भोपाल: लोकसभा के शून्यकाल में सोमवार को भोपाल सांसद आलोक शर्मा ने राजा भोज शोध संस्थान को लेकर मुद्दा उठाया. उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष के माध्यम से केंद्रीय संस्कृति मंत्री से इस संबंध में जानकारी चाही है. आलोक शर्मा ने बताया कि "भोपाल का इतिहास पाषाण युग (लगभग 30,000 ईसा पूर्व) से प्रमाणित है, जिसका प्रमाण क्षेत्र में पाए गए पाषाण कालीन भित्ति चित्र हैं. इसलिए भोपाल में जल्द राजाभोज शोध संस्थान की स्थापना की जानी चाहिए, जिससे लोग उनके पराक्रम और भोपाल के इतिहास के बारे में जान सके."
सांसद शर्मा ने शून्यकाल में पूछा सवाल
सांसद आलोक शर्मा ने लोकसभा अध्यक्ष से कहा कि "क्या संस्कृति मंत्री ये बताने का कष्ट करेंगे कि केंद्रीय संस्कृति निधि के तहत भोपाल में राजा भोज के नाम पर शोध संस्थन बनाने का विचार है. यदि हां तो उससे संबंधित ब्यौरा क्या है. यदि नहीं तो राजा भोज के नाम पर कब तक भोपाल में शोध संस्थान स्थापित किया जाएगा. शर्मा ने कहा कि भोपाल का 1 हजार साल पुराना गौरवशाली इतिहास है.
भोपाल की गौरवशाली संस्कृति है. हमारा भोपाल राजा भोज, सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य, प्रतिहार वंशो, रानी कमलापति और गोंड राजाओं का भोपाल है. भोपाल की वास्तविक विरासत को विश्व पटल पर लाने के लिए सरकार की कोई कार्य योजना है. बताने की कृृपा करें."
राजा भोज नगरीय विकास का अद्वितीय उदाहरण
बता दें कि राजा भोज ने 1010 ईस्वी में 250 वर्ग मील के भोजताल और भीमकुंड का निर्माण किया. यह केवल जल प्रबंधन और पर्यावरण संतुलन का अद्भुत उदाहरण नहीं था, बल्कि उनकी अद्वितीय नगर योजना का भी हिस्सा था. राजा भोज ने समरांगण सूत्रधार जैसे ग्रंथों के माध्यम से स्थापत्य, नगर नियोजन और जल संरक्षण के उत्कृष्ट सिद्धांतों को लागू किया. उनकी नगर योजना में जलाशयों, किलों और आवासीय क्षेत्रों का ऐसा संतुलन था, जो पर्यावरण के अनुकूल और सुरक्षा की दृष्टि से अद्वितीय था. यह योजना आज भी टिकाऊ विकास और शहरी नियोजन के लिए एक प्रेरणा है.
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राजा भोज शोध संस्थान की स्थापना की आवश्यकता
इस संस्थान के माध्यम से न केवल उनके कार्यों पर शोध होगा, बल्कि भोपाल और भोजपाल की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित किया जा सकेगा. जलवायु परिवर्तन के इस दौर में यह शोध टिकाऊ विकास और जल प्रबंधन के लिए नए समाधान प्रदान करेगा. क्रेडाई भोपाल के अध्यक्ष मनोज सिंह मीक ने बताया कि "हमारी मांग है कि सरकार इस संस्थान की स्थापना के लिए तत्काल कदम उठाए, ताकि भोपाल के पाषाण काल (30,000 ईसा पूर्व) से लेकर राजा भोज के युग और वर्तमान तक की गौरवशाली धरोहर को संरक्षित किया जा सके और इसे वैश्विक पहचान मिले.