पश्चिम चंपारण (बगहा) : बिहार के बगहा में इंडो नेपाल सीमा पर गंडक नारायणी तट के त्रिवेणी संगम पर लाखों श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई. माघ मौनी अमावस्या पर्व के मौके पर वाल्मीकीनगर पहुंचकर भक्तों ने स्नान कर पूजा अर्चना की. फिर दान स्वरूप चावल, तिल और गोदान कर मोक्ष प्राप्ति की कामना की.
माघ मौनी अमावस्या पर श्रद्धालुओं की भीड़ : त्रिवेणी संगम पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी है. यहां नारायणी गंडक नदी के तट पर श्रद्धालुओं ने ब्रह्म बेला से ही त्रिवेणी संगम में स्नान करना शुरू कर दिया. इस मौके पर भक्तों ने श्रद्धापूर्वक तिल, चावल और नकदी समेत गोदान किया.
उत्तर प्रदेश और नेपाल से भी पहुंचते लोग : बता दें कि गंडक नदी में सोनभद्र, तमसा और नारायणी नदी मिलती है. यही वजह है कि प्रयागराज के बाद यह दूसरा बड़ा त्रिवेणी संगम है. लिहाजा प्रत्येक वर्ष माघ मौनी अमावस्या पर्व पर बिहार, उत्तर प्रदेश और नेपाल के विभिन्न इलाकों से लाखों की संख्या में स्नान-दान करने लोग पहुंचते हैं.
धर्मग्रंथों में मिलता है वर्णन : यहीं नहीं महाभारत के सभापर्व में गंडकी नदी के बारे में जिक्र मिलता है. 'तत: स गंडकाञ्नछूरोविदेहान् भरतर्षभ:, विजित्याल्पेन कालेनदशार्णानजयत प्रभु:'. कई महाकाव्यों में इस नदी को सदानीरा भी कहा जाता है. 'गंडकींच महाशोणां सदानीरां तथैव थ'. इसके साथ ही इस नदी का तीर्थरूप में भी वर्णन मिलता है. 'गंडकीं तु सभासाद्य सर्वतीर्थ जलोद्भवाम् वाजपेयमवाप्नोति सूर्यलोकं च गच्छति'. लिहाजा इस त्रिवेणी संगम पर स्नान करने का महत्व काफी बढ़ जाता है.
कन्यादान और गोदान सबसे बड़ा दान : नदी तट पर गोदान करा रहे पंडित तारकेश्वर पांडे ने बताया कि, ''माघ मौनी अमावस्या महापर्व का धार्मिक महत्व तो है ही, साइकोलॉजिकल महत्व भी अहम है. हम पूर्व से ही देखते समझते आ रहे हैं कि कोई भी स्नान दान वाला पर्व ठंड के मौसम में ही पड़ता है. इसका मुख्य कारण यह है कि जाड़े में लोग नहाने में आलस करते हैं. नतीजतन ठंड के मौसम में स्नान दान करने से आलस का त्याग होता है. गोदान की परम्परा है, जिसका भक्त निर्वहन भी करते हैं. कन्यादान और गोदान जैसा इस दुनिया में कोई दान नहीं.''
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