ETV Bharat / state

मध्यप्रदेश में यहां विराजमान हैं कुबेर, गुप्तकाल से जुड़ा इस मंदिर का रोचक इतिहास

केदारनाथ के अलावा मध्यप्रदेश के इस शहर में कुबेर देवता की प्रतिमा विराजित है. ढाई हजार साल पुरानी कुबेर प्रतिमा अद्भुत व चमत्कारी है.

Mandsaur kuber temple dhanteras
मंदसौर के खिलची पुरा स्थित गुप्तकालीन कुबेर मंदिर में श्रद्धालु (ETV BHARAT)
author img

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 29, 2024, 1:32 PM IST

मंदसौर। धनतेरस पर धन के देवता कुबेर की पूजा अर्चना का खास महत्व है. हर घर में आज धन-धान्य और कुबेर देवता की पूजा होती है. लेकिन आज हम आपको कुबेर देवता के एक ऐसे मंदिर के इतिहास और उनके दर्शन के महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं जहां कुबेर देवता गुप्त काल से विराजमान हैं. मंदसौर स्थित भगवान कुबेर के इस मंदिर पर दर्शन के लिए मंगलवार को ब्रह्ममुहूर्त से ही हजारों दर्शनार्थियों की लंबी लाइनें लग गईं.

कुबेर देवता की पश्चिम मुखी वक्री प्रतिमा का महत्व

मंदसौर के खिलची पुरा स्थित गुप्तकालीन धोलागढ़ महादेव मंदिर, कुबेर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. उत्तराखंड के केदारनाथ मंदिर के अलावा मंदसौर का धोलागढ़ महादेव मंदिर दूसरा ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव के साथ कुबेर देवता की प्रतिमा विराजित है. ढाई हजार साल पुराने इस मंदिर में कुबेर देवता की 2 फीट ऊंचाई वाली पश्चिम मुखी वक्री प्रतिमा विराजित है. धार्मिक दृष्टिकोण से भगवान कुबेर के मुख का वक्री होने का अर्थ झुक कर देखना है और इस मुद्रा के उन्हें धन-धान्य की ओर झुकाव के तौर पर माना जाता है. इसलिए इस प्रतिमा के दर्शन का भी आज के दिन खास महत्व है.

धनतेरस पर कुबेर मंदिर में पूजा करने पहुंचे श्रद्धालु (ETV BHARAT)

भगवान शिव को चढ़ाया जल होता है कुबेर को अर्पित

कुबेर विश्व के धन-धान्य के देवता माने जाते हैं. इसलिए धनतेरस के दर्शन के लिए आज के दर्शन के खास से महत्व के रूप में लोगों की यहां सुबह से ही उमड़ पड़ी. धोलागढ़ महादेव मंदिर में भगवान शिव को जल चढ़ाने की भी धार्मिक मान्यता है. माना जाता है कि चढ़ाया हुआ जल शिवलिंग की कुंडी से बाहर नहीं निकलता. लिहाजा वह भगवान शिव और कुबेर को अर्पित हो जाता है. इसलिए भी भगवान शिव को जल चढ़ाने और कुबेर को घी का दीपक लगाने के लिए दूरदराज से कई श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.

ये खबरें भी पढ़ें...

खजुराहो का रहस्यमयी शिवलिंग, जिसकी हर साल बढ़ती है लंबाई, विज्ञान भी इस चमत्कार से अनजान

क्यों टेढ़ा विराजमान हैं यहां भोलेनाथ, औरंगजेब से जुड़ा है इस मंदिर का इतिहास

धनतेरस पर दीपक लगाने पहुंचे हजारों श्रद्धालु

धनतेरस के दिन हजारों दर्शनार्थियों की आमद के मद्देनजर प्रशासन ने यह सुरक्षा व्यवस्था के खास से इंतजाम किए. धार्मिक मान्यता के मुताबिक यह मंदिर यति द्वारा तंत्र क्रिया करके उड़ाकर लाये जाने की भी मान्यता है. लिहाजा, इसे तंत्र क्रिया के मामले में भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. भारी भीड़ के मद्देनजर प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था के माकूल इंतजाम किए हैं. मंदिर के पुजारी हेमंत गिरी गोस्वामी बताते हैं "दीपावली के पहले धन की पूजा यानी कुबेर की पूजा और उनके दर्शन का खास महत्व है. धनतेरस के दिन कुबेर देवता को घी के दीपक लगाने के लिए यहां हजारों लोग पहुंच रहे हैं. पूजा अर्चना के लिए भी विशेष व्यवस्था की गई है."

मंदसौर। धनतेरस पर धन के देवता कुबेर की पूजा अर्चना का खास महत्व है. हर घर में आज धन-धान्य और कुबेर देवता की पूजा होती है. लेकिन आज हम आपको कुबेर देवता के एक ऐसे मंदिर के इतिहास और उनके दर्शन के महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं जहां कुबेर देवता गुप्त काल से विराजमान हैं. मंदसौर स्थित भगवान कुबेर के इस मंदिर पर दर्शन के लिए मंगलवार को ब्रह्ममुहूर्त से ही हजारों दर्शनार्थियों की लंबी लाइनें लग गईं.

कुबेर देवता की पश्चिम मुखी वक्री प्रतिमा का महत्व

मंदसौर के खिलची पुरा स्थित गुप्तकालीन धोलागढ़ महादेव मंदिर, कुबेर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. उत्तराखंड के केदारनाथ मंदिर के अलावा मंदसौर का धोलागढ़ महादेव मंदिर दूसरा ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव के साथ कुबेर देवता की प्रतिमा विराजित है. ढाई हजार साल पुराने इस मंदिर में कुबेर देवता की 2 फीट ऊंचाई वाली पश्चिम मुखी वक्री प्रतिमा विराजित है. धार्मिक दृष्टिकोण से भगवान कुबेर के मुख का वक्री होने का अर्थ झुक कर देखना है और इस मुद्रा के उन्हें धन-धान्य की ओर झुकाव के तौर पर माना जाता है. इसलिए इस प्रतिमा के दर्शन का भी आज के दिन खास महत्व है.

धनतेरस पर कुबेर मंदिर में पूजा करने पहुंचे श्रद्धालु (ETV BHARAT)

भगवान शिव को चढ़ाया जल होता है कुबेर को अर्पित

कुबेर विश्व के धन-धान्य के देवता माने जाते हैं. इसलिए धनतेरस के दर्शन के लिए आज के दर्शन के खास से महत्व के रूप में लोगों की यहां सुबह से ही उमड़ पड़ी. धोलागढ़ महादेव मंदिर में भगवान शिव को जल चढ़ाने की भी धार्मिक मान्यता है. माना जाता है कि चढ़ाया हुआ जल शिवलिंग की कुंडी से बाहर नहीं निकलता. लिहाजा वह भगवान शिव और कुबेर को अर्पित हो जाता है. इसलिए भी भगवान शिव को जल चढ़ाने और कुबेर को घी का दीपक लगाने के लिए दूरदराज से कई श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.

ये खबरें भी पढ़ें...

खजुराहो का रहस्यमयी शिवलिंग, जिसकी हर साल बढ़ती है लंबाई, विज्ञान भी इस चमत्कार से अनजान

क्यों टेढ़ा विराजमान हैं यहां भोलेनाथ, औरंगजेब से जुड़ा है इस मंदिर का इतिहास

धनतेरस पर दीपक लगाने पहुंचे हजारों श्रद्धालु

धनतेरस के दिन हजारों दर्शनार्थियों की आमद के मद्देनजर प्रशासन ने यह सुरक्षा व्यवस्था के खास से इंतजाम किए. धार्मिक मान्यता के मुताबिक यह मंदिर यति द्वारा तंत्र क्रिया करके उड़ाकर लाये जाने की भी मान्यता है. लिहाजा, इसे तंत्र क्रिया के मामले में भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. भारी भीड़ के मद्देनजर प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था के माकूल इंतजाम किए हैं. मंदिर के पुजारी हेमंत गिरी गोस्वामी बताते हैं "दीपावली के पहले धन की पूजा यानी कुबेर की पूजा और उनके दर्शन का खास महत्व है. धनतेरस के दिन कुबेर देवता को घी के दीपक लगाने के लिए यहां हजारों लोग पहुंच रहे हैं. पूजा अर्चना के लिए भी विशेष व्यवस्था की गई है."

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.