अलवर. "म्हारी छोरी, छोरों से कम है क्या". ये फेमस डायलॉग भले ही फिल्मी हो, लेकिन इस डायलॉग को हकीकत मे बदला है अलवर की बेटियों ने. आज लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से कम नहीं हैं, चाहे वो युद्ध का मैदान हो, या खेल का. अलवर शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित खुदनपुरी गांव. इस गांव में हर घर से एक बेटी हॉकी खिलाड़ी है. ये कमाल है राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में तैनात कोच का. शारीरिक शिक्षक के तौर पर आए विजेंद्र सिंह नरूका ने लड़कियों को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया. ये उनकी ही मेहनत का कमाल है कि आज इस गांव के हर घर से एक लड़की राज्य या नेशनल टीम में हॉकी खेल रही है. अपने प्रशिक्षण से गांव की लड़कियों के हुनर को तराशने के लिए कोच विजेंद्र सिंह नरूका को राज्यपाल से भी सम्मान मिल चुका है.
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय खुदनपुरी में शारीरिक शिक्षक के तौर पर काम कर रहे विजेंद्र सिंह नरूका ने बताया कि उनकी पहली पोस्टिंग 2010 में इस गांव में हुई थी, तब इस गांव की हालत ठीक नहीं थी. लोग लड़कियों को घरों से बाहर निकलने नहीं देना चाहते थे. छोटी उम्र में ही उनकी शादी कर दी जाती थी. इस गांव में अधकितर लोग मजदूरी का काम करते हैं. कई घरों की हालत ऐसी थी, जहां पुरुष शराब के आदि थे. उन्होंने इस गांव की लड़कियों को खेल के माध्यम से रोजगार तक पहुंचाने की मुहिम शुरू की. आज उनकी यही मुहिम रंग लाई और इस गांव की 70 से ज्यादा लड़कियां राज्य व नेशनल स्तर पर खेल चुकी हैं.
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शुरआत में हुई परेशानी : कोच विजेंद्र सिंह नरूका ने बताया कि जब उन्होंने इस पहल की शुरुआत की, तब उन्हें काफी परेशानी का सामना भी करना पड़ा, क्योंकि लड़कियों को उनके घरों से बाहर निकाल कर खिलाना एक चुनौती पूर्ण काम था. एक पुरुष कोच के साथ गांव के लोग अपनी बेटियों को नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होती गई और लड़कियों में खेल के प्रति भावना जागने लगी. इसके बाद वो घरों से बाहर निकली और खेलने लगीं.
पहले रोकते थे, अब हाथ पकड़कर लाते हैं : कोच के कमाल से खुदनपुरी गांव की लड़कियों की किस्मत इस तरह से बदली कि जहां पहले लड़कियों को घरों से बाहर नहीं निकलने नहीं दिया जाता था. वहीं, अब उनके माता-पिता ही लड़कियों का हाथ पकड़कर खेल के मैदान तक लेकर आ रहे हैं. माता-पिता अब लड़कियों का आत्मविश्वास बढ़ा रहे हैं. पहले छोटी उम्र में लड़कियों की शादी हो जाती थी, वह भी अब बंद हो गया है. आज खुदनपुरी गांव के हर घर में एक लड़की राज्य स्तरीय खिलाड़ी या नेशनल खिलाड़ी है.
विजेंद्र सिंह नरूका की देखरेख में 4 बार से ज्यादा नेशनल स्तर तक का सफर तय करने वाली खिलाड़ी राखी जाटव ने कहा कि उन्होंने छठी क्लास से विजेंद्र सिंह नरूका के साथ मिलकर हॉकी खेलना शुरू किया था. उन्होंने पहले कभी नहीं सोचा था कि वह अलवर से बाहर निकाल कर अन्य राज्यों में खेलने के लिए जाएंगी, लेकिन उन्होंने अलग-अलग राज्यों में अलवर सहित राजस्थान का भी प्रतिनिधित्व किया है. आज उन्हें खेलते देखकर उनके माता-पिता को भी उन पर गर्व है. राखी जाटव का कहना है कि वह भारतीय महिला हॉकी टीम में शामिल होना चाहती हैं और विजेंद्र सिंह नरूका व अपने माता-पिता का नाम रोशन करना चाहती हैं.
चुनौती भरा रहा सफर : विजेंद्र सिंह नरूका ने बताया कि जब उन्होंने लड़कियों को कोचिंग देना शुरू किया, तो कुछ समय बाद वहां कंपलेक्स बनने की वजह से उन्हें वह मैदान छोड़ना पड़ा. इसके बाद उन्होंने खिलाड़ियों के साथ मिलकर एक खेल मैदान को तैयार किया. इसके लिए सभी ने कड़ी मेहनत की और वहां लगे जंगली पेड़, झाड़ी, कंटीले पेड़ को हटाकर हॉकी खेलने के लिए मैदान तैयार किया. विजेंद्र सिंह नरूका ने बताया कि उनका पूरा परिवार खेल फील्ड से जुड़ा है. वो पांच भाई हैं, जो शारीरिक शिक्षक के पद पर ही कार्यरत हैं. साथ ही उनके परिवार के और सदस्य भी इसी फील्ड में अपना करियर बना रहे हैं.