कांगड़ा: डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज टांडा में किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा मिलना शुरू हो चुकी है. 28 मरीजों का प्री ट्रांसप्लांट वर्क किया जा रहा है. टांडा मेडिकल कॉलेज में किडनी ट्रांसप्लांट के लिए 30 मरीजों ने पंजीकरण करवाया था. हाल ही में दो मरीजों का ट्रांसप्लांट किया जा चुका है. टीएमसी में किडनी ट्रांसप्लांट के लिए पंजीकरण करवाने वालों में प्रदेश के कांगड़ा, चंबा, ऊना व हमीरपुर के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश और पंजाब के मरीज भी शामिल हैं.
गौरतलब है कि जिन मरीजों की किडनी खराब हो जाती है, उन्हें डायलासिस पर जाना पड़ता है और उनकी किडनी ट्रांसप्लांटकी जाती हैं. टांडा मेडिकल कॉलेज में नेफ्रोलॉजी (किडनी) विभाग के विशेषज्ञ डॉ. अभिनव ने बताया कि जिन मरीजों का किडनी ट्रांसप्लांट किया गया है, उनमें 24 साल की युवती व 29 साल का युवक शामिल हैं. युवती का पिछले दो साल और युवक का करीब डेढ़ साल से डायलासिस हो रहा था. युवती को किडनी उनकी 52 वर्षीय माता और युवक को उसके 61 वर्षीय पिता ने डोनेट की है.
टीएमसी में अब कैडेवर ट्रांसप्लांट की तैयारी
डा. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कालेज टांडा में जल्द ही कैडेवर ट्रांसप्लांट की सुविधा भी मरीजों को मिल सकती है. टीएमसी में किडनी ट्रांसप्लांट के लिए 4 बेड का आईसीयू भी शुरू कर दिया गया है. अभी टीएमसी में लाइव लेटेड डोनर ट्रांसप्लांट शुरू किया गया है, लेकिन अब कैडेवर ट्रांसप्लांट भी शुरू किया जाएगा.
नहीं था ट्रेंड स्टाफ
ऑर्गन ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. अमित शर्मा ने कहा कि रिनल ट्रांसप्लांट विभाग टांडा मेडिकल कॉलेज में पहले से मौजूद था, लेकिन ट्रांसप्लांट के लिए ट्रेंड को-ऑर्डिनेटर और ट्रेंड स्टाफ नहीं था, जिसके चलते स्टाफ को ट्रेंड किया गया है. टीएमसी में किडनी के मरीजों के लिए बने आईसीयू में डोनर और रिसीवर को ट्रांसप्लांट के बाद अलग-अलग रखा जाएगा. डा. अमित के अनुसार अंग प्रत्यारोपण कानूनों का उल्लंघन ना हो इसका पूरा ध्यान रखा जाएगा. ट्रांसप्लांटट्रेंड को-ऑर्डिनेटर को उसी अनुरूप ट्रेंड करवाया गया है. साथ ही ट्रांसप्लांटट्रेंड को-ऑर्डिनेटर को डेजिग्नेट करवाने के लिए सरकार से मंजूरी भी ली गई है.
डा. अमित ने कहा कि टांडा मेडिकल कॉलेज में भले ही किडनी ट्रांसप्लांटकी सुविधा लेट आई है, लेकिन अब आगे के लिए रास्ते खुल चुके हैं. भारत में ट्रांसप्लांटकी शुरूआत आज से 53 साल पहले 1 दिसंबर 1971 को हुई थी, उसके बाद पीजीआई चंडीगढ़ में वर्ष 1973 में ट्रांसप्लांटशुरू हुआ था. विश्व की बात करें तो ट्रांसप्लांट 1954 में शुरू हो चुका था.