मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर: मनेंद्रगढ चिरमिरी भरतपुर जिले के वनांचल क्षेत्रों के कई वृक्षों पर पूरी तरह से नई कोमल पत्तियां निकल आई है. इसके साथ ही उनमें फूल भी लगने शुरू हो गए हैं. इसके कारण वन क्षेत्रों में सरई पेड़ों के फूल की महक चारों ओर फैल रही है.
आदिवासी वर्ग करते हैं सरई की पूजा: सरई के पेड़ को आदिवासियों का कल्प वृक्ष और एमसीबी को सरई वनों का द्वीप भी कहा जाता है. कहने को तो सरई छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष है, लेकिन इससे विकास और संरक्षण में मदद नहीं मिल पाई है. सरई को एमसीबी में साल भी कहा जाता है. इस वृक्ष की आदिवासी पूजा करते हैं, क्योंकि आधा दर्जन से ज्यादा उत्पाद इसी एक पेड़ से मिलता हैं.
साल के पेड़ के नीचे मिलता है पौष्टिक बोड़ा: हालांकि साल दर साल कूप की कटाई, वनों में अतिक्रमण और अवैध कटाई की वजह से साल के जंगल खत्म हो रहे हैं. करीब पांच सौ साल तक जीवित रहने वाला सरई का वृक्ष आदिवासियों की जिंदगी से जुड़ा है. इससे इमारती और जलाऊ लकड़ी, साल का बीज, धूप, दोना-पत्तल बनाने के लिए उपयोगी पत्ते, दातून और कई तरह की औषधियां मिलती है. सरई वृक्ष के नीचे एक विशेष तरह का मशरूम मिलता है, जिसे एमसीबी में बोड़ा कहा जाता है. बोड़ा काफी पौष्टिक होता है. यही कारण है कि लोग महंगे दामों में बोड़ा खरीदकर खाते हैं. बोड़ा की सब्जी मटन और चिकन से भी अधिक स्वादिष्ट होती है.
साल के वनों पर मंडरा रहा खतरा: दरअसल, इन दिनों वनाधिकार पट्टे के लिए वनों में अतिक्रमण की बाढ़ आ गई है. इससे साल वनों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है. साल के नए पौधे विकसित नहीं हो पा रहे हैं, क्योंकि सरई की दातौन का उपयोग एमसीबी में सभी करते हैं. ग्रामीण प्रतिदिन हजारों सरई की शाखाओं को काटकर बेचने ले जाते हैं. पतली शाखाओं के कटने से पौधों का विकास नहीं हो पाता है. सरई के पेड़ की लकड़ी काफी मजबूत होती है. इसके अलावा सरई के बीज का विभिन्न कार्यों में उपयोग किया जाता है. इसकी काफी डिमांड भी रहती है.
साल के बीजों की विदेशों में भी डिमांड: जानकारों की मानें तो सरई के बीजों की डिमांड देश ही नहीं विदेशों में भी है. इसका उपयोग विभिन्न उपयोगी चीजों को बनाने में किया जाता है. सरई का पेड़ ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का प्रमुख आय का साधन है. इस पेड़ से फल काफी मात्रा में प्राप्त होता है, जिसे ग्रामीण परिवार जमाकर के उसकी फल्ली निकालते हैं. फिर उस फल्ली को बाजार में बेच देते हैं. इससे ग्रामीण परिवारों को बिना लागत के ही अच्छी आय हो जाती है.
सरई हिमालय, असम, ओडिशा, बंगाल, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ पूर्वी और उत्तरी भारत में फैला हुआ है. यह बहुत ही प्राचीन सनातन वृक्ष है. यह इतना सामान्य वृक्ष है कि विश्व के विभिन्न धर्म ग्रंथों में इसका वर्णन है. हमारे हिंदू धर्म में, वेद पुराण में भी इसका वर्णन है. साल वृक्ष को देव वृक्ष भी कहते हैं. इससे जो गोंद निकलता है, उसका हम पूजा, होम, हवन के लिए प्रयोग करते हैं. जहां तक इसके उपयोगिता की बात है तो ये आयुर्वेदिक चिकित्सा में भी उपयोगी है. आदिवासियों के लिए यह जीवन दाता वृक्ष है. आदिवासी लोग इस वृक्ष के फल बीज को एकत्रित करके, इसको बेचते हैं. इस बीज को शासन वन विभाग लघु वन उपज के तरफ से खरीदता है. प्राइवेट व्यापारी, ठेकेदार लोग भी खरीदते हैं. -लवकुश पाण्डेय, रेंजर बिहारपुर
साल वृक्ष के हर हिस्से का होता है उपयोग: इस बारे में एक ग्रामीण राजकुमार ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि, "हमारे ग्रामीण इलाके में जंगल चारों तरफ से घिरा हुआ है. साल के वृक्षों से हमें काफी फायदा होता है. इसका फूल, बीज, लकड़ी भी हम बेच देते हैं. इससे हम बिजनेस भी कर लेते हैं. इसका बीज समिति भी हमसे खरीदती है. इससे काफी प्रॉफिट मिलता है. वहीं, भरतपुर जिला जनपद सदस्य रवि प्रताप ने ईटीवी भारत को बताया कि, "भरतपुर जिला वनांचल क्षेत्र है. यह पूरा वनों से घिरा हुआ है. पतझड़ के बाद सभी पेड़ों में फूल आना शुरू हो गया है. इस साल वन उपज अच्छी होने की संभावना है. यहां साल का पेड़ सबसे अधिक हैं. सालों का पेड़ जंगल का राजा है. इस वर्ष अच्छी फसल की संभावना है. पूरे चांग बखार के लोग वनोपज बिनकर आर्थिक लाभ कमाते हैं.
सरई के बीज के तेल का चिकित्सा में उपयोग: दरअसल, सरई के बीज से तेल निकाला जाता है. इसका उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है. साबुन बनाने के लिए फैक्ट्री में इसके तेल का उपयोग किया जाता है. आदिवासी वर्ग आपातकाल में खाने में भी इसका उपयोग करते हैं. एक तरह से वन क्षेत्र के लिए सरई आमदनी का जरिया है. यही कारण है कि इसे आदिवासियों का कल्पवृक्ष भी कहा जाता है.