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निजी क्षेत्र में 75 फीसदी आरक्षण लागू करना सरकार के लिए चुनौती, लाख कोशिशों के बावजूद नहीं हो रहा एक्ट का पालन! - Reservation in private sector

75 per cent reservation in private sector. झारखंड में निजी क्षेत्र की कंपनियों में 75 फीसदी स्थानीयता आधारित आरक्षण लागू कराना सरकार के लिए चुनौती बन गयी है. इसके पीछे क्या कारण है और क्या है इसके नियम, जानें ईटीवी भारत की इस खास रिपोर्ट से.

Know why implementing challenge for Jharkhand government 75 per cent reservation in private sector
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jun 27, 2024, 10:08 PM IST

रांचीः झारखंड में निजी क्षेत्र के कंपनियों और प्रतिष्ठानों में स्थानीय लोगों के लिए 40 हजार वेतन तक वेतन पाने वाले कर्मचारियों के लिए 75 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं. 2021 में तत्कालीन हेमंत सरकार ने इसे लाया था. झारखंड राज्य निजी क्षेत्र स्थानीय उम्मीदवार रोजगार विधेयक 2021 के नाम से बना यह अधिनियम 12 सितंबर 2022 से राज्य में लागू है.

निजी क्षेत्र में 75 फीसदी आरक्षण लागू करना सरकार के लिए चुनौती (ETV Bharat)

इस एक्ट के तहत वैसे सभी प्रतिष्ठान जो निजी क्षेत्र के हों और जहां 10 या 10 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं उनपर लागू होता है. ऐसे सभी प्रतिष्ठानों को झारखंड सरकार के झारनियोजन पोर्टल पर अपना निबंधन करवाना अनिवार्य है. इस प्रावधान के अनुसार अगर कोई रिक्ति निकाली जाती है तो 40,000 वेतन तक के पदों की नियुक्ति में 75% स्थानीय को नियुक्त करना है.

स्थानीय नियोजन की बाध्यता संबंधित नियम

निजी क्षेत्र में 75% स्थानीय नियोजन की बाध्यता संबंधित नियम की ये हकीकत है. इस कानूनी उलझन की वजह से कई बड़ी कंपनी अब तक रजिस्टर्ड नहीं हुई हैं. झारखंड में अब तक निबंधित कुल नियोक्ता- 7026 और रांची में अब तक निबंधित नियोक्ताओं की संख्या- 768 है. ऐसे कड़े नियम की वजह से निजी कंपनियां कानूनी झमेले से बच रही हैं. अब तक नियम का पालन कराने के लिए 40 हजार से अधिक निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठान को नोटिस भेजा गया है. जिला स्तर पर डीसी की अध्यक्षता में बनी कमेटी मॉनिटरिंग और कार्रवाई करती है. सरकारी आंकड़ों में कुल कर्मचारियों की संख्या- 2 लाख 29 हजार 569, राज्य में स्थानीय कर्मचारियों की संख्या- 45 हजार 592 है. वहीं राज्य में अन्य कर्मचारियों की संख्या 1 लाख 83 हजार 977 है.

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नियोजन के नियम (ETV Bharat)

निजी उद्योगपतियों का तर्क

निजी क्षेत्र में स्थानीय नियोजन में 75 फीसदी आरक्षण नियम को लेकर उद्योगपतियों के अपने तर्क है. इस नियम की वजह से कुशल मजदूर मिलने में कठिनाई हो रही है. नियम की वजह से लंबे समय से कार्यरत कर्मचारियों में छंटनी का डर समाने लगा है. जिससे ऐसे संस्थानों का कामकाज प्रभावित हो रहा है. स्थानीय कर्मचारी ज्यादा दिन तक श्रम कानून के मुताबिक काम नहीं करते हैं. जब तक झारखंड कुशल मजदूर तैयार करने में सक्षम नहीं होता तब तक 75% स्थानीय मजदूर रखने की बाध्यता शिथिल हो.

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निजी प्रतिष्ठानों का तर्क (ETV Bharat)

वास्तविकता से दूर होता कानून

राज्य में काफी उत्साह के साथ इसकी शुरुआत हुई मगर हकीकत यह है कि दो साल बीतने के बावजूद यह नियम वास्तविकता से दूर है. इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि कंपनी और प्रतिष्ठानों के द्वारा इस कानून को लेकर उदासीन रवैया. झारखंड सरकार के एम्प्लॉयमेंट ऑफिसर राजेश कुमार भी इसे मानते हैं. राजेश कुमार कहते हैं कि रांची में अब तक 738 कंपनियों ने रजिस्ट्रेशन कराया है जबकि इस कानून का पालन कराने के लिए एक हजार से अधिक प्रतिष्ठानों को नोटिस डीसी के माध्यम से भेजना पड़ा है.

इन सबके बीच कंपनी मालिक और प्रतिष्ठानों का इस कानून को लेकर अलग तर्क है. झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स के उपाध्यक्ष आदित्य मलहोत्रा कहते हैं कि इस कानून में कई ऐसे प्रावधान हैं जिसका पालन करना बेहद ही मुश्किल है. सबसे ज्यादा परेशानी स्कील्ड वर्कर की है जो हमें दूसरे राज्यों से लाने के लिए मजबूर कर देता है. अगर झारखंड में यह तैयार किया जाए तो कोई परेशानी नहीं होगी.

इन स्थानों पर लागू होता है यह कानून

यह कानून केंद्र और राज्य सरकार के उपक्रमों को छोड़कर दुकानों, प्रतिष्ठानों, खदानों, उपक्रमों, उद्योग, कंपनियों, सोसायटी, न्यास, फर्मों, भागीदारी फर्म में 10 या 10 से अधिक व्यक्तियों के नियोजन पर लागू है.

उल्लंघन पर 10 हजार से दो लाख रुपये तक का दंड

इस अधिनियम का उल्लंघन करने पर 10 हजार से लेकर दो लाख रुपये तक का दंड का प्रावधान है. अगर इस नियम के उल्लंघन का दोष सिद्ध होने के बाद भी जारी रहता है तो प्रत्येक दिन के लिए एक हजार रुपये तक यह दंड हो सकता है.

इसे भी पढ़ें- 75 Percent Reservation in Private Sector: 6 महीने के बाद भी नहीं हुई एक भी नियुक्ति, लागू करने में कहां फंसा है पेंच, जानिए उद्योग जगत की उलझनें

इसे भी पढ़ें- झारखंड में 7.74 लाख नौजवानों ने रोजगार के लिए कराया है रजिस्ट्रेशन, निजी कंपनियों में सिर्फ 6 हजार को मिली है नौकरी, 75% आरक्षण का हाल बेहाल

इसे भी पढ़ें- निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने की तैयारी, सीएम सोरेन विधानसभा में कर सकते हैं बड़ी घोषणा

रांचीः झारखंड में निजी क्षेत्र के कंपनियों और प्रतिष्ठानों में स्थानीय लोगों के लिए 40 हजार वेतन तक वेतन पाने वाले कर्मचारियों के लिए 75 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं. 2021 में तत्कालीन हेमंत सरकार ने इसे लाया था. झारखंड राज्य निजी क्षेत्र स्थानीय उम्मीदवार रोजगार विधेयक 2021 के नाम से बना यह अधिनियम 12 सितंबर 2022 से राज्य में लागू है.

निजी क्षेत्र में 75 फीसदी आरक्षण लागू करना सरकार के लिए चुनौती (ETV Bharat)

इस एक्ट के तहत वैसे सभी प्रतिष्ठान जो निजी क्षेत्र के हों और जहां 10 या 10 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं उनपर लागू होता है. ऐसे सभी प्रतिष्ठानों को झारखंड सरकार के झारनियोजन पोर्टल पर अपना निबंधन करवाना अनिवार्य है. इस प्रावधान के अनुसार अगर कोई रिक्ति निकाली जाती है तो 40,000 वेतन तक के पदों की नियुक्ति में 75% स्थानीय को नियुक्त करना है.

स्थानीय नियोजन की बाध्यता संबंधित नियम

निजी क्षेत्र में 75% स्थानीय नियोजन की बाध्यता संबंधित नियम की ये हकीकत है. इस कानूनी उलझन की वजह से कई बड़ी कंपनी अब तक रजिस्टर्ड नहीं हुई हैं. झारखंड में अब तक निबंधित कुल नियोक्ता- 7026 और रांची में अब तक निबंधित नियोक्ताओं की संख्या- 768 है. ऐसे कड़े नियम की वजह से निजी कंपनियां कानूनी झमेले से बच रही हैं. अब तक नियम का पालन कराने के लिए 40 हजार से अधिक निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठान को नोटिस भेजा गया है. जिला स्तर पर डीसी की अध्यक्षता में बनी कमेटी मॉनिटरिंग और कार्रवाई करती है. सरकारी आंकड़ों में कुल कर्मचारियों की संख्या- 2 लाख 29 हजार 569, राज्य में स्थानीय कर्मचारियों की संख्या- 45 हजार 592 है. वहीं राज्य में अन्य कर्मचारियों की संख्या 1 लाख 83 हजार 977 है.

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नियोजन के नियम (ETV Bharat)

निजी उद्योगपतियों का तर्क

निजी क्षेत्र में स्थानीय नियोजन में 75 फीसदी आरक्षण नियम को लेकर उद्योगपतियों के अपने तर्क है. इस नियम की वजह से कुशल मजदूर मिलने में कठिनाई हो रही है. नियम की वजह से लंबे समय से कार्यरत कर्मचारियों में छंटनी का डर समाने लगा है. जिससे ऐसे संस्थानों का कामकाज प्रभावित हो रहा है. स्थानीय कर्मचारी ज्यादा दिन तक श्रम कानून के मुताबिक काम नहीं करते हैं. जब तक झारखंड कुशल मजदूर तैयार करने में सक्षम नहीं होता तब तक 75% स्थानीय मजदूर रखने की बाध्यता शिथिल हो.

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निजी प्रतिष्ठानों का तर्क (ETV Bharat)

वास्तविकता से दूर होता कानून

राज्य में काफी उत्साह के साथ इसकी शुरुआत हुई मगर हकीकत यह है कि दो साल बीतने के बावजूद यह नियम वास्तविकता से दूर है. इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि कंपनी और प्रतिष्ठानों के द्वारा इस कानून को लेकर उदासीन रवैया. झारखंड सरकार के एम्प्लॉयमेंट ऑफिसर राजेश कुमार भी इसे मानते हैं. राजेश कुमार कहते हैं कि रांची में अब तक 738 कंपनियों ने रजिस्ट्रेशन कराया है जबकि इस कानून का पालन कराने के लिए एक हजार से अधिक प्रतिष्ठानों को नोटिस डीसी के माध्यम से भेजना पड़ा है.

इन सबके बीच कंपनी मालिक और प्रतिष्ठानों का इस कानून को लेकर अलग तर्क है. झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स के उपाध्यक्ष आदित्य मलहोत्रा कहते हैं कि इस कानून में कई ऐसे प्रावधान हैं जिसका पालन करना बेहद ही मुश्किल है. सबसे ज्यादा परेशानी स्कील्ड वर्कर की है जो हमें दूसरे राज्यों से लाने के लिए मजबूर कर देता है. अगर झारखंड में यह तैयार किया जाए तो कोई परेशानी नहीं होगी.

इन स्थानों पर लागू होता है यह कानून

यह कानून केंद्र और राज्य सरकार के उपक्रमों को छोड़कर दुकानों, प्रतिष्ठानों, खदानों, उपक्रमों, उद्योग, कंपनियों, सोसायटी, न्यास, फर्मों, भागीदारी फर्म में 10 या 10 से अधिक व्यक्तियों के नियोजन पर लागू है.

उल्लंघन पर 10 हजार से दो लाख रुपये तक का दंड

इस अधिनियम का उल्लंघन करने पर 10 हजार से लेकर दो लाख रुपये तक का दंड का प्रावधान है. अगर इस नियम के उल्लंघन का दोष सिद्ध होने के बाद भी जारी रहता है तो प्रत्येक दिन के लिए एक हजार रुपये तक यह दंड हो सकता है.

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