वैशाली : हमारा पूरा देश कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ मना रहा है. आपको सेना के ऐसे जांबाज से रूबरू करवा रहे हैं, जो गोली खाने के बाद भी पाकिस्तान के सैनिकों को मार गिराया था. उन्होंने करगिल युद्ध के दौरान जंग के मैदान में पाकिस्तानी दुश्मन को हराने के लिए अपने शरीर पर गोलियां खाईं लेकिन पीछे मुड़कर देखा नहीं. इस जीत में नायक वैशाली के चंडी गांव के सुरेंद्र सिंह, जो पूरी घटना के चश्मदीद भी थे.
कारगिल में दुश्मनों से लिया लोहा: कारगिल के युद्ध को याद करते हुए सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि बर्फीली पहाड़ियों पर माइनस तापमान और दोनों तरफ गहरी खाई के बावजूद सेना के जवानों ने एकदम सीधी चढ़ाई चढ़कर दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे. उन्होंने बताया कि कश्मीर से बाटला के लिए पलटून को भेजा जाना था. मेजर परमानंद साहब को जानकारी मिली कि बतली में 45 दुश्मन छुपे हुए हैं. हम लोग एक प्लाटून में निकल पड़े.
मोर्चा संभालते ही होने लगी फायरिंग: उन्होंने बताया कि मोर्चा संभालते ही दोनों साइड से फायरिंग शुरू कर दी गई. कुछ देर बाद मेजर साहब एवं जवान शहीद हो गए. इसके बावजूद भी हम लोग चोटी पर घात लगाए दुश्मनों से लोहा लेते रहे. दूसरे दिन मेरे हाथ में गोली लगी घायल अवस्था में चार दिनों तक भूखे प्यासे रहकर कैंप पर पहुंच फिर इलाज हुआ. इस दौरान एक पाकिस्तानी सैनिक को भी गोलियों से मार गिराया. जिसके बैग में पाकिस्तान आर्मी का आईकार्ड के साथ मैगजीन और एक A k-47 मिला.
"हमलोगों ने 16 हजार फीट की ऊंचाई पर बैठे दुश्मनों को एक-एक कर धराशायी कर दिया. 26 जुलाई का दिन पाकिस्तान कभी नहीं भूल पाएगा. दुर्गम पहाड़ी में गोली लगने के बाद भी चार दिन तक फायरिंग करता रहा. इस दौरान मेजर साहब एवं जवान शहीद हो गए. हाथ में गोली लगने के बावजूद हमलोगों दुश्मनों से लोहा लेता रहा."-सुरेंद्र सिंह, रिटायर फौजी
1982 में फौज में हुए थे भर्ती: सुरेंद्र सिंह ने बताया कि 1982 में फौज में भर्ती हुए थे. देश की सेवा करते हुए लगभग 17 वर्ष बाद अपनी मिट्टी का कर चुकाने का मौका 1999 में हुए कारगिल युद्ध में मिला. बर्फ से ढकी दुर्गम पहाड़ों में चारों ओर से पाकिस्तान दरिंदों से घिरे बिहार रेजीमेंट की टोकरी में लड़ाई लड़ते रहें और अंत तक हिम्मत नहीं हारी और जीत कर गोली लगने के बाद घायल अवस्था में पहाड़ी से नीचे उतरे.
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