भोपाल। एमपी में तीसरे चरण में 9 सीटों पर होने जा रहा चुनाव बेहद अहम है. अहम इसलिए नहीं कि इन नौ सीटों में बीजेपी और कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान और दिग्विजय सिंह की साख दांव पर है. अहम इसलिए है कि एमपी की 29 लोकसभा सीटों पर बीजेपी की जीत हार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का राजनीतिक भविष्य तय करेगी. एमपी की सत्ता संभालते ही ये चुनाव मोहन यादव का सबसे बड़ा इम्तेहान है.
सत्ता संभालते ही मोहन यादव का चुनाव करेगा ये चुनाव
एमपी में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही सीएम डॉ मोहन यादव का सबसे बड़ा इम्तेहान ये लोकसभा चुनाव है. सत्ता संभालते ही उन्हें इस सबसे बड़े इम्तेहान का सामना करना पड़ा. राजनीतिक विश्लेषक पवन देवलिया कहते हैं 'डॉ मोहन यादव की प्रशासनिक क्षमता और उनकी कार्यकुशलता के पहले जनता में उनकी स्वीकार्यता की भी परीक्षा है. ये बेशक डॉ मोहन यादव का चुनाव नहीं है, लेकिन असल में ये चुनाव उन्हीं का है.'
इनकी सियासी पारी का सबसे अहम चुनाव
तीसरे चरण में एमपी में होने जा रही वोटिंग में तीन दिग्गज नेताओं के लिए ये चुनाव उनके राजनीतिक जीवन का सबसे अहम चुनाव है. शिवराज सिंह चौहान अठारह बरस की लंबी पारी के बाद विधानसभा छोड़ लोकसभा चुनाव में उतरे हैं. इस चुनाव के नतीजे तय करेंगे कि शिवराज की अठारह साल बाद एमपी से निकल कर दिल्ली की नई पारी कितनी मजबूत और दमदार रहती है. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2019 के चुनाव में जो एतिहासिक मात खाई थी. 2024 का चुनाव सिंधिया के लिए वो खोई साख लौटा लाने का चुनाव है. इसलिए ये चुनाव उनके लिए कड़ा इम्तेहान है. बीजेपी में आगे उनका भविष्य भी इन्हीं चुनाव नतीजों से तय होगा.
वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भटनागर कहते हैं 'शिवराज सिंह चौहान जीत के रिकार्ड के लिए चुनाव लड़ रहे हैं. ये चुनाव असल में उनकी नई राजनीतिक पारी का आगाज है. विदिशा शिवराज की होम पिच है. जिस सीट से चुनाव लड़ने के साथ उन्होंने अपनी चुनावी राजनीति की शुरुआत की थी. अब फिर एक बार उसी सीट से वो राजनीति में अपनी दूसरी दिल्ली की पारी तय करेंगे. पीएम मोदी जिस तरह से मध्य प्रदश के हरदा में हुई सभा में कहकर गए कि शिवराज को अपने साथ दिल्ली ले जाएंगे, इससे ये लगभग स्पष्ट हो चुका है.'
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राजनीतिक जीवन का आखिरी चुनाव लड़ रहे राजा
दिग्विजय सिंह दिग्गी राजा ने राजगढ़ लोकसभा सीट से उम्मीदवार बतौर अपना नाम तय होने के साथ ये कह दिया था कि सत्तर पार की उम्र में उनका ये चुनाव राजगढ़ की जनता नौजवानों को लड़ना है. सत्तर पार की उम्र में पदयात्रा करते दिग्विजय सिंह अपने राजनीतिक जीवन का आखिरी और सबसे अहम चुनाव लड़ रहे हैं. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पवन देवलिया कहते हैं,'यूं दिग्विजयय सिंह जिस जज्बे के नेता हैं, जीत हार से बहुत आहत नहीं होते, लेकिन ये चुनाव उनकी अपनी जमीन का है. क्या उनकी अपने आंगन में स्वीकार्यता बनी हुई है. इस चुनाव के नतीजे ये भी तय करेंगे.