भोपाल। लोकसभा चुनाव में एमपी की 29 सीटों पर चुनाव, एमपी के नए सीएम डॉ. मोहन यादव का भी इम्तेहान है. इम्तेहान इन मायनों में कि 2004 के बाद से ये पहला लोकसभा चुनाव होगा जिसमें सत्ता के चेहरे के तौर पर शिवराज नहीं होंगे. विधानसभा चुनाव में जीत के साथ ही शिवराज ने 29 सीटों पर जीत के लिए जो अभियान छेड़ा था अब उस अधूरे अभियान को पूरा करने की अघोषित जवाबदारी भी मोहन यादव के कंधों पर ही होगी.
एमपी में 29 कमल, साख किसकी दांव पर
एमपी में 2004 के आम चुनाव में उमा भारती मुख्यमंत्री थीं. उसके बाद से 2009 से लेकर 2014 तक लोकसभा चुनाव में सीएम बतौर शिवराज सिंह चौहान ही रहे. 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन बीजेपी ने तीन महीने बाद हुए चुनाव में एकदम उलट नतीजे दिए और और एमपी में 29 में से 28 सीटों पर कमल खिल गया. 400 पार के नारे का दम भर रही बीजेपी एमपी में इस बार 29 सीटों पर कमल खिलाने का टारगेट रख चुकी है. इसमें दो राय नहीं कि बूथ स्तर तक की संगठन की प्लानिंग से ये टारगेट इतना मुश्किल भी नहीं. लेकिन, साख केवल संगठन नहीं सीएम मोहन यादव की भी दांव पर है. सत्ता संभालने के दो ढाई महीने बाद ही मोहन यादव को इस परीक्षा में उतरना है.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भटनागर कहते हैं "एमपी में सत्ता का चेहरा अब मोहन यादव ही हैं और लोकसभा चुनाव में जब वे अलग अलग सीटों पर चुनावी सभाएं करेंगे तो ये भी तय होगा कि जनता में उनकी स्वीकार्यता कितनी है. बीजेपी की एक खासियत है कि वो अपने नेता तैयार कर लेती है, तो मोहन यादव तैयार हो रहे हैं और मुझे लगता है कि 29 सीटों के चुनाव नतीजे उन्हें और मजबूत चेहरा बनकर उभार देंगे."
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क्या मोहन बना पाएंगे जनता से सीधा कनेक्ट ?
असल में जिस दिन से मोहन यादव ने एमपी में बतौर सीएम शपथ ली है, उनके सामने शिवराज सिंह चौहान का बेंचमार्क तय कर दिया गया है. हालांकि, हर राजनेता की अपनी राजनीति का अलग अंदाज होता है. इसमें दो राय नहीं कि मोहन यादव भी शिवराज की तरह ही जमीनी नेता हैं. लेकिन उनके सामने चुनौती है शिवराज की तरह की खुद को जनता के बीच लोकप्रियता बढ़ाने के साथ वो कनेक्ट बैठाने की जिसके बूते एमपी में बीजेपी सत्ता का रिकार्ड बनाती रही.
वरिष्ठ पत्रकार पवन देवलिया कहते हैं, "देखिए शिवराज की अपनी राजनीति थी, मोहन यादव का अपना अंदाज है. हमें ये भी देखना चाहिए कि शिवराज सिंह चौहान को सत्ता संभालने के दो ढाई साल बाद लोकसभा चुनाव के इम्तेहान से गुजरना पड़ा था और एमपी में नतीजे फिर भी वैसे नहीं आए थे. फिर मोहन यादव को तो कुल जमा ढाई महीने हुए हैं, लगातार परफार्मेंस प्रेशर में हैं वो. तो खेल की तरह राजनीति में भी असल खेल तभी देखा जा सकता है, जब खिलाड़ी बिना प्रेशर के मैदान में उतरे."