अरवल : 18 मार्च 1999, बिहार के जहानाबाद का सेनारी गांव, सूरज ढल चुका था, लालिमा खत्म हो चुकी थी. गांव के लोग अपने घरों में परिवार के साथ बैठे हुए थे. घड़ी के कांटे में शाम के लगभग 7:30 बजे थे, तभी हलचल हुई. गांव के लोग आपस में बात करने लगे, हमलोग चारो तरफ से घिर गए हैं. फिर क्या था, पूरा शांत माहौल अचानक अफरा-तफरी में तब्दील हो गया.
सेनारी में 40 लोगों को काट डाला : कहा जाता है कि सेनरी गांव को प्रतिबंधित संगठन MCC के 500 से ज्यादा सदस्यों ने घेर लिया था. इसके बाद दरिंदगी का खेल शुरू हुआ. चुन-चुनकर गांव के 40 मर्दों को गांव के बाहर इकट्ठा किया गया. इनको तीन ग्रुपों में बांटा गया. इसके बाद बारी-बारी से इनका गला काटा गया और पेट फाड़ा गया. 40 लोगों में से 34 लोगों की मौत घटनास्थल पर ही हो गई.
पटना HC के रजिस्टार की हार्ट अटैक से हुई मौत : यही नहीं कुछ लोगों को जिंदा तड़पते हुए छोड़ दिया गया था. घटना इतनी भयावह थी कि मारे गए लोग आंखों के सामने अपनी मौत की प्रतीक्षा कर रहे थे और दूसरे की मौत सामने देख रहे थे. रात 11 बजे तक कत्लेआम का दौर चला. अगले दिन पटना हाई कोर्ट के रजिस्टार रहे पदमनारायण सिंह अपने गांव पहुंचे थे. अपने परिवार के आठ लोगों की लाश देखकर उनको हार्ट अटैक आया और उनकी वहीं पर मौत हो गई.
इन लोगों की गई थी जान : सेनारी हत्याकांड में उस गांव के 34 लोगों की जान गई थी. मधुकर कुमार, रोहित शर्मा, भूखन शर्मा, नीरज कुमार, राजू शर्मा, जितेंद्र शर्मा, वीरेंद्र शर्मा, सच्चिदानंद शर्मा, ललन शर्मा, अवधेश शर्मा, कुंदन शर्मा, धीरेंद्र शर्मा, अमरेश कुमार, रामदयाल शर्मा, सत्येंद्र कुमार, उपेंद्र कुमार, विमलेश शर्मा, परीक्षित नारायण शर्मा, रामनरेश शर्मा, चंद्रभूषण शर्मा, अवध किशोर शर्मा, संजीव कुमार, श्याम नारायण सिंह, नंदलाल शर्मा, रामस्लोक शर्मा, ज्वाला शर्मा, पिंटू शर्मा, रामप्रवेश शर्मा, रंजन शर्मा, जितेंद्र शर्मा और वीरेंद्र शर्मा की मौत हुई थी.
क्या था घटना का कारण : सेनरी गांव में हुई नृसंश हत्याकांड के पीछे जमीन विवाद बताया गया. भूमिहार समुदाय के लोगों का दावा था कि जमीन उन लोगों ने खरीदी है. इन्हीं जमीनों को लेकर वहां दलित एवं भूमिहारों के बीच में विवाद चल रहा था. इसी बीच नरसंहार को अंजाम दिया गया था.
प्रतिशोध में वारदात को दिया गया था अंजाम : दरअसल, बिहार के जिलों में रणवीर सेना और माओवादी कम्युनिस्ट के सदस्यों के बीच खूनी संघर्ष हो चुका था. 1 दिसंबर 1997 को जहानाबाद के लक्ष्मणपुर के शंकर विगहा गांव में 58 लोगों की हत्या कर दी गई थी. इसके अलावे 10 फरवरी 1998 को नारायणपुर गांव में 12 लोगों की हत्या कर दी गई थी. घटना के पीछे रणवीर सेवा का हाथ बताया जा रहा था. इन्हीं घटनाओं के प्रतिशोध में प्रतिबंधित माओवादी के द्वारा सेनारी गांव में घटना को अंजाम दिया गया.
निचली अदालत ने हत्याकांड के 11 को सुनाई फांसी की सजा : हत्याकांड में अपने पति और जवान बेटे को खोने वाली चिंता देवी के बयान पर मामला दर्ज करवाया गया था. 50 से अधिक लोगों को इस घटना का अभियुक्त बनाया गया. 15 नवंबर 2016 को निचली अदालत ने हत्याकांड के 11 आरोपियों को फांसी की सजा और अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
सबूत के अभाव में दोषी बरी : आरोपियों की तसफ से सजा के खिलाफ पटना हाई कोर्ट में अपील दायर की गयी. साक्ष्य के अभाव में पटना हाई कोर्ट ने 22 मई 2021 को निचली अदालत के द्वारा दोषी करार दिए गए 15 आरोपियों को बरी कर दिया. हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकारी पक्ष इस कांड के आरोपियों पर लगे आरोप को साबित करने में असफल है. हाई कोर्ट ने कहा कि नरसंहार कांड के आरोपियों की पहचान की प्रक्रिया सही नहीं है. इसके अलावे पुलिस आरोपियों के खिलाफ ठोस सबूत देने में असफल रहा है.
मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट : पटना हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जाने का फैसला लिया. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की अपील को स्वीकार कर लिया. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को सभी बरी किये आरोपी को नोटिस देने को कहा. इधर इस घटना पर सियासत लगातार होती रही है. अब देखना है कि पीड़ित परिवार को कब इंसाफ मिलता है?
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