नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बिहार विधान परिषद से राजद सदस्य सुनील कुमार सिंह के निष्कासन को रद्द कर दिया. उन पर राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप लगा था. शीर्ष अदालत ने कहा कि जुलाई 2024 से सुनील कुमार सिंह द्वारा गुजारी गई निष्कासन अवधि को निलंबन की अवधि माना जाएगा. यह फैसला न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनाया.
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट नेः पीठ ने पाया कि सुनील सिंह का आचरण घृणित और अशोभनीय था. पीठ ने आचार समिति की रिपोर्ट और बिहार विधान परिषद की अधिसूचना को केवल सिंह पर लगाए गए दंड की प्रकृति तक ही अलग रखने का फैसला किया. पीठ ने कहा, "याचिकाकर्ता को तत्काल प्रभाव से बिहार विधान परिषद के सदस्य के रूप में बहाल करने का निर्देश दिया जाता है. हालांकि, वह विघटन की अवधि के लिए किसी भी पारिश्रमिक या अन्य मौद्रिक लाभ का दावा करने का हकदार नहीं होगा."
पीठ ने विधान परिषद सदस्य सुनील कुमार सिंह को चेतावनी भी दी. न्यायमूर्ति कांत ने कहा, "यदि याचिकाकर्ता अपनी बहाली के बाद भी दुराचार में लिप्त रहता है, तो हम कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करने का काम आचार समिति या बिहार विधान परिषद के अध्यक्ष पर छोड़ते हैं." पीठ ने कहा कि विधान परिषद की आचार समिति के फैसले विधायी कार्यों का हिस्सा नहीं हैं और इसलिए, वे न्यायिक समीक्षा से मुक्त नहीं हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस फैसले को सिंह के आचरण की क्षमा के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए.
सुनील सिंह पर क्या लगा था आरोपः पीठ ने सीट पर उपचुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग द्वारा जारी अधिसूचना को भी रद्द कर दिया. पिछले साल 26 जुलाई को सिंह को सदन में अभद्र व्यवहार के कारण बिहार विधान परिषद से निष्कासित कर दिया गया था. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और उनके परिवार के करीबी माने जाने वाले सिंह पर 13 फरवरी, 2024 को सदन में तीखी नोकझोंक के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ नारेबाजी करने का आरोप लगाया गया था.
माफी नहीं मांगी थीः आचार समिति द्वारा कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश नारायण सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपे जाने के एक दिन बाद सुनील सिंह के निष्कासन का प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित कर दिया गया. सिंह के निष्कासन के अलावा, उसी दिन आपत्तिजनक व्यवहार में लिप्त रहे एक अन्य राजद एमएलसी मोहम्मद कारी सोहैब को भी दो दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया था. आचार समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि सोहैब ने जांच के दौरान अपने कार्यों के लिए खेद व्यक्त किया, जबकि सिंह ने खेद नहीं जताया.
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