जयपुर : निर्वाचन आयोग ने 8 राज्यों की 11 राज्यसभा सीटों पर होने वाले चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है. इन 11 सीटों में राजस्थान की भी एक सीट शामिल है. वहीं, विधानसभा फार्मूले के लिहाज से कांग्रेस खाते से खाली हुई इस सीट पर भाजपा का पलड़ा भारी है. ऐसे में प्रदेश भाजपा में चुनावों की अधिसूचना जारी होने के साथ ही लॉबिंग भी शुरू हो गई है. पार्टी के नेता अपने-अपने पक्ष को मजबूत करने के लिए खास नेताओं से पैरवी भी करा रहे हैं. उधर, लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद पार्टी सोशल इंजीनियरिंग पर मंथन कर रही है. वहीं, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मदन राठोड़ ने कहा कि राज्यसभा चुनाव में जीत पक्की है. बहुमत का आंकड़ा बीजेपी के पास पूरा, कांग्रेस अगर उम्मीदवार भी उतारे तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता है.
सीट एक, दावेदार अनेक : राजस्थान में भाजपा के लिए राज्यसभा सदस्यों की गणित को देखते हुए कांग्रेस के बराबर आने का पूरा मौका है. फिलहाल राज्यसभा की तस्वीर को देखा जाए तो कांग्रेस के पास पांच और भाजपा के पास चार सदस्य हैं. भाजपा के पास एक सीट के लिए पूर्ण बहुमत है. ऐसे में अब भाजपा में राज्यसभा उम्मीदवारों की दावेदारी बढ़ गई है.
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सोशल इंजीनियरिंग पर विशेष फोकस : पार्टी अपने स्तर पर सोशल इंजीनियरिंग को परखने की कोशिश कर रही है तो पार्टी नेताओं ने इस सीट के लिए अपना दमखम लगाना शुरू कर दिया है. भाजपा के पास देखा जाए तो चार सीटों पर जो राज्यसभा सदस्य हैं, उसमे दो ओबीसी, एक एसटी और एक चेहरा जनरल कास्ट से है. ऐसे में अब जिस भी नाम को लेकर पार्टी विचार करेगी, वो इसी जाति गणित को ध्यान में रख कर करेगी.
चर्चा में ये नाम : राज्यसभा के लिए जब दावेदारों के नामों की चर्चा होती है तो राजस्थान में चार नेताओं के नाम सबसे ऊपर नजर आते हैं, जिसमें तारानगर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हार चुके पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, पूर्व उपनेता प्रतिपक्ष डॉ. सतीश पूनिया, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व कैबिनेट मंत्री रहे अरुण चतुर्वेदी और महिला के कोटे से राष्ट्रीय मंत्री अलका गुर्जर का नाम मजबूत दावेदार के रूप में देखा जा रहा है.
राठौड़ का पलड़ा भारी : तारानगर विधानसभा सीट से चुनाव हार चुके पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ इन दिनों लगातार दिल्ली दौरे पर दिखाई दे रहे हैं. अचानक दौरे बढ़े तो सियासी गलियारों में राज्यसभा उम्मीदवार के लिहाज से चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया. पार्टी अगर राठौड़ को उम्मीदवार बनती है तो उनके पक्ष मजबूत होने के प्रमुख कारण उनका प्रदेश भाजपा के कद्दावर नेता और रणनीतिकारों में शुमार होना रहेगा.
उन्होंने नेता प्रतिपक्ष रहते गहलोत सरकार को सदन में जमकर घेरा था. संसदीय मामलों में राठौड़ की मजबूत पकड़ है. इसके साथ ही वो राजपूत समाज से आते हैं. ऐसे में राजपूत परंपरागत वोट बैंक को साधनें की रणनीति पर भी काम किया जा सकता है. बीते लोकसभा चुनाव के दौरान केंद्रीय नेतृत्व ने उचित आश्वासन दिया था. हालांकि, राठौड़ के कमजोर पक्ष की बात करें तो लोकसभा चुनाव में राहुल कस्वां का टिकट कटवाने से जाट समाज उनसे खासा नाराज है और वो सुर्खियों में भी रहे थे. साथ ही राठौड़ को संघ का समर्थन मिलना मिश्किल है. गुटबाजी के चलते बड़े नेता राजेंद्र राठौड़ के पक्ष में नहीं हैं.
पूनिया के जरिए जाट समाज को साधने की कोशिश : दूसरे दावेदार के तौर पर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व आमेर से विधानसभा का चुनाव हार चुके पूर्व उपनेता प्रतिपक्ष डॉ. सतीश पूनिया हैं. उनकी दावेदारी भी मजबूत मानी जा रही है. सतीश पूनिया की मजबूत दावेदारी के कारणों की बात करें तो संगठन में मजबूत पकड़ और जमीनी नेता के रूप में उनकी पहचान है. विपक्ष में प्रदेशाध्यक्ष रहते कांग्रेस सरकार के खिलाफ सड़कों पर संघर्ष किया, जिसका फायदा पार्टी को विधानसभा चुनाव में मिला.
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इसके साथ ही पूनिया की कार्यकर्ताओं में अच्छी पकड़ मानी जाती है. वो आरएसएस की गुड लिस्ट में भी आते हैं. पूनिया पर दांव खेलकर पार्टी नाराज चल रहे जाट समाज को साध सकती है. हालांकि, पूनिया के कमजोर पक्ष को देखे तो प्रदेश की मौजूदा लीडरशिप से उनका तालमेल कुछ ठीक नहीं है. साथ ही प्रदेश भाजपा के बड़े नेताओं से मतभेद की खबरें भी समय-दर-समय आते रही है.
जोशी की कमी चतुर्वेदी से : राठौड़ और पूनिया के बाद मजबूत दावेदारी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री रहे अरुण चातुर्वेदी की मानी जा रही है. संघ पृष्ठभूमि से आने वाले चतुर्वेदी को राज्यसभा सदस्य बनाकर पार्टी हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष पद से ब्राह्मण चेहरे को हटाने के बाद उत्पन हो रही स्थिति को ब्राह्मण चेहरे पर दांव खेल सकती है. चतुर्वेदी के मजबूत पक्ष को देखे तो संगठन के प्रति वफादार रहे हैं.
विधानसभा चुनाव में चतुर्वेदी का टिकट काटा गया, बावजूद इसके उन्होने पार्टी के लिए मजबूती से काम किया. विधानसभा में परिवर्तन यात्रा की कमान संभाली थी. यही वजह है कि प्रदेश के बड़े नेता चतुर्वेदी के लिए लॉबिंग कर रहे हैं. हालांकि, चतुर्वेदी के कमजोर पक्ष को देखे तो वो बड़े जनाधार वाले नेता नहीं हैं. राज्यसभा में पहले से ही ब्राह्मण को प्रतिनिधित्व मिल चुका है. वर्तमान में ब्राह्मण चेहरे के तौर पर घनश्याम तिवाड़ी राज्यसभा सांसद हैं.
गुर्जर के साथ महिला कोटे की होगी पूर्ति : इसके बाद चौथे नंबर पर मजबूत दावेदार में राष्ट्रीय मंत्री अलका गुर्जर का नाम आता है. अलका गुर्जर के जरिए भाजपा एक साथ दो समीकरण साध सकती है. पहला गुर्जर समाज को साधा जा सकता है तो दूसरा महिला कोटे की पूर्ति हो सकती है. अलका गुर्जर के मजबूत पक्ष को देखें तो वर्तमान में पार्टी की राष्ट्रीय मंत्री, विधानसभा और लोकसभा में टिकट नहीं मिलने के बावजूद काम किया.
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पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा संगठन में अलका सिंह के कामकाज से वाकिफ हैं. प्रदेश से फिलहाल एक भी महिला राज्यसभा में सांसद नहीं है. अलका के जरिए नारी शक्तिबंधन का संदेश दिया जा सकता है. हालांकि, कमजोर स्थिति आरएसएस में कमजोर पकड़ हो सकती है. इसके साथ ही प्रदेश के बड़े नेताओं का समर्थन भी उन्हें नहीं मिलने के आसार हैं.
चौंका भी सकती है पार्टी : राज्यसभा उम्मीदवार की चर्चाओं के बीच ये भी माना जा रहा है कि जिस तरह से मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के नामों को लेकर पार्टी ने चौंकाना वाला निर्णय लिया. वैसे ही पार्टी इस बार भी किसी नए चेहरे पर दांव खेल सकती है. ऐसे में पंजाब के रवनीत सिंह बिट्टू को राजस्थान से राज्यसभा भेजा जा सकता है. बिट्टू कांग्रेस से भाजपा में आए थे, लेकिन लोकसभा चुनाव हार गए. बावजूद इसके मोदी सरकार में राज्यमंत्री बनाए गए हैं. ऐसे में उन्हें राज्यसभा के जरिए संसद में लाया जा सकता है.