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क्यों मनाते हैं धनतेरस? समुद्र मंथन से क्या है इसका नाता, जानिए पौराणिक कथा और मान्यताएं

धनतेरस पर भगवान धन्वन्तरि की पूजा-अर्चना करने का विधान है, आज से 5 दिवसीय दीपावली का त्योहार शुरू

DHANTERAS 2024
धनतेरस 2024 (Photo- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 29, 2024, 12:07 PM IST

देहरादून: आज धनतेरस है. सनातन धर्म में दीपावली से जुड़े धनतेरस पर्व का विशेष महत्व है. धनतेरस पर भगवान धन्वन्तरि की पूजा-अर्चना करने का विधान है. आज से ही 5 दिवसीय दीपावली का पर्व शुरू हो जाता है. तो आइए आज हम आपको बताते हैं धनतेरस क्या है और इसको मनानी की पौराणिक मान्यताएं क्या हैं.

कार्तिक मास भगवान विष्णु का प्रिय महीना है. इस माह भगवान गणेश और धन की देवी माता लक्ष्मी जी के स्वागत और अभिनंदन का पर्व दीपावली, दीवाली, बग्वाल, प्रकाश पर्व आदि के नाम से जाना जाता है. यह त्योहार पांच दिनों तक चलने वाला ज्योतिर्मय पर्व है, जो धन-धान्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है.

5 दिवसीय दीपावली पर्व का पहला दिन है धनतेरस: दीपावली का प्रथम दिवस धनतेरस के नाम से मनाया जाता है. कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व आता है. धनतेरस से जुड़ी कथाओं में सबसे महत्वपूर्ण कथा है- समुद्र मन्थन की.

देव-दानव युद्ध से जुड़ी है कहानी: विष्णु पुराण में वर्णन आता है कि सृष्टि के आरम्भ से ही देव और दानवों के मध्य युद्ध होते रहते थे. इस कारण दोनों ही पक्षों को हानि उठानी पड़ती थी. इस हानि से दुःखी होकर देवता ब्रह्मा के पास गये और उपाय पूछा. ब्रह्मा देवताओं को लेकर क्षीर सागर में निवास करने वाले भगवान विष्णु के पास पहुंच और उनसे इस विषय में उपाय पूछा. विष्णु जी बोले कि तुम लोग समुद्र मंथन करो. वहां से अमृत को प्राप्त करो. उस अमृत को पीकर तुम लोग अमर हो जाओगे. फिर दानव तुम्हें कभी भी हरा नहीं पाएंगे. लेकिन इसके लिए तुम्हें दानवों की सहायता लेनी होगी.

समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश लेकर प्रकट हुए धन्वन्तरि: देवताओं ने दानवों से विचार-विमर्श किया. अमृत के लालच में दैत्य समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए. वासुकी नाग की रस्सी बनाई गई. मंदराचल पर्वत मथानी बना तथा दानव और देवता समुद्र मंथन करने लगे. चौदह रत्न समुद्र से निकले. अंतिम रत्न अमृत था. अमृत कलश को लेकर धन्वन्तरि प्रकट हुए. इसी दिन लक्ष्मी जी भी प्रकट हुईं. इसलिये उन्हें समुद्र की पुत्री भी माना जाता है.

इसलिए मनाते हैं धनतेरस: अमृत का तात्पर्य अच्छे स्वास्थ्य से है. इसलिये भारत सरकार ने इस दिवस को आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाने का निर्णय लिया है. धन्वन्तरि देवताओं के वैद्य हैं और अमृत प्रकृति के वृक्ष, पौधे, फल और फूल हैं, जो विभिन्न प्रकार से हमारे स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं. इसलिए इस दिन लोग चांदी के बर्तन, सिक्के आदि खरीद कर घर में रखते हैं. बर्तनों में कुछ मीठा बनाते हैं और उसे भोग के रूप में स्वीकार करते हैं.

अकाल मृत्यु से बचने के लिए है ये मान्यता: ऐसी मान्यता है कि इस दिन अकाल मृत्यु से बचने के लिये यमराज का व्रत लिया जाता है और उनकी प्रसन्नतार्थ दक्षिण दिशा में दीपक जलाया जाता है. इसी दिन माता लक्ष्मी का भी प्राकट्य समुद्र मन्थन से हुआ था. इसलिए इस दिन माता लक्ष्मी का भी व्रत रखा जाता है.
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डिसक्लेमर: ये सभी तथ्य पौराणिक मान्यताओं और धर्म ग्रंथों पर आधारित हैं.

देहरादून: आज धनतेरस है. सनातन धर्म में दीपावली से जुड़े धनतेरस पर्व का विशेष महत्व है. धनतेरस पर भगवान धन्वन्तरि की पूजा-अर्चना करने का विधान है. आज से ही 5 दिवसीय दीपावली का पर्व शुरू हो जाता है. तो आइए आज हम आपको बताते हैं धनतेरस क्या है और इसको मनानी की पौराणिक मान्यताएं क्या हैं.

कार्तिक मास भगवान विष्णु का प्रिय महीना है. इस माह भगवान गणेश और धन की देवी माता लक्ष्मी जी के स्वागत और अभिनंदन का पर्व दीपावली, दीवाली, बग्वाल, प्रकाश पर्व आदि के नाम से जाना जाता है. यह त्योहार पांच दिनों तक चलने वाला ज्योतिर्मय पर्व है, जो धन-धान्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है.

5 दिवसीय दीपावली पर्व का पहला दिन है धनतेरस: दीपावली का प्रथम दिवस धनतेरस के नाम से मनाया जाता है. कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व आता है. धनतेरस से जुड़ी कथाओं में सबसे महत्वपूर्ण कथा है- समुद्र मन्थन की.

देव-दानव युद्ध से जुड़ी है कहानी: विष्णु पुराण में वर्णन आता है कि सृष्टि के आरम्भ से ही देव और दानवों के मध्य युद्ध होते रहते थे. इस कारण दोनों ही पक्षों को हानि उठानी पड़ती थी. इस हानि से दुःखी होकर देवता ब्रह्मा के पास गये और उपाय पूछा. ब्रह्मा देवताओं को लेकर क्षीर सागर में निवास करने वाले भगवान विष्णु के पास पहुंच और उनसे इस विषय में उपाय पूछा. विष्णु जी बोले कि तुम लोग समुद्र मंथन करो. वहां से अमृत को प्राप्त करो. उस अमृत को पीकर तुम लोग अमर हो जाओगे. फिर दानव तुम्हें कभी भी हरा नहीं पाएंगे. लेकिन इसके लिए तुम्हें दानवों की सहायता लेनी होगी.

समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश लेकर प्रकट हुए धन्वन्तरि: देवताओं ने दानवों से विचार-विमर्श किया. अमृत के लालच में दैत्य समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए. वासुकी नाग की रस्सी बनाई गई. मंदराचल पर्वत मथानी बना तथा दानव और देवता समुद्र मंथन करने लगे. चौदह रत्न समुद्र से निकले. अंतिम रत्न अमृत था. अमृत कलश को लेकर धन्वन्तरि प्रकट हुए. इसी दिन लक्ष्मी जी भी प्रकट हुईं. इसलिये उन्हें समुद्र की पुत्री भी माना जाता है.

इसलिए मनाते हैं धनतेरस: अमृत का तात्पर्य अच्छे स्वास्थ्य से है. इसलिये भारत सरकार ने इस दिवस को आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाने का निर्णय लिया है. धन्वन्तरि देवताओं के वैद्य हैं और अमृत प्रकृति के वृक्ष, पौधे, फल और फूल हैं, जो विभिन्न प्रकार से हमारे स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं. इसलिए इस दिन लोग चांदी के बर्तन, सिक्के आदि खरीद कर घर में रखते हैं. बर्तनों में कुछ मीठा बनाते हैं और उसे भोग के रूप में स्वीकार करते हैं.

अकाल मृत्यु से बचने के लिए है ये मान्यता: ऐसी मान्यता है कि इस दिन अकाल मृत्यु से बचने के लिये यमराज का व्रत लिया जाता है और उनकी प्रसन्नतार्थ दक्षिण दिशा में दीपक जलाया जाता है. इसी दिन माता लक्ष्मी का भी प्राकट्य समुद्र मन्थन से हुआ था. इसलिए इस दिन माता लक्ष्मी का भी व्रत रखा जाता है.
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