पटना: 18 मार्च 1974 को जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार के पटना में छात्र आंदोलन की शुरुआत हुई थी. कांग्रेस की सरकार के खिलाफ संपूर्ण क्रांति के नायक जयप्रकाश नारायण ने 18 मार्च को ही आंदोलन का बिगुल फूंका था और देखते ही देखते आंदोलन ने राष्ट्रव्यापी रूख अख्तियार कर लिया. लगभग 1 साल तक आंदोलन चला.
18 मार्च को क्या हुआ था?: दरअसल 18 मार्च 1974 को पटना में छात्रों और युवकों द्वारा एक आंदोलन शुरू किया गया था. उस दिन विधानमंडल के सत्र की शुरुआत होने जा रही थी. राज्यपाल दोनों सदनों के संयुक्त बैठक को संबोधित करने वाले थे. रणनीति यह बनी थी कि छात्र आंदोलनकारी राज्यपाल को विधानमंडल भवन में जाने से रोकेंगे और उनका घेराव करेंगे.
राज्यपाल का रोका गया रास्ता: योजना की जानकारी मिलने के साथ ही सत्ताधारी विधायक सुबह 6:00 बजे ही विधानमंडल पहुंच गए थे तो दूसरी तरफ विपक्षी विधायकों ने राज्यपाल के अभिभाषण का बहिष्कार किया था. उधर राज्यपाल आर डी भंडारे किसी भी कीमत पर विधानमंडल पहुंचने की कोशिश कर रहे थे.
पुलिस ने छात्रों पर किया लाठीचार्ज: आंदोलनकारी छात्रों ने राज्यपाल की गाड़ी को रास्ते में रोक लिया. पुलिस प्रशासन ने छात्रों को रोकने की कोशिश की और पुलिस को लाठियां चलानी पड़ी. उस समय पटना विश्वविद्यालय के छात्र नेता लालू प्रसाद यादव आंदोलन में सक्रिय थे. छात्रों पर लाठीचार्ज के बाद आंदोलन और उग्र हो गया और आंसू गैस के गोले भी छोड़े गए.
जेपी ने की लोगों से बड़ी अपील: देखते ही देखते अनियंत्रित भीड़ और अराजक तत्व भी आंदोलन में घुस गए. हर तरफ लूट और आगजनी की घटना होने लगी. घटना में कई छात्रों की मौत भी हो गई. जय प्रकाश नारायण से आंदोलन की कमान संभालने की मांग जोर शोर से उठने लगी. जयप्रकाश नारायण ने पहला शब्द यह रखा था कि इस आंदोलन में कोई भी व्यक्ति किसी भी पार्टी से जुड़ा हुआ नहीं होना चाहिए. छात्रों ने जेपी की बात मान ली और राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए तमाम छात्रों ने इस्तीफा दे दिया और जेपी के साथ हो लिए.
इंदिरा गांधी को लिखा गया पत्र: जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन की कमान संभाली और बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर के इस्तीफा की मांग उठने लगी. इंदिरा गांधी के शासन के दौरान देश में महंगाई समेत कई मुद्दों को लेकर भी लोगों के अंदर गुस्सा था. जेपी ने सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला लिया और उन्होंने इंदिरा गांधी को पत्र लिखा. पत्र में इंदिरा गांधी के कई फैसले को अलोकतांत्रिक और देश के लिए खतरा बताया गया.
उठी लोकपाल और लोकायुक्त बनाने की मांग: संपूर्ण क्रांति के नायक जयप्रकाश नारायण ने उस समय लोकपाल और लोकायुक्त बनाने की मांग भी की थी. जयप्रकाश नारायण ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बनाई गई कमेटी की आवाज दबाने का आरोप भी इंदिरा गांधी पर लगाया था. श्रीमती इंदिरा गांधी ने राज्यों में कांग्रेस की सरकार से चंदा लेने की पहल की. उस समय गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री चिमनभाई से भी 10 लाख रुपए की मांग की गई.
प्रदेश में राष्ट्रपति शासन: कोष को बढ़ाने के लिए कई तरह के टैक्स लगाए गए और जरूरी चीजों के कीमतों में जबरदस्त इजाफा हो गया. देखते ही देखते कई प्रदेशों में आंदोलन शुरू हो गया. जयप्रकाश नारायण के गुजरात यात्रा से पहले राज्यपाल के जरिए सत्ता अपने हाथ में रखने की कोशिश की गई. जेपी के गुजरात दौरे से 2 दिन पूर्व चिमनभाई का इस्तीफा कर दिया गया. प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग गया. लाखों की संख्या में कर्मचारी हड़ताल पर चले गए और आंदोलन ने राष्ट्रव्यापी रुख अख्तियार कर लिया.
25 जून 1974 को इमरजेंसी की घोषणा: जयप्रकाश नारायण को 5 जून 1974 को संपूर्ण क्रांति का नारा देना पड़ा. इंदिरा गांधी ने 25 जून 1974 को इमरजेंसी की घोषणा कर दी. जेपी समेत 600 से अधिक लोगों को जेल में डाल दिया गया और इंदिरा गांधी ने 1977 में आपातकाल को खत्म कर आम चुनाव की घोषणा कर दी.
इंंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा: कुछ दिनों में जेपी की तबीयत ज्यादा खराब होने लगी, जिसके कारण से सात महीने बाद उन्हें छोड़ दिया गया. मगर जेपी ने हार नहीं मानी. 1977 में सत्ता विरोधी लहर के कारण इंदिरा गांधी को हार का मुंह देखना पड़ा.
इसे भी पढ़ें-