लखनऊ : एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) में चयनित लखनऊ की चिकनकारी में नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं. चिकनकारी केंद्रों पर अब संतरे के छिलके, बांस और गुलाब के फूलों से बने कपड़ों पर चिकनकारी की जा रही है. ये कपड़े यहां बनाए नहीं जाते, कंबोडिया से आयात किए जाते हैं. सामान्य कपड़ों से ये थोड़े महंगे जरूर हैं, लेकिन पहनने में आरामदायक अधिक हैं. अभी कपड़ों से विशेषकर महिलाओं के लिए टाप, साड़ियां व कुर्ते तैयार किए जा रहे हैं.
हजरतगंज स्थित सुप्रसिद्ध चिकनकारी शोरूम की सीईओ वर्तिका पंजाबी ने बताया कि चिकन कारीगरी लोगों की पहली पसंद है. चिकन कारीगरी में अब नए-नए प्रयोग हो रहे हैं. ऐसे-ऐसे फैब्रिक पर चिकनकारीगरी की जा रही है. इससे ऊपर कढ़ाई करना मुश्किल था या फिर जिनके ऊपर डिजाइन बनाते हुए काफी मेहनत लगती है. कई ऐसे फैब्रिक होते हैं. इन पर बड़ी मुश्किल से कढ़ाई होती है. इसकी डिमांड भी अब बहुत ज्यादा है.
सेलिब्रिटी हो या फिर देश विदेश के दो हर कोई चिकनकारी को पसंद करते हैं. अब चिकनकारी कपड़ों का क्रेज बहुत ज्यादा है. पहले भी था लेकिन, अब एक से बढ़कर एक स्टाइलिश कुर्ती टॉप उपलब्ध हैं. इसकी वजह से अब यह एक फैशन बन गया है. चिकनकारी कढ़ाई कई प्रकार की होती हैं. इनमें उभरे हुए टांके, जो कपड़े पर एक दानेदार रूप देता है. दूसरा है जाली का काम, जो थ्रेड टेंशन से किया जाता है. इसके अलावा मुर्री भी काफी लोकप्रिय है.
नॉर्मल कुर्ती से अधिक है दाम : वर्तिका ने बताया कि चिकनकारी की एक नॉर्मल कुर्ती की कीमत हजार रुपये से शुरू हो जाती है. मार्केट में जो भी चीज नई आती है उसकी कीमत शुरुआत में अधिक रहती है फिर चाहे बाद में भले ही धीरे-धीरे उसकी कीमत कम हो जाए. फिलहाल दो हजार रुपये से नेचुरल फैब्रिक की कुर्तियां शुरू होती हैं. बहरहाल नया-नया बाजार में आया है, इसलिए इसकी कीमत कुछ ज्यादा है. कुछ समय बाद इसकी कीमत बेशक कम होगी.
चिकनकारी विशेषज्ञ विनोद पंजाबी ने बताया कि संतरे के छिलके, बांस और गुलाब की पत्तियों के अलावा केले के रेसे और दूध की मलाई से भी कपड़े तैयार किए जाते हैं. दक्षिण भारत में कुछ स्थान पर ऐसे फैब्रिक तैयार किए जा रहे हैं. हालांकि देश में अभी मांग की अपेक्षा उत्पादन कम है. आयात कपड़ों पर कटिंग से लेकर छपाई, धुलाई और कढ़ाई सभी कार्य लखनऊ और आसपास के क्षेत्रों में किए जाते हैं. यहां के चिकन के वस्त्रों की भारत के विभिन्न राज्यों के अलावा अमेरिका, दुबई, सिंगापुर, यूरोप और अफ्रीकी देशों में मांग है. चिकन के कपड़े पाकिस्तनान में भी खूब पसंद किए जाते हैं, लेकिन वहां अधिकतर आपूर्ति दुबई से की जाती है. ई-कामर्स साइटें भी चिकन के कपड़े बेच रही हैं.
तीन से चार हजार रुपये में टॉप : संतरे के छिलके, बांस और गुलाब से बने परिधानों पर चिकनकारी के बाद रेट तय किया जाता है. जैसी चिकनकारी होगी, वैसा ही उसका मूल्य होता है. अली ने बताया कि सामान्य चिकनकारी वाले टाप तीन से चार हजार रुपये तक में उपलब्ध हैं. इन फैबरिक की साड़ियां भी बनाई जा रही हैं. हजरतगंज और चौक के कुछ चिकनकारी आउटलेट्स पर ये कपड़े खरीदे जा सकते हैं.
चिकन कारीगर अंजली ने बताया कि पिछले चार महीने से चिकनकारी का काम कर रही हैं. चिकन कारीगरी में बहुत सारी कढ़ाई आती है, लेकिन सबसे ज्यादा जाली वाली डिजाइन बनाना अच्छा लगता है. यह दिखने में भी बहुत खूबसूरत होती है और साथ ही इसे बनाने में भी अच्छा लगता है. चिकनकारी कढ़ाई के 32 अलग-अलग टांके हैं. पांच मूलभूत चिकनकारी टांके जो अक्सर इस्तेमाल किए जाते हैं वे फंदा, जाली, टेपची, मुर्री और बखिया है.
कारीगर सन्नो बानो ने बताया कि पिछले 12 साल से इस कारखाने में कढ़ाई-बुनाई कर रही हूं. चिकन कारीगरी से ही हमारा घर चल रहा है. अब हर तरह के फैब्रिक पर चिकन कारीगरी का वर्क हो रहा है. शुरुआत में सिर्फ कॉटन के कपड़ों पर ही चिकन कारीकारी होती थी, लेकिन अब हर फैब्रिक पर चिकनकारी हो रही है.
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