जमशेदपुरः नेताजी सुभाष चंद्र बोस फ्रीडम फाइटर के साथ साथ एक कुशल मजदूर नेता भी रहे हैं. जमशेदपुर में स्थापित टाटा स्टील कंपनी के तत्कालीन लेबर यूनियन के तीसरे अध्यक्ष रहे हैं. उनके कार्यकाल में लिया गया फैसला कंपनी और मजदूरों के लिए मील का पत्थर बन गया, जिसे आज भी मजदूर और यूनियन याद कर उन्हें सलाम करते हैं.
सौ साल पुराने जमशेदपुर शहर से देश के कई शूरवीर क्रांतिकारी शख्सियत का संबंध रहा है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जमशेदपुर में स्थापित टाटा स्टील कंपनी और मजदूरों के लिए विशेष योगदान रहा है. 23 जनवरी 1897 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म हुआ था. वो देशबंधु चित्तरंजन दास को अपना गुरु मानते थे. अपने गुरु के कहने पर वे लाहौर ट्रेड यूनियन कांग्रेस से जुड़े और 1923 में उन्हें भारतीय युवा कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया. उनके गुरु ने उन्हें समाचार पत्र फॉरवर्ड का संपादक नियुक्त किया था, लेकिन नेताजी का मजदूर वर्ग के प्रति काफी लगाव था, जिसे देखते हुए महात्मा गांधी ने उन्हें जमशेदपुर स्थित टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी में मजदूरों की समस्या सुलझाने के लिए भेजा.
आपको बता दें कि उस दौरान टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी जिसका नाम वर्तमान मे टाटा स्टील है उसमें अंग्रेज अधिकारी हुआ करते थे और हड़ताल का दौर जारी था. तीन महीने तक चलने वाली हड़ताल के कारण को समझने के बाद नेताजी ने बिष्टपुर स्थित जी टाउन मैदान में सभा की. जिसमें 10 हजार हड़ताली मजदूर शामिल हुए.
उन्होंने मजदूरों को संबोधित करते हुए कहा कि देश की आजादी के साथ अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करने की जरुरत है. जिसके लिए हमें अनुशासन के साथ संगठित होने की जरुरत है. मजदूर उनसे प्रभावित हुए और 20 अगस्त 1928 को उन्हें जमशेदपुर लेबर सेल एसोसिएसान का तीसरा अध्यक्ष चुना गया. जिसके बाद कंपनी प्रबंधन के साथ कई बैठक हुईं और 12 दिसंबर 1928 को तीन माह से चलने वाला हड़ताल समाप्त हुआ. नेताजी की पहल के कारण उसके बाद आज तक कंपनी में कोई हड़ताल नहीं हुआ.
कंपनी में प्रमुख पदों पर भारतीयों को नियुक्त करने के लिए नेताजी ने कंपनी प्रबंधन के साथ संघर्ष किया. ट्रेड यूनियन के नेता के रूप मे उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उन्होंने 12 नवंबर 1928 को टाटा स्टील के तत्कालीन अध्यक्ष एन बी सकलतवाला को पत्र के माध्यम से कहा कि कंपनी में भारत के वृष्ट अधिकारियों की कमी है जो बड़ी समस्या है. उन्होंने लिखा था कि कंपनी के भारतीयकरण यानी स्वदेशी की अपनी नीति के साथ काम करते हैं तो कंपनी के भारतीय कर्मचारी और भारतीय मजदूरों को अपनाने मे सक्षम होंगे. नेताजी के पत्र का गहरा असर दिखा और कंपनी मे प्रमुख पदों पर अधिक से अधिक भारतियों की नियुक्ति की गई.
नेताजी की पहल जो कंपनी और कर्मचारियों के लिए मील का पत्थर साबित हुई, उनमें महिला कर्मचारियों के लिए मातृत्व लाभ, सभी वर्ग के श्रमिकों के लिए ग्रेच्यूटी और पेंशन सेवा की शुरुआत. बोनस की शुरुआत शामिल है.
आपको बता दें कि भारतीय श्रमिकों के लिए लाभ साझाकरण बोनस वर्ष 1965 में बोनस भुगतान अधिनियम 1965 की शुरुआत के साथ आजाद भारत में वैधानिक हो गया जो आज भी लागू है. 1928 से लगभग आठ वर्ष के अध्यक्ष कार्यकाल में नेताजी ने न्यूनतम मजदूरी के लिए तत्कालीन रॉयल श्रम आयोग की सिफारिश का विरोध किया था. महिला और पुरुष दोनों के लिए मजदूरी की समानता की वकालत करने वाले वो पहले नेता थे.
टाटा वर्कर्स यूनियन के महासचिव सतीश सिंह ने बताया कि टाटा स्टील और टाटा वर्कस यूनियन नेताजी सुभाष चंद्र बोस को कभी नहीं भूल सकता है. उनके अध्यक्ष कार्यकाल में लिए गए फैसले मील के पत्थर साबित हुए हैं. नेताजी से जुड़ी यादें आज भी यूनियन के कार्यालय में संजो कर रखा गया है. नेताजी द्वारा लिखे गए पत्र आज भी हमें प्रेरणा देते हैं, जिसे सुरक्षित रखा गया है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस की देन है कि आज तक टाटा स्टील में हड़ताल नहीं हुआ. प्रबंधन, कर्मचारी और मजदूरों मे तालमेल बना हुआ है. हमें गर्व है कि इस यूनियन के अध्यक्ष नेताजी सुभाष चंद्र बोस रहे हैं. उनकी जयंती पर यूनियन उन्हें शत शत नमन कर सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करती है.
बहरहाल ग्रीन सिटी, क्लीन सिटी, स्टील सिटी के नाम से पहचान बनाने वाला औद्योगिक शहर जमशेदपुर का अपना इतिहास है जिसके पन्नों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की यादें अंकित हैं जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकता है.