मुजफ्फरपुरः डेढ़ महीने बाद होनेवाली राष्ट्रीय स्तर की कबूतरबाजी के लिए मुजफ्फरपुर में 5 हजार कबूतरों की ट्रेनिंग शुरू हो गयी है.शहर के गरी बस्थान रोड की माली गली में कबूतरो को ट्रेनिंग दी जा रही है. जिसमें बिहार के अलावा पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, झारखंड समेत कई राज्यों के कबूतरबाज अपने कबूतरों के साथ आए हुए हैं.
मुजफ्फरपुर के कई कबूतरबाज भी लेंगे हिस्साः कबूतरबाजी की राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में कई बार अपने कबूतर उड़ा चुके कबूतरबाज राजकुमार राजू ने बताया कि "12 मई के बाद प्रतियोगिता का आयोजन होगा. उसके बाद बिहार स्तर पर भी कबूतर उड़ान भरेंगे. इन प्रतियोगिताओं में मुजफ्फरपुर शहर के करीब 25 से 30 कबूतरबाज हिस्सा लेंगे.इसको लेकर ट्रेनिंग की जा रही है.जो कबूतर सबसे ज्यादा देर तक आसमान में उड़ान भरेगा वो विजेता घोषित किया जाएगा."
3 महीने तक दी जाती है ट्रेनिंगः प्रतियोगिता में कबूतर अपना दम दिखा सकें इसके लिए उन्हें तीन महीने की ट्रेनिंग दी जाती है.इस दौरान उनके खाने-पीने का विशेष ध्यान रखना पड़ता है, इसमें काफी खर्चा भी होता है. खाने में प्रतिदिन सरसों, गेहूं, तिल, बाजरा और चना दिया जाता है. छोटे कबूतर के लिए एक ऊंचाई तय की जाती है. उसके ऊपर जाल लगाया जाता है.
1981 से हो रही है प्रतियोगिता: राजकुमार राजू ने बताया कि पुराने कबूतरबाजों में शहर के नवल किशोर सोनी, विजय कुमार सोनी, ललित कुमार सिंह समेत कई लोग भी शामिल है. मुजफ्फरपुर में ये प्रतियोगिता 1981 से होती आ रही है. एक दिन की इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कई राज्यों से कबूतरबाज आते हैं. दूसरे राज्यों से आनेवाले कबूतरबाजों का पूरा ध्यान रखा जाता है और उनके रहने से लेकर खाने तक की व्यवस्था की जाती है.
कैसे होता है विजेता का फैसला ?: राजू बताते हैं कि कबूतर प्रतियोगिता सुबह से शुरू हो जाती है. कबूतर के मालिक उसे आसमान में उड़ाते हैं. प्रतिभागी अपनी विरोधी टीम के घर पर रहते हैं ताकि, जजमेंट सही हो सके. जो कबूतर 12 से 13 घंटे उड़ते हैं और सही तरीके से अपने मालिक के पास लौट आते हैं. वही विजेता बनते हैं.
कबूतरों की पहचान के लिए इंतजामः कौन कबूतर किसका है इसकी पहचान के लिए उनके नाम के साथ-साथ अलग-अलग चिह्न भी लगाए जाते हैं.क्लाक, कलपेटा, लाल आंख, कलसिरा, कासमी, छाप दार, तांबरा, चीनी समेत कई किस्म के कबूतर प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं.कबूतर अपने माता पिता को पहचान सकें, इसके लिए उनके पैरों में प्लास्टिक या रबर का चिन्ह लगाया जाता है. प्रतियोगिता का आयोजन बाबा गरीबनाथ पिजन फ्लाइंग क्लब कराता है.
15 से अधिक प्रजाति को कर रहे है ट्रेनिंग: राज कुमार राजू ने बताया कि उनके पास करीब 15 प्रजाति के कबूतर हैं. इसमें कलसीरा, फीका, चीनी, जाग, हरा, कल्दुंबा, लालडुंबा, लाल आंख, कमग्गर, टैडी, खैरा, कलपुतिया, मस्कली, तांबर, बादामी समेत अन्य प्रजाति के कबूतर शामिल हैं. उन्होंने बताया की इसमें टैडी, बादामी, कमग्गर की ज्यादा रफ्तार है. ये जहां रहते हैं, वहीं अंडे देते हैं.
1. कलसीर कबूतर: इसकी खासियत यह है कि यह 10 से 15 घंटे लगातार आसमान में उड़ सकते हैं. इनकी खुराक सुच्चे मोती, बादाम, केसर, दूध, देसी घी और मेवा हैं.
2. टैडी कबूतर : इनकी खासियत यह है कि यह मालिक के इशारे पर काम करते हैं. इनकी खुराक गेहूं, चने, बाजरा, दाल आदि हैं.
3. बादामी कबूतर : यह कबूतर बादाम के रंग के होते हैं. यह काफी होशियार होते हैं.
4. छापदार कबूतर : इन कबूतर पर छाप होते हैं. यह दिखने में भी आकर्षक होते हैं. आमतौर पर यह मार्केट में 500 रुपये तक में मिल जाते हैं.
5. फीका कबूतर : यह कई नस्ल के होते हैं. इनमें अलग-अलग प्रजाति होते हैं. यह फीके रंग के होते हैं.
6. हरा कबूतर : हरा कबूतर मुख्यतः महाराष्ट्र और मध्य भारत में पाया जाता है. इसका रंग हरा की तरह होता है. यह दिखने में काफी आकर्षक होते हैं.
7. कागजी चीनी कबूतर : कागजी आमतौर पर पूरी तरह सफेद रंग के होते हैं. इसका नाखून भी सफेद होता है. जबकि, चोंच गुलाबी होती है.
8. मसकली कबूतर : मसकली की खासियत यह है कि यह अपनी पूंछ को घुमावदार बना लेते हैं. यह भी फैंसी श्रेणी में आते हैं. यह उड़ान नहीं भरते हैं. यह खुराक में गेहूँ, चने, बाजरा और दाल लेते हैं.
9. कलपुतिया कबूतर : यह दिखने में काफी आकषर्क होते हैं. यह उड़ते भी अच्छे से है. सही ट्रेनिंग दी जाए तो करीब 8 से 10 घंटे आसानी से उड़ेंगे.
10. लाल आंख कबूतर : इन कबूतर की आंखें लाल होती हैं. इनकी पीठ, पंख और पंच हल्के भूरे रंग की होती है. सिर और नीचे के हिस्से हल्के गुलाबी होते हैं.
11. खैरा कबूतर : इसकी खासियत है कि यह अकेला उड़ता है. यह अकेले ही ऊंचा उड़ना पसंद करता है. यह जहां रहता है, उस घर से आसमान की ओर सीधा ऊंचाई की ओर निकलता है. वापस वैसे ही सीधे नीचे की ओर आता है.