दो रह गया था. हम या दत्तक पुत्र ले लेते थे या अपना पुत्र होता था उसे ले लेते थे.
जेनेटिक्स और ज्योतिष साथ करेंगे शोध : प्रो त्रिपाठी कहते हैं, 'आज कई तरीके संतान की उत्पत्ति की जा रही है. समय से पहले अगर कोई जान लेता है कि हमारी कुंडली में बांझपन का योग है तो समय से अगर वह उपचार कर लेता है तो वह उस दोष से मुक्त हो जाता है. यह ही इस शास्त्र का लक्षण है. ज्योतिष विभाग इस पर काम कर रहा है. साथ ही जेनेटिक्स के पवन दूबे भी इस काम में लगे हैं. हम लोगों ने इसको लेकर प्रोजेक्ट तैयार किया है. कई जगहों पर इसे हमने भेजा हुआ है. वह इसमें डाटा पर काम करेंगे मैं ग्रह-योग से देखूंगा. वह सैंपलिंग करेंगे तो मैं ज्योतिष से यह देखूंगा कि कितनी समानता है. हम ज्योतिष के माध्यम से इसे देखने की कोशिश करेंगे.
50-50 सैंपल लेकर किया जाएगा शोध कार्य : उन्होंने बताया कि, इसे जानने के बाद इसमें उपाय करने की भी प्रक्रिया की जाएगी. अभी हमने इस काम को लेकर प्रोजेक्ट बना लिया है और डाटा कलेक्शन भी शुरू कर दिया गया है. जो भी जोड़े हमारे पास आते हैं, जिनको 8-10 साल से संतान उत्पत्ति नहीं हुई है, हम उनका 50-50 डाटा संग्रहित कर रहे हैं. उनके ग्रह-योग को देख रहे हैं. जैसे ही बड़ा अनुदान मिल जाता है हम इस पर काम करना शुरू कर देंगे. आजकल बिना संसाधन के कार्य करना संभव नहीं है. एक प्रोफेसर के पास बहुत सारे दायित्व होते हैं. ऐसे में अगर हमें एक परियोजना के माध्यम से अगर कोई सहायक मिल जाता है तो वह सरल हो जाता है. बीएचयू में इसके लिए अप्लाई किया है.
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