देहरादून: हर साल 8 सितंबर को विश्व फिजियोथेरेपी डे यानी विश्व भौतिक चिकित्सा दिवस मनाया जाता है, ताकि लोगों को फिजियोथेरेपिस्ट (भौतिक चिकित्सक) की ओर से किए जा रहे कार्यों की जानकारी दी जा सके. साथ ही फिजियोथेरेपी क्या है और किस तरह से काम करता है, इसकी जानकारी भी दी जा सके. ऐसे में फिजियोथेरेपी का रोजमर्रा के जीवन में किस तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है. फिजियोथेरेपी के साइड इफेक्ट क्या हैं. प्राचीन काल और वर्तमान फिजियोथैरेपी की विधाओं में कितना बदलाव आया है ? जानने के लिए पेश है ये खास रिपोर्ट.
वर्ल्ड फिजियोथेरपी डे: आज के इस दौर में डॉक्टर के साथ ही फिजियोथेरेपिस्ट की भी भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो गई है. जहां एक ओर नई-नई बीमारियां बढ़ रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर गलत तरीके से एक्सरसाइज, गलत तरीके से बैठकर या लेटकर मोबाइल/लैपटॉप का इस्तेमाल करने से गर्दन, कमर, घुटना दर्द जैसी दिक्कतें भी बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में अधिकांश लोग, दर्द निवारण के लिए मेडिसिन का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन उस दर्द को पूरी तरह से ठीक करने के लिए फिजियोथेरेपी का सहारा नहीं लेते हैं, जो उनके इलाज के लिए काफी बेहतर साबित हो सकती है.
ये है वर्ल्ड फिजियोथेरपी डे की थीम: विश्व भौतिक चिकित्सा परिसंघ, दुनिया का एकमात्र ऐसा संगठन है, जो विश्वभर के सभी फिजियोथेरेपिस्ट का प्रतिनिधित्व करता है. इस परिसंघ की स्थापना 8 सितंबर 1951 को की गई थी. लेकिन 8 सितंबर को फिजियोथेरपी डे के रूप में मनाने की आधिकारिक घोषणा 8 सितंबर 1996 को की गई थी. जिसके बाद से ही इसे हर साल मनाया जाता है. साथ ही इसके लिए हर साल एक थीम भी निर्धारित की जाती है, जिसके तहत साल 2024 में फिजियोथेरपी डे मनाने के लिए 'कम पीठ दर्द (Low Back Pain) और इसके प्रबंधन और रोकथाम में फिजियोथेरेपी की भूमिका' थीम रखी गई है.
1960 के आसपास हुआ फिजियोथेरेपी का अनुभव: दून मेडिकल कॉलेज के पूर्व चीफ फिजियोथेरेपिस्ट एसके त्यागी ने बताया कि देश में फिजियोथेरेपी का अनुभव 1960 के आसपास हुआ. फिजियोथेरेपी एक पुरानी पद्धति है. पहले के समय में चाइना और देश के ग्रामीण क्षेत्रों में मालिश करके या किसी फ्रैक्चर को हाथ से ही ठीक किया जाता था. उसी का ही एक मॉडर्न रूप फिजियोथेरेपी हो गया है. हर बीमारी को मेडिसिन के जरिए ठीक नहीं किया जा सकता है. क्योंकि मेडिसिन के तमाम साइड इफेक्ट भी होते हैं. लिहाजा, कुछ बीमारियों को फिजियोथेरेपी के जरिए ही ठीक किया जा सकता है.
दर्द की दवा है फिजियोथेरेपी: अगर किसी को दर्द से जुड़ी हुई दिक्कतें हैं, तो उसको बिना किसी दवाई के और बिना किसी साइड इफेक्ट के ठीक किया जा सकता है. क्योंकि एक्सरसाइज और फिजियोथेरेपी के लिए कोई समय ऐसा निर्धारित नहीं है कि इतने समय तक ही करना है. बल्कि कितने समय तक भी कर सकते हैं. हालांकि, कुछ बीमारियों में शत-प्रतिशत मरीजों को राहत मिल जाती है, लेकिन कुछ बीमारियों में एक सहायक इलाज के रूप में भी इस्तेमाल किया जाया है.
वर्तमान समय में योग और रनिंग का प्रचलन काफी अधिक बढ़ गया है. लेकिन बिना किसी सलाह के रनिंग कर रहे हैं तो उसका पैर के घुटनों में काफी असर पड़ता है. इससे ज्वाइंट पेन और हिप ज्वाइंट पेन भी होने की आशंका रहती है. ऐसे में अगर मिनिमम और मैक्सिमम परिधि को ध्यान में रखते हुए अपने रोजमर्रा के जीवन में योग और रनिंग को अपनाते हैं, तो यह काफी फायदेमंद साबित हो सकता है.
तेजी से बढ़ रही है गर्दन और कमर दर्द की समस्याएं: आज के इस दौर में गर्दन दर्द, कमर दर्द या फिर कोहनी का दर्द समान रूप से देखा जा रहा है. इसकी मुख्य वजह हमारी दैनिक दिनचर्या ही है. आजकल लैपटॉप और मोबाइल का इस्तेमाल काफी अधिक हो रहा है. लोग इन सब का इस्तेमाल करने के दौरान सही ढंग से नहीं बैठते हैं. इसके चलते तमाम तरफ के दर्द उनको परेशान करने लगते हैं. ऐसे में इसके इलाज के लिए फिजियोथेरेपी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. इसके अलावा अगर सामान्य एक्सरसाइज भी रोजाना कर रहे हैं, तो इससे भी इन तमाम दर्द की समस्याओं से निदान मिल सकता है.
फिजियो की सलाह पर करें एक्सरसाइज: सामान्य रूप से लोग गर्दन, कमर और हाथ पैर की एक्सरसाइज कर सकते हैं, जिससे वो फिट रहेंगे. लेकिन अगर किसी तरह के दर्द की समस्या है तो उसके लिए फिजियोथेरेपिस्ट के सुझाव पर ही एक्सरसाइज करें, ताकि बीमारी को ठीक किया जा सके. साथ ही कहा कि आज के इस दौर में कंधे में दर्द की समस्या, घुटने में दर्द की समस्या समेत अन्य समस्याएं काफी अधिक देखी जा रही हैं. यह समस्या तभी होती हैं जब जिम में खुद से एक्सरसाइज या फिर अपने बॉडी वेट से अधिक वजन उठाते हैं. ऐसे में लोगों को चाहिए कि उसी जिम में एक्सरसाइज करने जाएं, जहां ट्रेनर मौजूद हो या फिर अपने फिजियोथेरेपिस्ट से एडवाइस लेकर एक्सरसाइज करें.
विभिन्न थेरेपी में अंतर: एसके त्यागी ने बताया कि पहले के समय और वर्तमान समय में फिजियोथैरेपी के तरीकों में काफी अधिक बदलाव आ गया है. वो खुद साल 1984 से बतौर फिजियोथेरेपिस्ट अपनी सेवाएं दे रहे हैं. तब से अब तक बहुत चीजों में बदलाव आ गया है. जिसके तहत इलेक्ट्रोथेरेपी में जमीन-आसमान का अंतर आ गया है. वर्तमान समय में लेजर, माइक्रोवेव, लॉन्ग वेव से थैरेपी करते हैं. लेकिन पहले के समय में मैनुअल तरीके से ही थेरेपी करते थे. अब इलाज की वो सारी चीजें बदल गई है. मौजूदा समय में इलेक्ट्रोथेरेपी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. हाईटेक मशीनों में सिर्फ ऑप्टिमम मेजर सेलेक्ट करना होगा और वो मशीन पूरा ट्रीटमेंट कर देगी.
क्या कहते हैं पूर्व चीफ फिजियोथेरेपिस्ट एसके त्यागी: फिजियोथेरेपी का साइड इफेक्ट तभी देखने को मिलता है, जब कोई अनट्रेंड फिजियोथेरेपिस्ट इलाज करता है. साथ ही एसके त्यागी ने कहा कि हीटिंग या फिर लेजर ट्रीटमेंट में एक लिमिट वैल्यू है कि कितनी इंटेंसिटी और कितनी देर तक देना है. इसके कैलकुलेशन के लिए एक्सपर्ट फिजियोथेरेपिस्ट का होना बहुत जरूरी है. लिहाजा, अगर लिमिट वैल्यू से अधिक इंटेंसिटी या फिर अधिक समय तक हीटिंग और लेजर ट्रीटमेंट दिया जाता है, तो उसका साइड इफेक्ट देखने को मिलता है. अगर लिमिट वैल्यू के आधार पर ट्रीटमेंट किया जाता है, तो उसका कोई भी साइड इफेक्ट नहीं है.
बॉडी पोस्चर का ध्यान रखना जरूरी: एसके त्यागी ने युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि वो शरीर को फिट रखने के लिए अपनी दिनचर्या में एक्सरसाइज को भी शामिल करें. अगर किसी भी तरह की दर्द या समस्या है तो एक्सपोर्ट फिजियोथेरेपिस्ट से ही सुझाव लें. मोबाइल और कंप्यूटर का इस्तेमाल लिमिटेड समय तक करें. साथ ही इस दौरान बॉडी पोस्चर को सही रखें, ताकि शारीरिक दिक्कतों से दूर रह सके.
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