पटनाः 2024 के लोकसभा चुनाव की जंग अब तेज होती जा रही है. बिहार की बात करें तो राज्य की 40 सीटों में से अधिकांश सीटों पर NDA और महागठबंधन के बीच सीधी टक्कर है. दोनों गठबंधनों में राष्ट्रीय पार्टियों के अलावा बिहार के कई क्षेत्रीय दल शामिल हैं. NDA में बीजेपी के अलावा जेडीयू, एलजेपीआर, हम और आरएलएम हैं तो महागठबंधन में कांग्रेस-लेफ्ट के अलावा आरजेडी और वीआईपी शामिल हैं. इसमें शक नहीं कि पिछले कई चुनावों से क्षेत्रीय पार्टियों ने बिहार की राजनीति में खासा असर डाला है लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में इन क्षेत्रीय दलों के प्रमुखों की प्रतिष्ठा दांव पर है.
2019 में लगा था बड़ा झटकाः 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों से बिहार में क्षेत्रीय दलों को बड़ा झटका लगा था. NDA में शामिल जेडीयू और एलजेपी तो सीट पाने में कामयाब रहीं लेकिन आरजेडी जैसी पार्टी का खाता तक नहीं खुला. इसके अलावा वीआईपी, हम और आरएलएसपी कहीं से लड़ाई में नहीं दिखी. हम के तत्कालीन अध्यक्ष जीतनराम मांझी, आएलएसपी के उपेंद्र कुशवाहा भी चुनाव हार गये थे.
2024 में NDA के साथ उपेंद्र : 2014 में NDA के साथ रहते हुए उपेंद्र कुशवाहा 3 सीट जीतने में कामयाब तो रहे ही केंद्र में मंत्री पद भी पा गये थे. लेकिन 2019 में स्थिति बदल गयी. महागठबंधन के साथ हाथ मिलकर चुनाव लड़ना कुशवाहा के लिए घाटे का सौदा रहे और खुद काराकाट से चुनाव हार गया.ऐसे में उपेंद्र एक बार फिर NDA के साथ हैं और फिर काराकाट लोकसभा सीट से किस्मत आजमा रहे हैं. जाहिर है काराकाट का रिजल्ट उनका राजनीतिक भविष्य तय करेगा.
जीतनराम मांझी अब NDA के साथः 2019 में हम के तत्कालीन अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने महागठबंधन के कैंडिडेट के रूप किस्मत आजमाई थी लेकिन जीतने में सफल नहीं रहे जिसके बाद चुनावी राजनीति से संन्यास ले चुके मांझी एक बार फिर NDA कैंडिडेट के रूप में गया से चुनावी मैदान में उतर चुके हैं. वेसे तो जीतनराम मांझी के लिए ये अंतिम ही चुनाव है लेकिन इस बार का रिजल्ट उनके परिवार और पार्टी के लिए बहुत ही अहम है.
लोकसभा में AIMIM का खाता खोल पाएंगे अख्तरूल ईमान ?: बात AIMIM की करें तो विधानसभा में पार्टी ने खाता तो खोल दिया लेकिन लोकसभा चुनाव में बिहार से पार्टी के खाता खुलने का अभी इंतजार है. 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के बिहार प्रमुख अख्तरूल ईमान ने किशनगंज की लड़ाई तीसरी पोजीशन हासिल की थी. इस बार भी अख्तरूल ईमान मैदान में हैं, साथ ही पार्टी ने एक दर्जन से भी अधिक सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं. जाहिर है इस चुनाव के नतीजे AIMIM का भविष्य बिहार में तय करेंगे.
मुकेश सहनी की वीआईपी का क्या होगा ?: खुद को बिहार की सियासत में स्थापित करने के लिए वीआईपी के अध्यक्ष मुकेश सहनी लगातार पाला बदलते रहे हैं. 2020 में NDA गठबंधन के साथ मिलकर सहनी ने विधानसभा की 4 सीटें जीतने में कामयाबी भी हासिल की लेकिन बाद में सभी विधायक बीजेपी में चले गये. इस बार मुकेश सहनी फिर गठबंधन के साथ हैं. मुकेश खुद तो चुनाव नहीं लड़ रहे हैं लेकिन पार्टी 3 सीटों से मैदान में है. जाहिर है मुकेश अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और इस बार के नतीजों पर काफी हद तक उनका भविष्य टिका है.
विधानसभा चुनाव वाली सफलता दोहरा पाएंगे तेजस्वी?: 2019 के लोकसभा चुनाव में जिस आरजेडी का खाता नहीं खुला था उसी आरजेडी ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व में 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया और सबसे बड़ दल के रूप में उभरा. अब तेजस्वी के सामने एक बार फिर बड़ी चुनौती है, क्योंकि माना जाता है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव का वोटिंग पैटर्न थोड़ा अलग जरूर होता है. ऐसे में देखना है कि तेजस्वी 2020 वाली सफलता अर्जित करते हैं या फिर 2019 वाला ही हश्र होता है.
वजूद बचाने के लिए गठबंधन !: बिहार की सियासत पर पैनी नजर रखनेवाले वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहना है कि "क्षेत्रीय दलों के पास पहचान का संकट है और अपनी नैया पार लगाने के लिए ही वो बड़े दलों के साथ गठबंधन करते हैं."हालांकि क्षेत्रीय दल इसे स्वीकार नहीं करते हैं. जेडीयू प्रवक्ता राहुल शर्मा का कहना है कि "क्षेत्रीय दलों का भी अपना वोट बैंक है और उनका वोट बैंक ट्रासफर होना बेहद ही मायने रखता है". वहीं आरजेडी के प्रवक्ता एजाज अहमद का कहना है कि "NDA में शामिल दलों ने अदद एक सीट के लिए अपनी विचारधारा छोड़ दी है और जनता इसे बखूबी समझ रही है."
किसकी नैया लगेगी पार, किसकी फंसेगी मझधार ? : राजनीतिक विशेषज्ञ रवि अटल का कहना है कि ''मोदी लहर में NDA के साथ जो क्षेत्रीय दल हैं उनका तो बेड़ा पार लग जाएगा. यही कारण है कि 2014 में तीन सीटों पर जीत दर्ज करनेवाले उपेंद्र कुशवाहा एक सीट पर समझौते को मजबूर हो गये. वहीं 3 बार लोकसभा चुनाव हार चुके जीतनराम मांझी की नैया भी इस बार पार लग सकती है.''