अजमेर : सावन का महीना शुरू हो चुका है. शिव भक्तों की भीड़ मंदिरों में उमड़ रही है. शिव भक्त अपने आराध्य को रिझाने का प्रयास करते हैं. माना जाता है कि सावन माह में महादेव की पूजा-अर्चना, जाप और अभिषेक करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. यही वजह है कि शिवालयों में सावन पर रौनक रहती है. वैसे तो शिव के हर प्राचीन शिवालय का अपना अलग इतिहास और पौराणिक महत्व है, लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं अजमेर के चार विशेष शिवालयों के बारे में. अजमेर शहर में मराठाकालीन चार शिव मंदिर हैं, जिन्हें अजमेर के चार ज्योर्तिलिंग के नाम से भी जाना जाता है. खास बात यह है कि इन शिवालयों में मौजूद शिवलिंग मानव जीवन के चार अवस्थाओं को प्रदर्शित करते हैं. इन चारों प्राचीन शिवालयों में लोगों की गहरी आस्था है और सावन के साथ ही अन्य दिनों में भी भक्तों की भीड़ उमड़ती है.
1800 शताब्दी में अजमेर में मराठाओं का राज था. मराठाओं के शासन में अजमेर और पुष्कर में कई मंदिरों का जीर्णोद्धार हुआ, तो कई शिवालय भी बनाए गए. अजमेर में मराठओं ने चार शिवलिंग स्थापित किए थे. सदियों बाद यह शिवलिंग लोगों की गहरी आस्था का केंद्र बन गए है. इन शिवलिंग का मानव जीवन से भी गहरा नाता है. दरअसल, हिन्दू धर्म शास्त्रों के मुताबिक मानव जीवन को चार आश्रम में विभक्त किया गया है. इसमें बाल आश्रम, युवा आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और सन्यास आश्रम शामिल हैं. इसी प्रकार मराठाओं ने भी चारों शिवलिंग को चार आश्रम को प्रदर्शित करते हुए स्थापित किया है. अजमेर में इन चारों शिवलिंग से स्थानीय लोगों की आस्था पीढ़ी दर पीढ़ी जुड़ी हुई है. इन शिवालयों में वर्षभर पूजा-अर्चना का क्रम जारी रहता है. सावन में इन चारों शिवालयों में पूजा-अर्चना, अभिषेक और सहस्त्र धारा करवाने को लेकर भक्तों में होड़ लगी रहती है. अजमेर में मराठाकालीन शिवालयों में शांतेश्वर महादेव, झरनेश्वर महादेव, राजराजेश्वर महादेव और अर्धचंद्रेश्वर महादेव शामिल हैं.
शांतेश्वर महादेव : अजमेर शहर का दिल कहे जाने वाले मदार गेट पर स्थित भगवान शांति ईश्वर महादेव का मंदिर है. मंदिर में मराठाकालीन शिवलिंग स्थापित है. अलसुबह के साथ ही लोग मंदिर में पूजा-अर्चना करने के लिए पहुंच जाते हैं. सावन में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. मंदिर में पुजारी पंडित नरेश शुक्ला 9वीं पीढ़ी हैं. इनसे पहले इनके पूर्वज मंदिर में पूजा किया करते थे. पंडित शुक्ला बताते हैं कि 18वीं शताब्दी में अजमेर में मराठाओं का शासन रहा था. इस दौरान मराठाओं ने अजमेर में चार शिवलिंग स्थापित किए थे. इनमें से एक शांतेश्वर महादेव का मंदिर भी शामिल है. उन्होंने बताया कि भगवान शिव यहां बाल रूप में विराजमान हैं. उन्होंने बताया कि सावन के महीने में भक्तों की भीड़ मंदिर में लगी रहती है. भक्त भगवान शांतेश्वर शिवलिंग पर जल, दूध, पंचामृत, गंगाजल, इत्र आदि अर्पित करते हैं. इसके अलावा कई भक्त नित्य अभिषेक करते हैं. वहीं, कई भक्त रुद्र पाठ भी करवाते हैं. पंडित नरेश शुक्ल बताते हैं कि मंदिर के भीतर आते ही लोगों को मानसिक शांति मिलती है. यहां आने वाले भक्तों की परेशानियां खत्म हो जाती हैं.
झरनेश्वर महादेव : अजमेर में विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के पीछे इंद्र कोट क्षेत्र की पहाड़ी पर भगवान झरनेश्वर महादेव का मंदिर है. करीब 100 सीढ़ियां चढ़ने के बाद भगवान झरनेश्वर महादेव के दिव्य दर्शन होते हैं. यहां विराजमान शिवलिंग युवा अवस्था को प्रदर्शित करता है. यहां शिवलिंग के दर्शन करते ही सीढ़ियां चढ़ने से हुई थकान छूमंतर हो जाती है और मन प्रफुल्लित हो जाता है. झरनेश्वर महादेव में लोगों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है. मराठाकालीन झरनेश्वर महादेव के मंदिर को लोग चमत्कारी मानते हैं. यहां पूजा-अर्चना करने पर सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं. शिवरात्रि पर यहां भव्य मेले का आयोजन होता है.
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राजराजेश्वर महादेव : अजमेर में कोतवाली थाने के समीप भगवान राजराजेश्वर महादेव का मराठाकालीन मंदिर है. मंदिर परिसर में एक हजार वर्ष से भी अधिक पुराना वट वृक्ष है. राज राजेश्वर मंदिर में लोगों की गहरी आस्था है. मंदिर के पुजारी पंडित बाबू लाल दाधीच बताते हैं कि मराठाओं के स्थापित चार शिवलिंग मानवजीवन के चार आश्रम को प्रदर्शित करते हैं. इनमें शांतेश्वर महादेव के शिवलिंग का बाल स्वरूप है. झरनेश्वर महादेव शिवलिंग का स्वरूप युवावस्था का है. इसी तरह राजराजेश्वर शिवलिंग का स्वरूप प्रौढ़ अवस्था का है. वहीं, अर्द्ध चन्द्रेश्वर महादेव शिवलिंग का स्वरूप वृद्धावस्था को प्रदर्शित करता है. पंडित दाधीच ने बताया कि राजराजेश्वर महादेव शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने वाले भक्त को प्रसिद्धि जरूर मिलती है. उसका राजयोग प्रबल होता है. कोर्ट में चल रहे मुकदमों में जीत मिलती है. उन्होंने बताया कि मंदिर परिसर में स्थित वट वृक्ष की छांव में बैठकर ॐ नमः शिवाय का जाप करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
अर्धचन्द्रेश्वर महादेव : अजमेर के प्रमुख बाजार नया बाजार में स्थित शिवबाग में भगवान अर्धचंद्रेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर स्थित है. मराठाकाल से ही मंदिर में नित्य पूजा-अर्चना होती आ रही है. इस मंदिर से 100 मीटर की दूरी पर एक कुआं है. इस कुएं का पानी ही शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है. भक्तों के लिए मंदिर के गर्भ गृह के बाहर एक और शिवलिंग स्थापित है, जहां मंदिर में आने वाले भक्त पूजा-अर्चना करते हैं. सावन माह में यहां अनेकों सहस्त्रधारा के आयोजन होते हैं. खास बात यह है कि सहस्त्र धारा में हजारों लीटर पानी शिवलिंग पर रुद्री पाठ के साथ अर्पित किया जाता है. जलधारा से निकलने वाला यह पानी मंदिर में एक छोटी कुंडी में जाता है. इस कुंडी से पानी कहीं और जाने का कोई मार्ग नहीं है, बावजूद इसके कुंडी से पानी कभी बाहर नहीं आया. लोग इसे चमत्कार मानते हैं.
अर्द्धचंद्रेश्वर महादेव मंदिर और आसपास की 5 बीघा भूमि मराठाओं ने ताम्र पत्र के जरिए महानंद शुक्ला को सौंपी थी. महानंद शुक्ला ज्योतिषाचार्य थे. बताया जाता है कि महानंद शुक्ला का परिवार इंदौर से था. अहिल्याबाई होलकर ने महानंद शुक्ला को अपने पुत्र की जन्म कुंडली दिखाई थी. महानंद शुक्ला ने पुत्र की अल्पायु होना उन्हें बताया था. इस बात से नाराज अहिल्याबाई होल्कर ने महानंद शुक्ला को देश निकाला का आदेश दिया था. रोजगार की तलाश में महानंद शुक्ला अजमेर आ गए. जब अजमेर में मराठाओं का राज हुआ, तब महानंद शुक्ला के अजमेर में होने की सूचना अहिल्याबाई होल्कर को लगी. अहिल्याबाई होल्कर ने महानंद शुक्ला को निहाल भट्ट की उपाधि दी और सूबेदार गोविंदराव कृष्णा को अर्द्ध चंद्रेश्वर महादेव मंदिर समेत आसपास की 5 बीघा जमीन दे दी. उसी समय से पीढ़ी दर पीढ़ी महानंद शुक्ला का परिवार मंदिर की देखरेख करता आया है.
महानंद शुक्ला की पीढ़ियों में शामिल अरविंद शुक्ला बताते हैं कि अजमेर में मराठाओं के शासन में अजमेर में चार शिवलिंग स्थापित किए गए थे. चारों शिवलिंग की अपनी अपनी विशेषताएं हैं. उन्होंने बताया कि अर्द्धचंद्रेश्वर शिवलिंग पंचमुखी है. इसके हर मुख की भाव भंगिमाएं अलग-अलग हैं. किसी को कोई चेहरा मुस्कुराता दिखेगा, तो कोई चेहरा उदास दिखेगा, यानी श्रद्धालुओं के भाव के अनुरूप ही शिव के इन चेहरों में दर्शन होते हैं.