पटना: पूरे देश में किसान आंदोलन सुर्खियों में है. किसान MSP के लिए कानून बनाने की मांग पर अड़े हुए हैं, लेकिन दूसरी तरफ बिहार में किसानों के सामने कई समस्या रहते हुए भी कभी कोई किसान आंदोलन चर्चा में नहीं रहा है. आजादी से पहले कई किसान आंदोलनों के जनक रहे राज्य बिहार में बीते कई बरसों में न तो कोई किसान संगठन सक्रिय दिखता है और न ही यहां के किसानों का कोई नुमाइंदा नजर आता है.
बिहार में किसान एकजुट नहीं : बिहार के किसानों के पास समस्याएं तो अनेक है, लेकिन किसान एकजुट नहीं होने और अधिकांश छोटे किसान होने के कारण कोई बड़ा आंदोलन नहीं हो पता है. पंजाब हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से के किसानों की मांग से अलग बिहार के किसानों की मांग होती है. क्योंकि यहां तो मंडी व्यवस्था भी नहीं है. बिहार सरकार ने बाजार समिति की व्यवस्था को काफी पहले ही भंग कर दिया है और उसके लिए भी कभी कोई आंदोलन नहीं हुआ.
"बिहार में जब से नीतीश कुमार आए हैं. कृषि रोड मैप के माध्यम से किसानों की समस्या का समाधान किया है और इसीलिए किसान आंदोलन नहीं करते हैं क्योंकि उनके पास कोई समस्या ही नहीं है और आगे भी कोई आंदोलन नहीं होने वाला है." - विनय चौधरी, जदयू विधायक
कृषि में बिहार पंजाब और हरियाणा से पीछे: पार्टियों की तरफ से भी किसान की समस्या को लेकर कोई बड़ा आंदोलन नहीं होता है. सिर्फ वामपंथी दलों के विभिन्न संगठन जरूर धरना प्रदर्शन और छोटे-मोटे आंदोलन कर लेते हैं, उससे किसानों की समस्या का समाधान नहीं हो पाता है और इसलिए आज कृषि में बिहार पंजाब हरियाणा जैसे राज्यों से पीछे है.
"पंजाब हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से के किसानों की समस्या दूसरी है. वहां किसानों को आधुनिक सुविधा मिली हुई है. बिजली सिंचाई की सुविधा और मंडी की व्यवस्था उनके पास है. अधिक मूल्य के लिए वहां के किसान आंदोलन करते हैं. बिहार के किसान इंफ्रास्ट्रक्चर की डिमांड करते हैं. बिहार में छोटे जोत के किसान है और जो बड़े किसान हैं उन्हें कृषि से मतलब है नहीं. बिहार सरकार कृषि रोड मैप का दावा करती है, लेकिन कृषि रोड मैप हाथी के दांत हैं."
- शिवसागर शर्मा, उपाध्यक्ष, अखिल भारतीय किसान महासभा
बिहार के मात्र 2% किसानों से सरकार अनाज खरीदती है: बिहार के किसानों के पास समस्याएं कम है. बिहार के मात्र 2% किसानों से ही सरकार अनाज खरीदती है. बिहार के किसानों का अनाज दलाल खरीद कर ले जाते हैं. पैक्स छोटे किसानों से समय पर अनाज नहीं खरीदती है. अनाज खरीदने में पैक्स कई तरह की परेशानी पैदा करते हैं. इसके अलावा किसानों को समय पर भुगतान भी नहीं किया जाता. यही कारण है कि सरकार के तरफ से जो लक्ष्य रखा जाता है धान खरीद का या गेहूं खरीद का वह भी पूरा नहीं होता है. बिहार में फल-सब्जी और दलहन की खरीद की व्यवस्था भी नहीं है.
"बिहार में किसानों का आंदोलन नहीं होने के पीछे सबसे बड़ी वजह किसानों में एक जुटता नहीं है. छोटे-छोटे जोत के किसान बंटे हुए हैं. किसान का कोई आंदोलन होता भी है तो वह पार्टी के बैनर तले होता है. किसान यहां जाति में बंटे हुए हैं. पंजाब जैसे राज्यों में 5 एकड़ से अधिक जोत वाले किसान अधिक संख्या में है. बिहार में आधे एकड़ से भी कम जोत वाले एवरेज किसान हैं." - विद्यार्थी विकास, प्रोफेसर, एएनसिंह इंस्टिट्यूट
सूखा और बाढ़ से किसान परेशान: पंजाब और हरियाणा और एक बड़े हिस्से के किसानों का आंदोलन हमेशा चर्चा में रहता है, लेकिन बिहार में किसान अपनी मांगों को लेकर कोई बड़ा आंदोलन नहीं करते हैं. बिहार में 70% से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है और किसानों की आमदनी के मामले में भी बिहार के किसान 28वें पायदान पर है. सूखा और बाढ़ से बिहार के किसान परेशान रहते हैं. पहले बीज खाद के लिए परेशान रहते हैं और फिर फसल तैयार होने पर सही मूल्य फसल का नहीं मिलता है. इसके बाद भी किसान बड़े आंदोलन नहीं करते हैं.
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