लखनऊ: दिवाली के अगले दिन नवाबों के शहर लखनऊ का आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भर उठता है. छतों पर हर उम्र के लोग जमा होते हैं, और यह नजारा लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब की अनोखी मिसाल पेश करता है. इसे यहां "जमघट" कहा जाता है, जो वर्षों पुरानी नवाबी परंपरा की पहचान बन चुकी है. इस दिन पतंगों की लड़ाई में जीत और कटने की आवाजें पूरे शहर को उत्सव के माहौल में डुबो देती हैं.
अवध के नवाबों ने पतंगबाजी को अपनी शानो-शौकत का हिस्सा बनाया था. नवाब मसूद अब्दुल्ला के अनुसार, पुराने वक्त में नवाब पतंग उड़ाने के शौक में सोने-चांदी के तार तक बांध देते थे. जब पतंग कटकर गिरती थी, तो लोग उसे लूटने के लिए दौड़ पड़ते थे. जो गरीबों की मदद का एक तरीका भी था. जमघट पर सभी धर्मों के लोग एक साथ आकर पतंगबाजी करते थे और गोमती नदी के किनारे तक इस परंपरा का आयोजन होता था. आज यह परंपरा चौक, चौपटिया और शहर के अन्य पुराने इलाकों में जिंदा है.
डीप्टी सीएम बृजेश पाठक ने उड़ाई पतंग: इस बार के जमघट में खास तरह की पतंगों की धूम रही. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीरों वाली पतंगों के साथ पर्यावरण संरक्षण जैसे संदेश भी इन पतंगों पर दिखे. लखनऊ के चौक स्थित लोहिया पार्क में आयोजित पतंगबाजी प्रतियोगिता में उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने शिरकत की. इस परंपरा की जमकर तारीफ की. उन्होंने भी पतंग उड़ाई और कहा, कि यह केवल मनोरंजन नहीं बल्कि हाथ और आंखों का अच्छा व्यायाम है.उप मुख्यमंत्री ने पतंग उड़ा कर दो पतंग भी काटी.
उप मुख्यमंत्री ने कहा, पतंगबाजी का शौक बेहद दिलचस्प है. इसके जरिए हाथ और आंख के व्यायाम का एक बेहतरीन माध्यम है.पतंगों की बात हो और बरेली के मांझे का जिक्र न हो, ऐसा हो नहीं सकता. इसे इसकी धार के लिए खास पसंद किया जाता है. हालांकि, चीनी मांझे पर अब पाबंदी है. क्योंकि यह पक्षियों और इंसानों के लिए खतरनाक साबित हुआ है. व्यापार मंडल ने दुकानदारों से चीनी मांझा न बेचने की अपील की है.
लखनऊ के चौपटिया के दुकानदार राम रास्तों ने बताया, कि वे पिछले 40 साल से जमघट पर पतंग बेच रहे हैं. उन्होंने कहा, कि यह परंपरा करीब 300 साल पुरानी है, जिसे हर साल लोग बड़ी उत्सुकता से निभाते हैं. पतंगों पर शायरियां, नाम और संदेश लिखकर उड़ाने की परंपरा भी है, जो लखनऊ की इस अनोखी पतंगबाजी को खास बनाती है. जमघट पर लखनऊ का आसमान जैसे पतंगों से रंगीन हो उठता है. पतंगबाजी की यह प्राचीन परंपरा लोगों को उनके इतिहास और विरासत से जोड़ती है. दिवाली के त्योहार के बाद एक अलग तरह की रौनक से लखनऊ को भर देती है.
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