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पोस्ता की खेती नष्ट करने के दौरान पुलिस के लिए स्पेशल एसओपी! फूंक-फूंक के जवान रख रहे कदम - SPECIAL SOP FOR POLICE

पलामू पुलिस पोस्ता की खेती नष्ट करने के लिए खास अभियान चला रही है. इस दौरान एसओपी का पालन किया जा रहा है.

Poppy Cultivation In Palamu
पलामू में पोस्ता की खेती नष्ट करते जवान. (फोटो-ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Dec 23, 2024, 2:22 PM IST

पलामूः पूरे झारखंड में पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है. यह अभियान दिसंबर और जनवरी महीने में भी जारी रहेगा. 2023 में चतरा में पोस्ता की खेती को नष्ट कर वापस लौट रही टीम पर नक्सलियों ने हमला किया था. इस हमले में पुलिस के दो जवान शहीद हुए थे.

अभियान के दौरान एसओपी का पालन

आपको बता दें कि पलामू और लातेहार में इन दिनों पोस्ता की खेती के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान के दौरान कोई अनहोनी न हो इसे लेकर स्पेशल ऑपरेशनल प्लान (एसओपी) का पालन किया जा रहा है. इस एसओपी में कई बातों का ध्यान रखा जा रहा है.

अति नक्सल प्रभावित इलाकों में पोस्ता की खेती को नष्ट करने के लिए बनाई गई टीम में शामिल जवानों को आधुनिक हथियार दिए गए हैं. साथ ही सीनियर अधिकारी अभियान की मॉनिटरिंग करते हैं. जिस रास्ते से पुलिस पोस्ता की खेती नष्ट करने के लिए जा रही है दोबारा उस रास्ते से वापस नहीं लौटती है. पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान में शामिल टीम की मॉनिटरिंग मुख्यालय स्तर पर भी की जा रही है. हाल में ही मुख्य सचिव और डीजीपी ने पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान की समीक्षा की थी.

"पलामू और लातेहार में पुलिस पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान चला रही है. अभियान के दौरान कई स्तर पर सावधानी बरती जाती है. पुलिस ग्रामीणों से लगातार अपील कर रही है कि वह पोस्ता की खेती नहीं करें." - वाईएस रमेश, डीआईजी, पलामू

खेतों तक बाइक से और पैदल पहुंच रहे जवान

पोस्ता की खेती नक्सल प्रभावित इलाकों में भी की गई है. खेती वाली जगहों पर जाने के लिए जवान बाइक का इस्तेमाल कर रहे हैं. कई इलाकों में 10 से 15 किलोमीटर तक जवान पैदल सफर कर खेतों तक पहुंच रहे हैं. पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान अहले सुबह शुरू होती है और शाम के 4:00 बजे तक अभियान खत्म होता है. खेती वाले स्थान तक ट्रैक्टर को ले जाने के लिए पूरी सुरक्षा दी जाती है और जवान पैदल गश्त करते हैं.

पुलिस चला रही जागरुकता अभियान

पलामू के मनातू थाना क्षेत्र के मिटार, नागद, बिसरॉव जैसे गांव में ग्रामीणों ने खुद से ही पोस्ता की खेती को नष्ट किया है. पुलिस कुछ दिनों पहले इन इलाकों में गई थी और ग्रामीणों को पोस्ता के खिलाफ जागरूक किया था. पुलिस के अनुसार ग्रामीणों को पोस्ता से जुड़े मुकदमों की समझ आने लगी है. इस कारण वे खुद से पोस्ता की खेती नष्ट कर रहे हैं. पलामू पुलिस लगातार ग्रामीणों के साथ बैठक कर रही है और पोस्टर-बैनर के माध्यम से जागरूक कर रही है.

"पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है. पुलिस को जानकारी मिली है की मनातू के कई इलाकों में ग्रामीणों ने खुद से ही फसल को नष्ट किया है. यह अच्छी शुरुआत है. पुलिस ग्रामीणों से अपील कर रही है कि वह पोस्ता की खेती से दूर रहें." - रीष्मा रमेशन , एसपी, पलामू

सीमा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर होती है पोस्ता की खेती

झारखंड-बिहार सीमा और पलामू-चतरा और पलामू-लातेहार सीमा पर बड़े पैमाने पर पोस्ता की खेती होती है. 2007-2008 में इन इलाकों में पोस्ता की खेती की शुरुआत हुई थी. उस दौरान प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी और टीएसपीसी का वर्चस्व वाला दौर था. दोनों संगठन अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए खेती को करवाते थे.

नक्सली संगठनों की स्थिति कमजोर होने के बाद तस्कर पोस्ता की खेती में सक्रिय हो गए. इंटरस्टेट तस्कर किसानों को लालच देकर पोस्ता की खेती करवाते हैं. इसके लिए तस्कर भाड़े पर जमीन लेते हैं और बटाईदारी पोस्ता की खेती कर रहे हैं. कई इलाकों में वन भूमि का इस्तेमाल हो रहा है, ताकि स्थानीय ग्रामीणों पर मुकदमा नहीं हो सके.

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पलामूः पूरे झारखंड में पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है. यह अभियान दिसंबर और जनवरी महीने में भी जारी रहेगा. 2023 में चतरा में पोस्ता की खेती को नष्ट कर वापस लौट रही टीम पर नक्सलियों ने हमला किया था. इस हमले में पुलिस के दो जवान शहीद हुए थे.

अभियान के दौरान एसओपी का पालन

आपको बता दें कि पलामू और लातेहार में इन दिनों पोस्ता की खेती के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान के दौरान कोई अनहोनी न हो इसे लेकर स्पेशल ऑपरेशनल प्लान (एसओपी) का पालन किया जा रहा है. इस एसओपी में कई बातों का ध्यान रखा जा रहा है.

अति नक्सल प्रभावित इलाकों में पोस्ता की खेती को नष्ट करने के लिए बनाई गई टीम में शामिल जवानों को आधुनिक हथियार दिए गए हैं. साथ ही सीनियर अधिकारी अभियान की मॉनिटरिंग करते हैं. जिस रास्ते से पुलिस पोस्ता की खेती नष्ट करने के लिए जा रही है दोबारा उस रास्ते से वापस नहीं लौटती है. पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान में शामिल टीम की मॉनिटरिंग मुख्यालय स्तर पर भी की जा रही है. हाल में ही मुख्य सचिव और डीजीपी ने पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान की समीक्षा की थी.

"पलामू और लातेहार में पुलिस पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान चला रही है. अभियान के दौरान कई स्तर पर सावधानी बरती जाती है. पुलिस ग्रामीणों से लगातार अपील कर रही है कि वह पोस्ता की खेती नहीं करें." - वाईएस रमेश, डीआईजी, पलामू

खेतों तक बाइक से और पैदल पहुंच रहे जवान

पोस्ता की खेती नक्सल प्रभावित इलाकों में भी की गई है. खेती वाली जगहों पर जाने के लिए जवान बाइक का इस्तेमाल कर रहे हैं. कई इलाकों में 10 से 15 किलोमीटर तक जवान पैदल सफर कर खेतों तक पहुंच रहे हैं. पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान अहले सुबह शुरू होती है और शाम के 4:00 बजे तक अभियान खत्म होता है. खेती वाले स्थान तक ट्रैक्टर को ले जाने के लिए पूरी सुरक्षा दी जाती है और जवान पैदल गश्त करते हैं.

पुलिस चला रही जागरुकता अभियान

पलामू के मनातू थाना क्षेत्र के मिटार, नागद, बिसरॉव जैसे गांव में ग्रामीणों ने खुद से ही पोस्ता की खेती को नष्ट किया है. पुलिस कुछ दिनों पहले इन इलाकों में गई थी और ग्रामीणों को पोस्ता के खिलाफ जागरूक किया था. पुलिस के अनुसार ग्रामीणों को पोस्ता से जुड़े मुकदमों की समझ आने लगी है. इस कारण वे खुद से पोस्ता की खेती नष्ट कर रहे हैं. पलामू पुलिस लगातार ग्रामीणों के साथ बैठक कर रही है और पोस्टर-बैनर के माध्यम से जागरूक कर रही है.

"पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है. पुलिस को जानकारी मिली है की मनातू के कई इलाकों में ग्रामीणों ने खुद से ही फसल को नष्ट किया है. यह अच्छी शुरुआत है. पुलिस ग्रामीणों से अपील कर रही है कि वह पोस्ता की खेती से दूर रहें." - रीष्मा रमेशन , एसपी, पलामू

सीमा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर होती है पोस्ता की खेती

झारखंड-बिहार सीमा और पलामू-चतरा और पलामू-लातेहार सीमा पर बड़े पैमाने पर पोस्ता की खेती होती है. 2007-2008 में इन इलाकों में पोस्ता की खेती की शुरुआत हुई थी. उस दौरान प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी और टीएसपीसी का वर्चस्व वाला दौर था. दोनों संगठन अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए खेती को करवाते थे.

नक्सली संगठनों की स्थिति कमजोर होने के बाद तस्कर पोस्ता की खेती में सक्रिय हो गए. इंटरस्टेट तस्कर किसानों को लालच देकर पोस्ता की खेती करवाते हैं. इसके लिए तस्कर भाड़े पर जमीन लेते हैं और बटाईदारी पोस्ता की खेती कर रहे हैं. कई इलाकों में वन भूमि का इस्तेमाल हो रहा है, ताकि स्थानीय ग्रामीणों पर मुकदमा नहीं हो सके.

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