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महाकुंभ में पहुंची जंगम साधुओं की टोली, अनोखी वेषभूषा-शिव महिमा गाकर खींच रहे लोगों का ध्यान - MAHAKUMBH 2025

पूरे शरीर पर धारण किए हुए हैं शिव पार्वती का स्वरूप, गीतों से गुंजायमान हो रहे अखाड़ों के शिविर

महाकुंभ में पहुंची जंगम साधुओं की टोली.
महाकुंभ में पहुंची जंगम साधुओं की टोली. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 18 hours ago

प्रयागराज : धर्म नगरी प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत होने में कुछ ही दिन बचे हैं. रेती पर तंबुओं का शहर बस चुका है और प्रमुख अखाड़ों के संतों-महंतों ने डेरा डाल दिया है. इसी के साथ एक माह से ज्यादा कुंभनगर धर्म-कर्म और आध्यात्म में रच बस जाएगा. कुंभनगरी में श्रद्धालुओं के साथ ही शिव की महिमा का गुणगान करने जंगम संतों की टोली भी आई है. ये संत मेला क्षेत्र में घूम-घूमकर शिव महिमा का गान कर रहे हैं.

महाकुंभ में पहुंची जंगम साधुओं की टोली. (Video Credit; ETV Bharat)

सिर पर मोर पंख और पगड़ी धारण किए इन घुमक्कड़ संतों से साधुओं और अखाड़ों के शिविर गुंजायमान हो रहे हैं. इनकी अनूठी कला और वेशभूषा मेले में लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही है. अलग-अलग टोलियों में बंटे जंगम समुदाय के इन शिव साधकों की पगड़ी और जनेऊ देवी-देवताओं के प्रतीक स्वरूप हैं. देवी पार्वती के जन्म से लेकर विवाह तक की कथा संगीतमय अंदाज में प्रस्तुत करना इनका मूल उद्देश्य है.

इन संतों की वेषभूषा अद्भुत है. वृक्ष की तरह सिर पर मोर पंख धारण किए ये संत इसे विष्णु भगवान की कलंगी बताते हैं. इसके ठीक नीचे चांदी का मुकुट, आगे शेष नाग, माथे पर डिजाइन वाली बिंदी, दोनों कान में घंटी की तरह लटके कुंडल, गले में जनेऊ, हाथ में तल्ली लिए जंगम संतों की टोली शिविरों में शिव महिमा का बखान कर रही है.

टोली के मुखिया सुनील जंगम ने बताया कि वह दशनाम अखाड़े की गाथा गाते हैं और भगवान भोलेनाथ का गुणगान करते हैं. इनका काम दशनाम की परंपरा का बखान करना है. बताया कि वे सभी 7 अखाड़ों में जाएंगे. वहां साधु-संतों को शिव-पार्वती की कथा गाकर सुनाएंगे. दल केवल कुंभ और महाकुंभ में आता है. सैकड़ों साल से यह परंपरा चली आ रही है.

इन संतों की दक्षिणा लेने की प्रक्रिया बड़ी अनूठी है. ये लोग दक्षिणा को हथेली में न लेकर तल्ली को उल्टा करके उसमें ही लेते हैं. दक्षिणा लेते समय गीत सुनाते हैं ताकि दानी पर शिव कृपा बनी रहे.

यह भी पढ़ें : महाकुंभ 2025 ; इस बार मौनी अमावस्या का स्नान क्यों है सबसे खास, यहां जानिए - MAUNI AMAVASYA FESTIVAL


प्रयागराज : धर्म नगरी प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत होने में कुछ ही दिन बचे हैं. रेती पर तंबुओं का शहर बस चुका है और प्रमुख अखाड़ों के संतों-महंतों ने डेरा डाल दिया है. इसी के साथ एक माह से ज्यादा कुंभनगर धर्म-कर्म और आध्यात्म में रच बस जाएगा. कुंभनगरी में श्रद्धालुओं के साथ ही शिव की महिमा का गुणगान करने जंगम संतों की टोली भी आई है. ये संत मेला क्षेत्र में घूम-घूमकर शिव महिमा का गान कर रहे हैं.

महाकुंभ में पहुंची जंगम साधुओं की टोली. (Video Credit; ETV Bharat)

सिर पर मोर पंख और पगड़ी धारण किए इन घुमक्कड़ संतों से साधुओं और अखाड़ों के शिविर गुंजायमान हो रहे हैं. इनकी अनूठी कला और वेशभूषा मेले में लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही है. अलग-अलग टोलियों में बंटे जंगम समुदाय के इन शिव साधकों की पगड़ी और जनेऊ देवी-देवताओं के प्रतीक स्वरूप हैं. देवी पार्वती के जन्म से लेकर विवाह तक की कथा संगीतमय अंदाज में प्रस्तुत करना इनका मूल उद्देश्य है.

इन संतों की वेषभूषा अद्भुत है. वृक्ष की तरह सिर पर मोर पंख धारण किए ये संत इसे विष्णु भगवान की कलंगी बताते हैं. इसके ठीक नीचे चांदी का मुकुट, आगे शेष नाग, माथे पर डिजाइन वाली बिंदी, दोनों कान में घंटी की तरह लटके कुंडल, गले में जनेऊ, हाथ में तल्ली लिए जंगम संतों की टोली शिविरों में शिव महिमा का बखान कर रही है.

टोली के मुखिया सुनील जंगम ने बताया कि वह दशनाम अखाड़े की गाथा गाते हैं और भगवान भोलेनाथ का गुणगान करते हैं. इनका काम दशनाम की परंपरा का बखान करना है. बताया कि वे सभी 7 अखाड़ों में जाएंगे. वहां साधु-संतों को शिव-पार्वती की कथा गाकर सुनाएंगे. दल केवल कुंभ और महाकुंभ में आता है. सैकड़ों साल से यह परंपरा चली आ रही है.

इन संतों की दक्षिणा लेने की प्रक्रिया बड़ी अनूठी है. ये लोग दक्षिणा को हथेली में न लेकर तल्ली को उल्टा करके उसमें ही लेते हैं. दक्षिणा लेते समय गीत सुनाते हैं ताकि दानी पर शिव कृपा बनी रहे.

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