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पितृपक्ष का समापन, पूर्वजों का श्राद्ध कर दी विदाई, कल से शुरू हो सकेंगे मांगलिक कार्यक्रम - Pitru Paksha 2024

Last Day of Pitru Paksha : बुधवार को पितृपक्ष का समापन हो गया. जिले के ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुंड और पवित्र पार्वती नदी पर लोगों ने आस्था पूर्वक अपने-अपने पूर्वजों का तर्पण कर विदाई दी है.

पितृपक्ष का समापन
पितृपक्ष का समापन (ETV Bharat Dholpur)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 2, 2024, 9:56 AM IST

धौलपुर : बुधवार को पितृपक्ष का समापन हो गया. ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुंड और पार्वती नदी पर लोगों ने आस्था पूर्वक पितरों का तर्पण कर और डाब का विसर्जन कर विदाई दी है. आज पूर्वजों का आखरी श्राद्ध किया जाएगा. गुरुवार से शारदीय नवरात्र की शुरुआत होने पर मांगलिक कार्यक्रम भी शुरू हो सकेंगे.

आचार्य राजेश शास्त्री ने बताया कि पूर्णिमा से पितृपक्ष की शुरुआत हुई थी. 16 दिन तक सनातन संस्कृति के लोगों ने अपने पूर्वज और पितरों का आस्था पूर्वक तर्पण कर श्राद्ध किया था. इस दरमियान सभी मांगलिक कार्यक्रम बंद रहे थे. बुधवार को पितृपक्ष का समापन हो गया है. जिले के ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुंड और पवित्र पार्वती नदी पर लोगों ने आस्था पूर्वक अपने-अपने पूर्वजों का तर्पण कर विदाई दी है. पूर्वजों का तर्पण करने के बाद श्राद्ध किया जाएगा. पितृपक्ष की आखिरी तिथि को जिन पूर्वजों की मरण की तिथि याद नहीं है, वह श्राद्ध पक्ष के आखिरी दिन श्राद्ध कर सकते हैं. आस्था पूर्वक ब्राह्मण भोजन कराकर दान अवश्य दें. इससे पूर्वजों को परलोक में शांति मिलती है.

पढ़ें. पितरों की मृत्यु तिथि याद नहीं तो आज करें उनके श्राद्ध कर्म, अकाल मृत्यु वालों को भी मिलती है मुक्ति - Pitru Paksha 2024

पितृपक्ष अर्थात कर्णागत की शुरुआत राजा कर्ण की ओर से की गई थी. शरीर छोड़ने के बाद राजा कर्ण को स्वर्ग में खाने के लिए सोना परोसा गया था. जब राजा कर्ण ने इसका विरोध किया तो स्वर्ग लोक में बताया कि आपने सिर्फ जीवन में सोने का ही दान किया है. तब राजा कर्ण को पुनः 16 दिन के लिए तर्पण करने के लिए भेजा गया था. पौराणिक मान्यता के मुताबिक तभी से पितृपक्ष की शुरुआत हुई है.

धौलपुर : बुधवार को पितृपक्ष का समापन हो गया. ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुंड और पार्वती नदी पर लोगों ने आस्था पूर्वक पितरों का तर्पण कर और डाब का विसर्जन कर विदाई दी है. आज पूर्वजों का आखरी श्राद्ध किया जाएगा. गुरुवार से शारदीय नवरात्र की शुरुआत होने पर मांगलिक कार्यक्रम भी शुरू हो सकेंगे.

आचार्य राजेश शास्त्री ने बताया कि पूर्णिमा से पितृपक्ष की शुरुआत हुई थी. 16 दिन तक सनातन संस्कृति के लोगों ने अपने पूर्वज और पितरों का आस्था पूर्वक तर्पण कर श्राद्ध किया था. इस दरमियान सभी मांगलिक कार्यक्रम बंद रहे थे. बुधवार को पितृपक्ष का समापन हो गया है. जिले के ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुंड और पवित्र पार्वती नदी पर लोगों ने आस्था पूर्वक अपने-अपने पूर्वजों का तर्पण कर विदाई दी है. पूर्वजों का तर्पण करने के बाद श्राद्ध किया जाएगा. पितृपक्ष की आखिरी तिथि को जिन पूर्वजों की मरण की तिथि याद नहीं है, वह श्राद्ध पक्ष के आखिरी दिन श्राद्ध कर सकते हैं. आस्था पूर्वक ब्राह्मण भोजन कराकर दान अवश्य दें. इससे पूर्वजों को परलोक में शांति मिलती है.

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पितृपक्ष अर्थात कर्णागत की शुरुआत राजा कर्ण की ओर से की गई थी. शरीर छोड़ने के बाद राजा कर्ण को स्वर्ग में खाने के लिए सोना परोसा गया था. जब राजा कर्ण ने इसका विरोध किया तो स्वर्ग लोक में बताया कि आपने सिर्फ जीवन में सोने का ही दान किया है. तब राजा कर्ण को पुनः 16 दिन के लिए तर्पण करने के लिए भेजा गया था. पौराणिक मान्यता के मुताबिक तभी से पितृपक्ष की शुरुआत हुई है.

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